इस बार दो गुना मंहगे हुए पटाखे…

2000 किलोमीटर दूर से आते हैं शहर में पटाखे

इंदौर (धर्मेन्द्रसिंह चौहान)।
पेट्रोल-डीजल के बड़े दामों ने इस बार दिवाली पर होने वाली आतिशबाजी की चमक भी कम कर दी है। जहां महंगी ट्रांसपोर्टिंग ने पटाखों की कीमतों में 20 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी हुई हैं, वहीं कागज और बारूद भी महंगी होने से इस साल पटाखे 30 प्रतिशत तक मंहगे हो गए हैं। जिसके चलते डीलर, व्यापारी के साथ ग्राहकों के माथे पर भी शिकन साफ दिखाई दे रही हैं। बाजार में भीड़ तो बहुत हैं मगर खरीददारी में मंदी का दौर ही चल रहा हैं। इंदौर में 90 प्रतिशत माल 2 हजार किलोमीटर दूर तमिलनाडु के शिवाकाशी से आता हैं।
पिछले दो सालों से रोशनी के पर्व दीपावली पर महंगाई का ग्रहण लगा हुआ हैं। दोपहर टीम ने शहर के बड़े डीलरों से बात की तो उन्होंने बताया कि पिछले साल के मुकाबले इस बार पटाखों की कीमतों में 30 प्रतिशत का उछाल आया हैं। कोरोना महामारी के दौरान लगाए गए लाकडॉउन में बंद पड़े कल-कारखानों में उत्पादन तो शुरू हो गया मगर बड़ते पेट्रोल-डीजल की कीमतों ने हर सामना की कीमतों में वृद्धि कर दी है। यही कारण हैं कि इस साल दीपावली पर पटाखे भी 30 प्रतिशत तक महंगे हो गए हैं। जिससे सिर्फ थोक व्यापारी ही नहीं खुदरा व्यापार करने वाले भी परेशान हैं, महंगाई के कारण पटाखों की बिक्री इस बार अपेक्षाकृत बहुत कम हैं। डीलरों का कहना है कि पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढऩे से माल की ढुलाई-भराई भी महंगी हो गई हैं। इसका असर सभी प्रकार के उत्पादनों पर पड़ रहा हैं। पटाखों का बाजार मंदा हैं, लोग खरीददारी की नियत से बाजारों में जा तो रहे हैं मगर आसमान छूते भाव सुनकर वापस चले जाते हैं। पिछली बार जो पटाखे रस्सी बम 4 रूपए में आता था वह इस बार 8 रूपए का हो गया। वहीं 30 रूपए की चकरी 50, 35 का अनार, 50 में, 10 रूपए की फुलझड़ी 18 रूपए में हो गई। पटाखों की लड़ 20 वाली 28 में, 12 शाट 110 की जगह 140, साइरन चकरी 105 में आती थी, अब 120 हो गई। लैजर शॉट्स 125 से 160 का हो गया, 1 हजार पटाखों वाली लड़ 205 से 240, 2 हजार वाले पटाखों की लड़ 435 से 470, 105 वाली तड़तड़ी 130 में बीक रही हैं। पटाखे खरीदने के लिए इस बार उपभोक्ताओं की जेब पर ज्यादा असर पड़ रहा हैं।
लाकडॉउन में कम उत्पादन हुआ
दो साल से लग रहे लाकडॉउन के कारण सभी छोटे-बड़े कारखाने बंद हो गए थे। इस बंदी के कारण उत्पादन में काफी कमी आई थी। हर कारखानों में कोरोना प्रोटोकाल के तहत कार्य करवाने में असमर्थ कारखाना मालिकों ने अपने उद्योग बंद ही कर दिए थे। जिससे उत्पादन पर काफी असर पड़ा।
क्या हैं ग्रीन पटाखे 
ग्रीन पटाखे आवाज से लेकर दिखने तक पारंपरिक पटाखों जैसे ही होते हैं। इन पर सिर्फ ग्रीन पटाखे लिखा होता है। मगर इन्हें जलाने से निकलने वाली हानिकारक नाइट्रोजन और सल्फर गैस 50 प्रतिशत तक कम निकलती है। पटाखे जलने के बाद बाद इनसे पानी के कण पैदा होते हैं, जिसमें नाइट्रोजन और सल्फर गैस के कण घुल जाते हैं। जिससे प्रदूषण कम होता है।
2 हजार किलोमीटर से आती हैं विशेष रेंज
प्रदेश की औद्योगिक राजधानी इंदौर में पटाखों का बड़ा बाजार हैं। यहां पर 2 हजार किलोमीटर दूर तमिलनाडु स्थित शिवाकाशी से पटाखों की 80 प्रतिशत तक आपूर्ती होती हैं। इसमें पटाखों की सभी प्रकार की रेंज के साथ ही आतिशबाजी की विशेष वैरायटी रहती हैं। इसके अलावा राऊ, ग्वालियर, जबलपुर से भी कुछ विशेष प्रकार के पटाखे आते हैं।

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