गुस्ताखी माफ़- दो मुंहा काले सांप 5 करोड़ के तो सफेद मुंहा 25 करोड़ के क्यों नहीं…
दो दिन पहले शहर में पांच दो मुंहे सांप मिलने के बाद एसटीएफ की टीम ने इस मामले में चार लोगों को गिरफ्तार कर लिया। हालांकि इसके पहले भी शहर में दो मुंह के सांप मिला करते थे, इसलिए कोई आश्चर्य की बात नहीं है। चूंकि यह काले रंग के दो मुंहा सांप थे, इसलिए ज्यादा चर्चा में नहीं आए। ठीक वैसे ही, जैसे उत्तरप्रदेश के गाजियाबाद के इलाके में काले मुंह के बंदरों ने जमकर उत्पात उछलकूद कर मचा रखा था। दोनों ही जगहों पर कई लोग अपने-अपने हिसाब से व्याख्या कर रहे थे। मैंने कुछ इसलिए नहीं बोला कि अभी कुछ गलत-सलत निकल जाएगा तो काले मुंह के सांप हों या सफेद मुंह के बंदर हों, दिल्ली और भोपाल तक जाने में क्या देर लगती है। समझदार के खिलाफ बोला जा सकता है, लेकिन कूदने-फांदने वालों के खिलाफ बोलना जरा जटिल है। फिर भी सोचा, यदि कुछ हुआ तो कम से कम थोड़ी शहादत में नाम तो लिखा ही जाएगा। राजनीति में भी अब दो मुंहापन बड़े आराम से प्रफुल्लित हो रहा है। सफेदपोश नेताओं के दो मुंहापन से अब सभी वाकिफ हो गए हैं। यह समझ में आ गया कि यह दोनों तरफ अच्छे से चल सकते हैं। जब काले दो मुंहा सांप की कीमत पांच करोड़ हो सकती है तो सफेद दो मुंहा सांप की कीमत पच्चीस करोड़ व्यावहारिक है जो समय के साथ राजनीतिक सड़क पर दोनों तरफ लहराकर चलते हुए माहौल बना लेते है। जब देश के नीति निर्धारण करने वाले और देश के युवाओं के चरित्र का निर्माण करने वाले ही नेता दो मुंहा हो गए हों तो एक मुंहा कार्यकर्ता की उम्मीद करना व्यर्थ होगी। सभी दलों में अब अपने हितों को देखते हुए दो मुंहा ही आगे बढ़ पा रहे हैं। एक मुंहा के लिए कई बार विश्वास का संकट भी खड़ा हो रहा है। जब पूरी दुनिया में ही दो मुंहा की जरूरत बनती जा रही है तो फिर एक मुंहा के लिए संभावनाएं कम रह जाती हैं। काले बंदरों की उछलकूद ज्यादा चर्चाओं में नहीं आती है, पर यदि सफेद बंदरों की उछलकूद शुरू हो जाती है तो अच्छी-खासी सरकारें भी पलटती दिखाई देती हैं। दिक्कत यह है कि प्रजाति कम है तो सुरक्षित रखने के प्रबंध भी सबसे ज्यादा रखने पड़ते हैं। इन पर अत्याचार भी नहीं किए जा सकते। वैसे भी पूरे देश में जानवरों पर अत्याचार को लेकर मेनका गांधी की चिट्ठियां आती ही रहती हैं तो ऐ मेरे प्यारे बंदररूपी मानव या मानवरूपी बंदर या भोले के चरणों में पलने वाले दो मुंहा सर्प, तुझे मेरा प्रणाम। वैसे भी यह प्रजाति अपनी हरकतों से आम आदमी को घायल तो कर सकती है, जो पहले से ही महंगाई और बेरोजगारी से घायल चल रहा है। कूदाकादी करने वाले या लहराकर घूमने वाले जिस दिन हाथ में आते हैं, बस उसी दिन उनकी कीमत पता चलती है। जिन सफेदपोश बंदरों ने कहा मुझ पर भरोसा रखो उन पर उन्हीं की प्रजाति वालों ने भरोसा नहीं रखा जो कभी अहुतपूर्व हुआ करते थे वे अब कमजोर कंधों के कारण भूतपूर्व हो गए है।
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