शहर में आवारा पशु दिखना बंद हुए तो गिद्धों की संख्या तीन गुना बड़ी

28 से 120 हुई गिद्धों की संख्या,नगर निगम ओर वन विभाग की पहल रंग लाई...

इंदौर (धर्मेन्द्रसिंह चौहान)। इंदौर वन मंडल में गिद्धों की प्रजाति पर विशेष ध्यान दिया गया। जिससे इनकी संख्या तीन गुना तक बड़ गई है। शहर ट्रेंचिंग ग्राउंड खत्म होने ओर स्लाटर हाउस बंद होने से इस प्रजाति की वृद्धि संभव हो सकी हैं। जिससे शहर ओर आस-पास के क्षेत्रों में गिद्ध आसानी से देखे जा रहे हैं। नगर निगम द्वारा मरे हुए पशुओं का व्यवस्थित निस्तारण करना भी गिद्धों की संख्या में बड़ाने में अहम भूमिका निभा रहा हैं। वहीं वन विभाग द्वारा संचालित गिद्ध प्रजन्न पूर्नवास केन्द्र द्वारा समय समय पर विशेष अभियान चलाए जाने से यह संभव हो पाया हैं।
पर्यावरण के संतुलन बनाए रखने में पशु-पक्षियों की भूमिका अहम होती हैं। इसलिए इन पर विशेष ध्यान देते हुए इंदौर नगर निगम और वन मंडल द्वारा चलाए गए अभियान का नतिजा हैं कि शहर में जहां आवारा पशु दिखाई नहीं दे रहे वहीं, गिद्धों की संख्या भी तीन गुना तक बड़ गई हैं। पशुपालकों द्वारा दुधारू पशुओं को दिए जाने वाले डायक्लोफिन ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन पर प्रशासन द्वारा प्रतिबंध लगाना। वहीं नगर निगम द्वारा मृत पशुओं का व्यवस्थित निस्तारण करना गिद्धों की प्रजाति को बड़ाने में अहम भूमिका निभा रहा हैं। वहीं गिद्ध प्रजाती को बचाने के लिए गिद्ध प्रजन्न पूर्नवास केन्द्र की स्थापना 2015 में की गई थी। यह प्रजन्न केन्द्र देश में दूसरे स्थान पर माना जाता है। अब धीरे-धीरे इसका विस्तार भी किया जा रहा है। यही कारण हैं कि 2019 में की गई गिद्धों की के आधार पर इंदौर वन मंडल में जहां गिद्धों की संख्या मात्र 28 थी, जो पांच साल में बड़कर 120 हो गई है। इस केन्द्र का संचालन व प्रबंधन विहार नेशनल पार्क प्रबंधन द्वारा किया जाता है। इस केन्द्र की शुरूआत में पंचमढी से गिद्धों के 6 बच्चों को लाकर रखा गया हैं। अब यही 6 बच्चों से 120 तक गिद्धों की संख्या पहुंच गई है। अब इसी केन्द्र की देखरेख में विशेषज्ञों की देखरेख में इनका प्रजनन कर संख्या बढ़ाई जाती हैं। कुछ दिनों बाद यहां पर हरियाणा से भी 10 गिद्ध को यहां लाया गया था। जिनको भोपाल स्थित प्रजनन केन्द्र में विशेष देख-रेख की जाती हैं। अब गिद्धों के रहवास स्थल को और अनुकूल बनया जा रहा है, इसी साल वन विभाग फिर से गिद्धों की गणना करने का विचार बना रहा है। शहर के नजदीक वन मंडल क्षेत्र में ही स्थित गिदियाखो में अब इन्हें आसानी से देखा जा सकता है। चूंकि गिद्ध सड़े-गले मृत वन्यजीवों को ही खाते है। इस वजह से पर्यावरण का संतुलन बना रहता है। एक तरह से गिद्ध प्राकृतिक स्वच्छता में मदद करता है। केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 2015 में गिद्ध प्रजन्न केन्द्र की स्थापना की गई थी। केन्द्र की सफलता को देखते हुए केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय जल्द ही पांच अन्य राज्यों में भी नए गिद्ध प्रजनन केन्द्र स्थापित करने की योजना पर काम कर रहा हैं। गिद्ध ऊंची उड़ान भरकर इंसानी आबादी के नजदीक या जंगलों में मृत पशुओं व वन्यजीवों को खोज कर उन्हें अपना भोजन बनाता है। हमेशा झुंड में रहने वाले इस परिन्दे को वन क्षेत्र ही अच्छा लगता है। गिद्धों पंख बहुत चौड़े होते है, तथा इतना वजन वजन 5.5 से 6.3 किलो तथा इनकी लंबाई 80, 103 सेमी तक होती है। गिद्धों के खुले पंख 1.96 से 2.38 मीटर तक होते है।
एक इंजेक्शन बना घटती आबादी का कारण
पशु वैज्ञानिक का कहना हैं कि गिद्धों की विलुप्त होती प्रजाति का सबसे बड़ा कारण डायक्लोफिन ऑक्सीटोसिन नामक एक इंजेक्शन हैं। जिसे पशुपालक ज्यादा इस्तेमाल करते हैं, इसे दुधारू पशुओं को लगाया जाता है। जिससे दुधारू पशु अपने बच्चों के लिए रोका गया दुध भी रोक नहीं पाते, ओर पशुपालक को अधिक दुध मिलता है। यह इंजेक्शन अब पशु को लगातार दिए जाने पर, पशु के मौत के बाद जब उसका मृत शरीर को गिद्ध खाते हैं तो इससे गिद्ध के गुर्दे खराब होने लगते हैं और यह धीरे-धीरे मौत के मुंह में समा जाते है।

You might also like
Leave A Reply

Your email address will not be published.