काशी का उद्धार-अयोध्या का बाकी इंतजार

-प्रसंगवश
-हाल ही में देवभूमि यानी उत्तरप्रदेष की यात्रा का अवसर मिला।हालांकि उत्तरप्रदेश मेरी पैतृक भूमि भी है मगर काम की व्यस्तता के चलते कोई 4 साल बाद उत्तरप्रदेष याने अपने गांव अपनी भूमि जाने का अवसर मिला। इस दौरान गांव के साथ साथ देव स्थलों के भ्रमण का भी मन बना।यूपी में देवस्थलों की कोई कमी नहीं है । बांके बिहारी की लीला हो या रामलला का जन्मस्थल या देवादिदेव महादेव की प्रिय काषी ही क्यों ना हो।
गंगोत्री यमनोत्री केदारनाथ बद्रीनाथ अब भले ही उत्तराखंड का हिस्सा हो मगर पूर्व में ये पावन धाम भी तो यूपी के ही हिस्से थे।साल 2000 में उत्तरप्रदेश से अलग होकर उत्तरांचल राज्य बना जो बाद में उत्तराखंड कहलाया।इस यूपी प्रवास के दौरान सबसे पहले अलौकिक उर्जा से भरी विश्वेश्वर की प्रिय भूमि काशी का रूख किया।कानपुर से काशी पहुंचे और काषी में कदम रखते ही बाबा भोलेनाथ की कृपा से एक अलग ही अनुभुति हुई।साथ ही कुछ पल को आंखें भी चौंधियां सी गईं। समझ नहीं आया कि क्या गलियों में सिमटी ये वहीं वाराणसी है जो पूर्व में देखी थी। समय बदला सा नजर आया और इस बार काषी में अतीत के गौरव के साथ प्राचीनता और नवीनता की एक साथ सजीवता नजर आई। पुरातन प्रेरणाएं भविष्य को दिशा देतीं दिखीं। पहले जो मंदिर क्षेत्र केवल तीन हजार वर्ग फीट में था, वो अब करीब 5 लाख वर्ग फीट का हो चुका है. अब मंदिर और मंदिर परिसर में 50 से 75 हजार श्रद्धालु आ सकते हैं। कलकल बहती स्वच्छ व पावन मां गंगा का दर्शन-स्नान और वहां से सीधे विश्वनाथ धाम।दरअसल पहले काषी का मंदिर गलियों में सिमटा हुआ था और इसके आसपास के कई मंदिर अतिक्रमण की चपेट में आकर अस्तित्व ही खो चुके थे। पीएम मोदी यहां से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे और उसके बाद उन्होंने मार्च 2019 को विश्वनाथ धाम प्रोजेक्ट का शिलान्यास किया और कोई दो साल 8 माह के बाद दिसम्बर 2021 को इसके पहले चरण का कार्य पूर्ण हुआ ।इस प्रोजेक्ट के पहले चरण में 339 करोड़ रुपए खर्च हुए। प्रोजेक्ट को गति देने के लिए यहां प्रतिदिन 2000 मजदूरों को काम पर लगाया गया। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस कॉरिडोर को बनाने के लिए लगभग 400 इमारतों का अधिग्रहण किया गया है। कॉरिडोर का पूरा इलाका करीब 5 लाख वर्गफीट में फैला है.। मोदी के इस ड्रीम प्रोजेक्ट को तैयार करने में 2 साल 8 महीने का वक्त लगा । काशी विश्वनाथ धाम में 27 मंदिर,4 द्वार,320 मीटर लंबी सड़क,70 से ज्यादा फूल की दुकानें, परफॉर्मेंस स्पेस ,हेरिटेज लाइब्रेरी,मल्टीपर्पस हॉल,वाराणसी गैलरी,यात्री सुविधा केंद्र, सहित तमाम सुविधाएं हैं जो इस धाम को हर दृष्टि से बेहतर से बेहतर बनाती हैं।
बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर की भव्यता, सौंदर्यता,व्यवस्था देखकर लगा कि बाबा विष्वनाथ का आषीर्वाद और पीएम की इच्छाषक्ति ही थी कि गंगा तट से मंदिर के गर्भगृह तक बने काशी विश्वनाथ धाम का ये नया और भव्य स्वरूप 13 दिसम्बर 2021 को इसके लोकार्पण के साथ लगभग ढाई सौ साल बाद दुनिया के सामने आया है। काशी में तैयार विश्वनाथ धाम कॉरिडोर 11वीं से 17वीं शताब्दी के बीच भारतीय संस्कृति के प्रतीक चिह्नों के विध्वंस और पुनर्निर्माण के संघर्ष की कहानी याद दिलाता है तो संहार के खिलाफ सृजन का संदेश भी देता है…निष्चित ही बाबा विष्वनाथ की कृपा से काषी आनेवाला हर व्यक्ति हर बंधन से मुक्त हो जाता है।इसका अनुभव आपको काषी पहुंच कर हो जाता है।ये तो बात हुई काषी की अब बात करते हैं रामलला की जन्मस्थली अयोध्या की। काषी की पावन यात्रा के बाद आंखों में काषी की भव्यता लिए अयोध्या का रूख किया लेकिन आयोध्या पहुंचते ही एक बार फिर फ्लेष बैक में पहुंच गए।।यूपी के किसी शहर की वहीं तस्वीर जो सालों पहले दिख जाया करती थी वही सामने थी। अस्तव्यस्त यातायात, गंदगी के ढेर, ना कोई सुविधा ना कोई व्यवस्था। हां ये जरूर था कि रामलला के भव्य मंदिर की तैयारी जोर शोर से जारी थी। कहा जाता है कि अयोध्या पहुंचकर सबसे पहले हनुमानगढ़ी पहुंचकर हनुमानजी की अनुमति ले लेना चाहिए।लिहाजा यात्रा यहीं से शुरू की।हनुमानजी के दर्षन कर प्रभु राम से जुड़े दषरथ हाल,सीता रसोई,राजभवन सहित अन्य स्थल देखने के बाद बारी आई रामलला के दर्षन की।मंदिर परिसर में आपको कुछ भी ले जाने की अनुमति नहीं है लिहाजा बाहर लाइन से बने लॉकर में सामान रख कतार में लगे। चूंकि राम मंदिर को लेकर लम्बा संघर्ष रहा और ये बेहद संवेदनषील मसला रहा है लिहाजा रामलला की सुरक्षा पूरी तरह चौकस दिखी। लम्बी कतार और चार चार जगह सुरक्षा जांच से गुजरने के बाद रामलला के दर्षन का सौभाग्य प्राप्त हुआ । सालों के वनवास के बाद रामलला को उनके अपने स्थान पर विराजित देख श्रद्धा और भावना ने भी उबाल मारा और मन भावविभोर हो गया। बहरहाल दर्षन लाभ के बाद पुण्य सलीला सरयू का रूख किया तो यहां भी निराषा ही हाथ लगी। जैसी स्वच्छ व निर्मल कलकल बहती नदी की कल्पना लेकर गए थे तो तट पर हालात उलट थे। सरयू नदी में स्नान की तमन्ना ने वहां के हालात देखकर दम तोड़ दिया और हमज दर्षन व वंदन कर लौटना पड़ा। हां ये जरूर सच है कि रामलला के मंदिर निर्माण का रास्ता साफ होते ही आयोध्या में निवेष काफी बढ़ गया है खासकर जमीनों के मामले में लेकिन ये भी सच है कि वो निवेष फिलहाल कही नजर नहीं आता है।जाहिर सी बात है कि आने वाले समय में अयोध्या में रामभक्तों की तादाद बढ़ेगी और बढ़ भी रही है साथ ही मंदिर बनने के बाद मंदिर को देखने की उत्सुकता भी देष विदेष से भक्तों और पर्यटकों को अयोध्या खींचेगी लेकिन जरूरत इस बात की है कि प्रदेष सरकार हनुमान गढ़ी व रामलला की जगह जगह बिखरी स्मृतियों व सरयू के तट को सहेजे रामलला मंदिर कॉरिडोर पर जल्द काम करे और मर्यादा पुरूषोत्तम राम की नगरी को पुर्नस्थापित करने का प्रयास करे जिससे राम की नगरी की कल्पना लेकर अयोध्या पहुंचने वालों को भी उसकी अनुभूति हो। बहरहाल हाल फिलहाल तो यहीे कहा जा सकता है कि विष्वनाथ की काषी का उद्धार तो हो गया है मगर रामलला की जन्मभूमि अयोध्या का इंतजार अभी बाकी है ।अब देखना यह है कि ये इंतजार आखिर कब खत्म होता है।
अभिलाष शुक्ला,वरिष्ठ पत्रकार
9826611505

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