अगले साल से इंदौर सेब और संतरा उत्पादन हब बनेगा

खुड़ैल में एक किसान द्वारा किए प्रयास का मिला प्रतिसाद

(धर्मेन्द्र सिंह चौहान)
इंदौर। ग्रामीण क्षेत्र में किसान अब परंपरागत फसलों से दूर होते जा रहे है। इसके कई कारण है। खास कारण सही कीमत नहीं मिलना। वहीं अब इंदौर के आसपास होने वाली खेती में कई प्रयोग दिखाई दे रहे है। इसमें उपलब्धियां मिल रही हैं, कई प्रयास के बाद। इंदौर के आसपास ही किसी समय में केसर की खेती के प्रयास भी किए गए थे जिसे सफलता नहीं मिली थी, परंतु अब शहर में संतरे के बाद सेब की खेती के प्रयास शुरू किए गए और इन्हें अच्छी सफलता मिली। 20 झाड़ों से शुरू की गई खेती ने कई किसानों के लिए अब राह खोल दी है। माना जा रहा है आने वाले दो सालों में इंदौर के आसपास ग्रामीण क्षेत्र में बड़ी तादाद में सेब की खेती होती हुई दिखाई देगी।
शहर के 42 से 46 डिग्री सेल्सियस पारा आम बात है। ऐसे में आम की फसल बहुत अच्छी होती है। मगर इस साल शहर में आम के साथ साथ सेब की फसल भी देखने को मिलेंगी। इंदौर जिले के खुड़ैल में रहने वाले संतोष सोमतिया की नवाचार की ज़िद ने यह कर दिखाया है। इनके खेत मे दो साल से सेब हो रहे है। खेत मे लगे 6 पौधों में 50 से ज्यादा फल ले चुके है। इनकी जिद है कि अगले साल इनके खेत मे आम और सेब एक साथ लगे।

इंदौर। इंदौर में सबसे पहले संतोष सोमतिया ने खुड़ैल में जब सेब की खेती के लिए 20 झाड़ लगाए तो वे हंसी का पात्र बन रहे थे, परंतु उनके प्रयास और जीवट ने सिद्ध कर दिया कि असंभव को भी संभव किया जा सकता है। यह वहीं संतोष सोमतिया है जिन्होंने खुड़ैल में एक नदी को पुनर्जीवित कर अपनी पहचान बना दी थी।
जयजयवंती को पुनर्जीवित कर चर्चा में आए संतोष सोमतिया एक बार फिर पूरे प्रदेश में मशहूर हो गए है। इस बार इन्होंने इंदौर की जमीन पर सेब की खेती करके सबको चोंका दिया है। मल्हार आश्रम से स्कूली शिक्षा दीक्षा लेने के बाद इन्होंने एक प्राइवेट कॉलेज से बीएससी करने के बाद खेती करने का फैसला किया। 12 बीघा खेती में हमेशा से कुछ न कुछ नवाचार करते रहने से इनकी ख्याति इंदौर से होते हुए पूरे प्रदेश में फैलती गई। इस बार इन्होंने 44 से 48 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान में सेब की खेती कर उसके फल भी चख लिए। इंदौर के ग्राम खुड़ैल में रहने वाले संतोष सोमतिया बताते है कि उन्होंने सेब की नई प्रजाति अन्ना के बारे में सुना तो लाख प्रयास के बाद हिमाचल प्रदेश में रहने वाले वेध प्रकाश से इसके 16 पौधे मनवाए। इनमें से 6 पौधे ही पनप पाए। इन 6 पौधों में 100 से ज्यादा फल लगे। यह सेब की अकेली ऐसी प्रजाति है जो 13 महीने में ही फल देना शुरू कर देती है। यानी कि आज आप इस सेब का पौधा लगाएंगे तो एक साल बाद उन्हें खा सकते हैं। सर्दियों के सेबों के विपरीत यह सेब गर्मियों में ही होता है। इस साल भी इनमें खूब फूल लग रहे है। जून तक इसकी फसल तोड़ ली जाती है। संतोष सोमतिया का कहना है कि डॉ शर्मा ने देश के तीन प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों से सेब न्यूट्रीशन वैल्यू की जांच करवाई है। इसकी हिमाचल-कश्मीर के ठंडे इलाकों में होने वाले सेबों से तुलना से पता चला है कि इसकी न्यूट्रीशन वैल्यू हिमाचल-कश्मीर के सेब की तुलना में कही अधिक है। 55 साल के संतोष सोमतिया को हमेशा भीड़ से अलग हट कर नवाचार करने की ललक रहती है। यही कारण है कि इन्होंने अपनी 12 बीघा जमीन पर 12 तरह की फसल ऊँगा रहे है। जिनमे तुवर, लहसून, प्याज, सुरजना, अकलकरा, अजवाइन के साथ ही कई तरह की आयुर्वेदिक फसल भी ले रहे है। सोमतिया का कहना है कि यह सेब पूरी तरह प्रकृति प्रदत्त है। इतना शानदार और आमतौर पर प्रकृति के विरुद्ध लगने वाला यह सेब जेनिटिकली मॉडिफ़ाइड नहीं है, बल्कि प्राकृतिक रूप से पैदा होने वाला है। डॉक्टर शर्मा के अनुसार इसे किसी लैबोरेट्री में ईजाद नहीं किया गया है, इसे तो एक किसान ने ढूंढा है। बाद में विज्ञान की मदद से इसकी किस्म को थोड़ा सुधारा गया है।
गर्मियों में 42 से 46 डिग्री तक सेब के पैदा होने का अर्थ यह है कि अब एक ही बाग में आम और सेब दोनों लगाए जा सकते हैं। शहरों में उगाने के लिए इसे बड़े गमलों और प्लास्टिक के ड्रमों में भी लगाया जा सकता है। मुंबई में तो 12वीं मंजिल में भी यह फल दे रहा है।

You might also like
Leave A Reply

Your email address will not be published.