10 करोड़ से अधिक की चिल्लर प्रचलन से बाहर

बैंकों द्वारा भी नहीं लिए जा रहे सिक्के, व्यापारियों के साथ ही जनता भी परेशान

इंदौर (धर्मेन्द्रसिंह चौहान)।
एक दौर हुआ करता था जब महानगर में सिक्कों बनाम चिल्लर की बहुत किल्लत हुआ करती थी। तकरीबन एक दशक पहले महानगर में चिल्लर की कमी की वजह से कूपन चलन में आ गये थे। किसी व्यापारी से कोई सामान खरीदने जाता था तो चिल्लर नहीं होने की वजह से वह उसे या तो माचिस दे देता था या फिर टाफी पकड़ा देता था। इतना ही नहीं कई लोगों ने तो बाकायदा एक दो और पांच रुपए के कूपन भी बनवा लिए थे और सील ठप्पे के साथ ग्राहकों को सौंप दिये जाते थे। १-२-५-१० रुपए के सिक्के एक प्रकार से चलन से बाहर हो गये हैं। शहर में किसी भी प्रतिष्ठान में इनका लेन-देन पूरी तरह से बंद सा हो गया है। शहर के तमाम छोटे और बड़े व्यापारियों के यहां बोरों से चिल्लर इक_ी हो गई है जो अब परेशान का सबब बन गई है। नोटबंदी के बाद आनलाइन मार्केटिंग के चलते अचानक बाजार में सिक्कों की बहार आ गई और अब यह मुसीबत बन गये हैं। हद तो यह है कि बैंक भी सिक्के लेने को तैयार नहीं है। एक अनुमान के मुताबिक करीब १० करोड़ से अधिक की चिल्लर महानगर में प्रचलन से बाहर हो चुकी है। लोगों के यहां बोरों में बंद है। सवाल यह उठता है कि आखिर इस चिल्लर की चिकल्लस से कैसे निजात पाई जाए? क्या सरकार इस संबंध में कोई कदम उठायेगी?
उल्लेखनीय है कि शहर में इन दिनों सिक्कों का चलन बंद सा हो गया है। 5 ओर 10 के सिक्कों को व्यापारियों ओर उपभोक्ताओं दोनों लेने से मना कर रहे हैं। क्योंकि बैंकों में सिक्कों को जमा करने का कोई प्रावधान नहीं है। यह सिक्के जेब ओर गल्ले पर बोझ बनने लगे है। इसकी सबसे बड़ी वजह इन्हें गिनने, रखने ओर लाने-लेजाने की बताई जा रही है। वहीं ऑन लाईन पेमेंट सिक्कों को चलन से बाहर करने की सबसे बड़ी वजह बन गई है। वहीं 1 ओर 2 के सिक्के तो चलन से बाहर ही हो गए हैं। यही जिसके चलते शहर में सिक्कों को अब बट्टे में चलाना पड़ रहे हैं। शहर में 5 ओर 10 के सिक्कों से जहां व्यापारी कतराने लगे हैं, वहीं ग्राहक भी इन्हें लेने से मना कर देता हैं। 1 सौ रूपए के सिक्के जेब में रखने पर उपभोक्ता को बोझ लगता हैं, वहीं व्यापारी को 1 हजार के सिक्के गल्ले में रखना भारी पड़ रहा है। टीम दोपहर ने शहर में सिक्कों की खपत पर पड़ताल की तो पता चला कि 1 ओर 2 के सिक्के तो बाजार से गायब ही हो गए। वहीं 5 ओर 10 के सिक्के उभोक्ता की जेब पर बोझ बन रहे हैं तो व्यापारी के गल्ले की आफत। सब्जी-भाजी, फल-फ्रूट, पान मसाला, किराना सहित तमाम ऐसे छोटे व्यापारी जो दिन भर में 1 से 50 हजार रूपए रोज का व्यापार करते हैं उन्होंने सिक्कों के लेन-देन पर अघोषित प्रतिबंध लगा दिया है। इसका मुख्य कारण व्यापारी बैंक बता रहे हैं तो वहीं उभोक्ता इनका वजन। एक गृहणी जब बाजार में सब्जी, फल-फ्रूट देने जाती हैं तो यह मानकर चलती हैं कि 100 रूपए से लेकर 500 रूपए तक की खरीदी करना है। इसके लिए वह जब किसी भी नजदीकि एटीएम पर जाकर अपने अकाउंट से पैसे निकालती है तो उसे नोट ही मिलते हैं। यही नोट अब बाजार में खुल्ले होना शुरू हो जाते हैं। ग्राहक की तो मजबूरी होती हैं कि वह दुकानदार जैसे भी नोट दे दे उसे ले लेता हैं मगर ग्राहक द्वारा दुकानदार को उसके पंसद की नोट ही देने पड़ते हैं, वर्ना दुकानदार सामान देने से मना कर देता है। जिससे ग्राहक भी अब सिक्के लेने से मना करने लगे हैं, क्योंकि उनसे यही सिक्के दुसरे दुकानदार नहीं लेते हैं। जबकि 1 ओर 2 के सिक्के तो आज-कल कोई भिखारी भी नहीं ले रहा है। लोग इन्हें मंदिर में दान करने, पंडित को दक्षिणा देने के साथ ही नदियों में खपा रहे हैं।
चाय-पान की दुकानों के साथ ही रेस्टोरेंट और सब्जी वाले भी करते है चिकचिक
शहर में जिस तरह से एक, दो, पांच एवं दस रुपए के सिक्कों की भरमार हो गई है उससे चाय-पान की दुकानों के साथ ही रेस्टोरेंट वाले भी ग्राहकों को सिक्के थमाने से बाज नहीं आ रहे हैं। इतना ही नहीं सब्जी बेचने वाले और फलों का व्यवसाय करने वाले भी ग्राहकों को सिक्के थमाने से गुरेज नहीं करते लेकिन जब इन्हें सिक्के दिये जाते हैं तो वे लेने में आनाकानी करते हैं। इसके चलते की बार विवाद की स्थिति निर्मित हो जाती है। यद्यपि ऐसे छोटे मोटे विवाद आये दिन हर गली, मोहल्ले की दुकानों और चौराहों पर होते ही रहते हैं। यदि किसी दिन कई कोई बड़ा विवाद हो जाए तो इससे इंकार नहीं किया जा सकता। स्थानीय प्रशासन के साथ ही रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) को भी चाहिए कि वह चिल्लर को लेकर आये दिन होने वाली चिकचिक को खत्म करने के लिए स्पष्ट दिशा निर्देश जारी करें।
क्यों बोझ बने सिक्के
शहर के बाजारों में दो प्रकार के 5 के सिक्के चलते हैं,एक मोटे, दूसरे पतले। मोटे वाले 5 के सिक्के 1 हजार के जब तोले जाए तो 1 किलो वजन में यह 1 किलो 195 ग्राम के होते हैं, जो एक हजार रूपए के बराबर हो जाते है। वहीं पतले वाले 5 के सिक्के तो यह भी 1 हजार रूपए के सिक्के 1 किलो में एक किलो 770 ग्राम वजन के हो जाते हैं। जाहिर है कोई भी ग्राहक लगभग दो किलो का वजन अपनी जेब में नहीं रख सकता। वहीं व्यापारी के गल्ले में अगर एक हजार रूपए के सिक्के आ जाए तो उसका गल्ला पूरा भरा जाता है। इसलिए वह नोट रखने के लिए अलग से गल्ला रखना पड़ता है।
अखबारों के काउंटरों पर चिल्लरों की भरमार
जिस तरह महानगर में चिल्लर अब मुसीबत बन गई है ठीक उसी तर्ज पर अखबारों के काउंटरों पर भी चिल्लरों की भरमार है। हालात यह हो गये है कि हाकर को लोगों ने चिल्लर खपाने का माध्यम बना लिया है। इस वजह से अखबारों के प्रत्येक काउंटरों पर रोजाना हजारों रुपए की चिल्लर इक_ी हो रही है। अखबार मालिक भी इन चिल्लरों से त्रस्त हो चुके हैं। वजह साफ है बैंक भी चिल्लर लेने को तैयार नहीं है। यह स्थिति दिन प्रतिदिन बदतर होती जा रही है।
आखिर चिल्लर से त्रस्त लोगों की कौन सुनेगा…?
नंदानगर में सुपारी का व्यावसाय करने वाले विजय सिंह हाड़ा का कहना है कि हमारा थोक में सुपारी का व्यवसाय हैं दिन भर में हमारे पास 5 हजार रूपए के सिक्के आ ही जाते हैं। जब हम बैंक में रकम जमा कराने जाते हैं तो बैंक वाले हमसे सिक्के लेने से मना कर देते हैं। उनका कहना है कि बैंक के प्रावधान में नोट गिनने की मशीन के साथ ही स्टाफ भी रहता हैं जो जमाकर्ता द्वारा दिए जाने वाले नोटों की गिनती खुद करने के साथ ही नोट गिनने की मशीन से भी कर लेता हैं। मगर किसी भी बैंक में सिक्के गिनने या तोलने की मशीन नहीं लगी है। सिक्के गिनने में समय बहुत लगता हैं इसलिए बैंक सिर्फ नोट ही लेती हैं। जब बैंक खुद सिक्के लेने से मना करें तो हम इन सिक्कों को लेकर कहां जाए। इसी तरह गौरी नगर में रहने वाले सब्जी का ठेला लगाने वाले लक्ष्मण धुरवाल का कहना है कि भैय्या सब्जी के व्यावसाय में ज्यादातर गृहणी ही खरीददारी करने आती हैं। जिनके घर के आस-पास सब्जी मंडी लगती हैं वहां पर एक ग्राहक ज्यादा से ज्यादा दो समय की सब्जी ले जाता हैं। अगर कोई दूर वाला ग्राहक हो तो वह दो दिनों की सब्जी ले जाएगा। हर सीजन में ऐसा ही होता है। मेरे गल्ले में रोजाना 200 से 300 रूपए तक के सिक्के आ जाते हैं। मगर जब मैं सुबह इन्ही सिक्कों को लेकर मंडी जाता हूं तो इन्हें न तो किसान लेता हैं और न ही आड़तियां। इसलिए हम रोजाना 20 से 30 रूपए का घाटा खाकर सिक्कों को बट्टे में बैंच देते हैं। इसी तरह पाटनीपुरा चौराहे पर 20 वर्षों से फल-फ्रूट का ठेले लगाने वाले जितेन्द्र कायरे का कहना है कि पांच साल पहले 100 रूपए के सिक्के के बदले 110 रूपए मिलते थे, मगर अब 100 रूपए के बदले 90 रूपए ही मिलते हैं। इसलिए मैं तो ग्राहक छोडऩा पसंद करता हूं, मगर सिक्के नहीं लेता। सिक्के लेने के बाद इन्हें अपने ही पास रखना पड़ता हैं मंडी में बड़े व्यापारी इन्हें नहीं लेते इसलिए हम ग्राहक को पहले ही बोल देते हैं कि बंदे नोट ही देना हम सिक्के नहीं लेंगे।
क्या कहता है आरबीआई एक्ट
देखा जाए तो कोई भी शख्स १,२,५ या १० रुपए की चिल्लर स्वीकार करने से इंकार नहीं कर सकता। यदि कोई ऐसा करता है तो इसे आपराधिक कृत्य की श्रेणी में माना जाएगा। बावजूद इसके लोग बेवजह की मगजमारी नहीं करना चाहते। इस वजह से इसकी शिकायत नहीं करते है। इधर जिम्मेदार लोग ही इसे छोटी सी बात कहकर टालने की कोशिश करते हैं। नियमों और कायदों के मुताबिक बैंक भी सिक्के लेने से इंकार नहीं कर सकता। यदि ऐसा है तो बैंक मैनेजर को लिखित में देना चाहिए लेकिन वे भी हाथ खड़े कर देते हैं।

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