सिसकते शहर में विधवा प्रलाप करती राजनीति…
विशेष संपादकीय-नवनीत शुक्ला
श हर में विकास और विनाश की ऐसी बयार चल रही है कि सिसकते शहर में मकानों के उजड़ने पर शहर की राजनीति और जनप्रतिनिधि केवल विधवा प्रलाप की भूमिका में दिखाई दे रहे हैं पर शहर के बाशिंदों के लिए यह भी अच्छी बात है कि वह अब अपनी लड़ाई खुद लड़ना भी सीख रहे हैं। बिना जनप्रतिनिधियों के मैदान में दिखाई देना प्रारंभ हो गये। ताजा उदाहरण सुभाष मार्ग का है, जहां 100 फिट की जद में आ रहे मकानों में लगभग हर मकान 25 फिट तक टूट ही रहा है, जबकि 100 से ज्यादा मकान पूरी तरह ही टूट जाएंगे। 5000 से ज्यादा लोगों के बेघर होने के साथ यह क्षेत्र ऐसे लोगों का भी है जहां कई लोग अब अपना मकान शायद ही खड़ा कर पाएं। कमजोर किस्म की आबादी को रौंदकर जिस सड़क का निर्माण हो रहा है उसमें कई परिवारों के आंसू रुक नहीं रहे हैं। आश्चर्य की बात यह है कि जनप्रतिनिधि केवल यह देखने जा रहे हैं कि मकान के तोड़े जाने में कोई अनियमितता तो नहीं हो रही है, यानि सभी मकान नियमों के अनुसार ही तोड़े जाने चाहिए। किसी को भी रियायत न मिले, जिससे प्रशासन को बदनामी उठाना पड़े। दुर्भाग्य यह भी है कि विपक्ष की हालत भी ऐसी हो गई है कि वे केवल अपना घर बचाने में ही लगे हैं। शायद आने वाले समय में उनके पास केवल उनका ही घर बचेगा। शहर के राजनेताओं को इस बात पर चिंतन करना चाहिए कि कोरोना काल की पहली बीमारी में आपदा प्रबंधन की टीम बनाई गई थी, जिसमें अधिकारी और राजनेता मिलकर निर्णय ले रहे थे, इससे व्यापार भी बच रहा था और बीमारी से भी लड़ाई लड़ी जा रही थी। अब राजनेताओं के दरकिनार होने के साथ ही होने वाले प्रशासनिक फैसलों में मानवीयता का नजरिया समाप्त हो गया है। उनके लिए चौड़ी सड़कें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। सैकड़ों घर उजड़ने का दर्द उन्हें नहीं होगा। दूसरी ओर क्या विकास के नाम पर यही बचा है? कुलकर्णी भट्टे का पुल हो या छावनी रोड, या काछी मोहल्ला या फिर नंदलालपुरा। हर शाम यहां पर जाम लग रहा है। चार साल में भी कुलकर्णी भट्टे का पुल नहीं बनने के कारण एक लाख से अधिक लोग रोज अपने घरों में जाने और आने के लिए 20 फिट चौड़े रोड़ पर लड़ाई लड़ते रहते हैं। यहां कोई टाइमर नहीं लगा हुआ है। पूरे शहर में विकास की एक नीति नहीं है। जब सैकड़ों दुकानदारों के घरों और व्यापार को बचाने के लिए मालवा मिल से पाटनीपुरा रोड़ 85 फिट किया जा सकता है, तो फिर बाकि सड़कों के लिए यह नीति क्यों लागू नहीं हो सकती? पूरे देश में जहां ऐतिहासिक विरासतों को बचाया जा रहा है, ऐसे में विकास का ऐसा तबाही का मॉडल इस शहर के कारोबार को क्या रफ्तार देगा यह तो समय बताएगा, परंतु यह भी जरूर देखना चाहिए कि इसके पूर्व बनाए गए कई बड़े मार्ग आज भी आधे-अधुरे ही खड़े हुए हैं। सबसे ज्यादा जरूरत विकास के मॉडल के साथ कारोबार को बचाना भी है। और इसी के साथ बेघर हो रहे आम जनों के बारे में भी कोई नीति तैयार होना चाहिए, वरना उजड़ रहे घरों के बीच सिसकते लोगों की आवाज शहर की विधवा प्रलाप कर रही राजनीति की आवाज में दब जाएगी।