नैतिकता नहीं : अब सत्ता ही लोकतंत्र का आधार

इ न दिनों पूरे देश को दिन में एक बार नैतिकता का पाठ पूरे जोर-शोर से पढ़ाया जाता है। पाठ पढ़ाना आसान होता है और स्वयं में नैतिकता होना अलग बात होती है। उत्तर प्रदेश के लखीमपुरखीरी कांड में उच्चतम न्यायालय के फैसले ने यह सिद्ध कर दिया कि सरकार अपना काम ईमानदारी से नहीं कर रही है। किसान आंदोलन भले ही समाप्त हो गया हो पर 600 किसानों की सड़कों पर हुई मौत को भूला नहीं जा सकेगा। दूसरी ओर लखीमपुरखीरी में खुद गृह राज्यमंत्री के बेटे आशीष मिश्रा ने जिस तरीके से किसानों को अपनी कार से रौंदा और निर्मम हत्या के बाद खुद गृह राज्यमंत्री यह दावा करते रहे कि किसान खालिस्तान के नारे लगा रहे थे। उनका बेटा घटनास्थल पर मौजूद ही नहीं था। यानी वह चरित्रवान पिता का चरित्रवान पुत्र है। ऐसी निर्मम हत्या वह नहीं कर सकता। यदि यह सही निकला तो वे इस्तीफा दे देंगे। अब एसआईटी की रिपोर्ट के बाद सवाल इस्तीफे का नहीं, अपराधिक प्रकरण दर्ज करने का है। गृह राज्यमंत्री भी इस मामले में उतने ही दोषी हैं जितना पुत्र। वहीं एक ओर सवाल यह भी उठ रहा है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जो पहले दिन से ही सारी जानकारी होने के बाद भी धृतराष्ट्र की भूमिका में अंधे बने हुए थे, चुप क्यों रहे। बनारस के विश्वनाथ मंदिर में जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पूरे देश को आध्यात्मिक नैतिकता का पाठ पढ़ाते हुए बता रहे थे कि जब-जब औरगंजेब आया तो शिवाजी उठ खड़े हुए। यहां तो शिवाजी खुद ही औरंगजेब को सत्ता के हित में बचाने में जुट गए हैं। शायद अब लोकतंत्र में नैतिकता की बात बेमायने हो गई है। अब सत्ता ही लोकतंत्र का आधार हो गई है। उच्चत्तम न्यायालय यदि नहीं होता तो क्या किसानों की निर्मम हत्या पर सरकार अपना चरित्र दिखा पाती? देश में सबसे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति उस वक्त निर्मित होती है, जब सरकार के फैसले न्यायपालिका को लेने पड़ते हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि जब आशीष मिश्रा ने किसानों को अपनी कार से रौंद दिया था, उस वक्त भी उच्चत्तम न्यायालय ने ही उत्तर प्रदेश पुलिस से यह पूछा था कि हत्या की धारा है, क्या बाकी प्रकरणों में भी पुलिस इसी प्रकार का व्यवहार करती है, जिसमें अपराधी के घर पत्र भेजकर पूछा जाता है कि आपके बयान होने हैं, कृपया समय दें? जस्टिस सूर्यकांत ने सरकार की कार्यप्रणाली पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा था कि आरोपी कोई भी हो, कानून को अपना काम करना चाहिए। अब फिर यह सवाल उठ रहा है कि सरकार कोई भी हो, इतनी नैतिकता तो होनी चाहिए कि सामने बैठा किसानों की हत्या करने वाले पुत्र को बचाने वाला गृह राज्यमंत्री स्वयं ही नैतिकता के नाते इस्तीफा दे दे। अब देखना होगा कि देश की सरकार में क्या आध्यात्मिक ज्ञान के बाद नैतिकता का ज्ञान कब जाग्रत होता है?

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