नशा ही नशा

नशे में तेज रफ्तार से वाहन चलाते हुए दुर्घटनाओं का सिलसिला दुर्भाग्य से अनवरत चल रहा है।जब कोई अपने आप को ज्यादा ही होशियार समझता है,तो उसे बोलचाल की भाषा कहा जाता है कि,फलाँ शख्स ज्यादा ही तेज चल रहा है।
तेज रफ्तार से चलने वालों के लिए ही सूचना के माध्यम से यह हिदायत दी जाती है कि, दुर्घटना से देर भली।
नशा करने के बाद रास्ते पर पैदल भी नहीं चलना चाहिए और वाहन भी नहीं चलना चाहिए।
सबसे पहले तो यह समझना जरूरी है, नशा होता क्या है?क्यों होता है?
नशा सिर्फ मादक पदार्थो का सेवन से ही नहीं होता है।अहंकार के मद का भी नशा होता है।सत्ता का नशा भी होता है।नशा होने के और भी बहुत प्रकार है।
सत्ता के नशे में तेज रफ्तार से चलने से अपने सूबे की सड़कें अमेरिकी सड़कों जैसी दिखने लगती है।सत्ता के मद में अतिथि के स्वागत के दौरान झुग्गी,झोपड़ियों को छिपाने के लिए दीवार खड़ी करनी पड़ती है।सत्ता के मद तेज चलने बहुत बार स्वयं की खटिया भी खड़ी हो जाती है?
सत्ता के मद में तेज चलने से जमीनी समस्याएं दिखती ही नहीं है।
बहुत से लोग नशे में इतने चूर हो जातें हैं कि लड़खड़ाते कदमों के चलते सड़क पर या नाली में भी गिर जातें हैं।सत्ता के मद में नाली से निकलने वाली गैस के रासायनिक क्रिया पर पर अनुसंधान हो जाता है।इस अनुसंधान से रोजगार प्राप्ति के स्रोत की अनोखी खोज हो जाती है।
ओलंपिक खेल में खिलाडियों के द्वारा खेल के योग्य क्कद्गह्म्द्घशह्म्द्वड्डठ्ठष्द्ग अर्थात प्रदर्शन के कारण खिलाड़ियों को पदक प्राप्त नहीं हो रहें हैं। अब की बार पदक तो सत्ता का मद दिलवा रहा है।पूर्व में खिलाड़ियों को पदक उनकी योग्यता के कारण मिलते होंगे?ऐसा मान कर चलना चाहिए?
एक फिल्मी गीत की यह पक्तियां याद आर ही है। दिल को देखो चेहरा न देखों,चेहरें ने लाखों को जीता,दिल सच्चा और चेहरा झूठा
सत्ता के मद में चूर होने पर तो यह खोज का विषय बन जाता दिल नाम का कोई अवयव शरीर में विद्यमान भी या नहीं है?
हॉ सियासत में चेहरा जरूर महत्वपूर्ण हो गया है।
नशे चूर होने पर वाहनों की स्श्चद्गद्गस्र का अनियंत्रित होना स्वाभाविक है।कारण नशे में दिमाग़ के साथ व्यक्ति की मांसपेशियाँ भी कमजोर हो जाती हैं।ऐसा मानसविज्ञान के चिकित्सकों का ह्रड्ढह्यद्गह्म्1ड्डह्लद्बशठ्ठ अर्थात अवलोकन है।
उपर्युक्त मुद्दों पर ऊपरवाले से यही गुहार की जा सकती है।
हे खुदा हमें ऐसी खुदाई न दे
हमारे शिवाय और दिखाई न दे
सत्ता का नशा दूर करने के लिए कोई नशा मुक्ति केंद्र नहीं होता है।यह नशा पदच्यूत होने पर उतरता है।

– शशिकांत गुप्ते

You might also like
Leave A Reply

Your email address will not be published.