कैलाश विजयवर्गीय भी उसी हंडी के चावल

स्थानकीय-नवनीत शुक्ला

पि छले कई वर्षों से शहर विकास कार्यों की ऐसी प्रयोग स्थली बन गया है जिसमें प्रदेश के हर अधिकारी ने इंदौर में आकर गंगारूपी जल जमाव का भरपुर आनंद लिया है। शहर का विकास बता रहा हैं कि शहर में अधिकारियों द्वारा हो रहे निर्णय शहर के आम लोगों को कितना त्रस्त कर रहे हैं, वे ही जानते हैं जिनके बच्चे या परिवार के लोग चार इंच बारिश के बाद शहर की लबालब सड़कों पर भगवान के भरोसे चलते हैं। इन्ही प्रयोगों में एक बच्ची भी अपने परिवार से बिछड़ गई। पूरा शहर स्वच्छता और वॉटर प्लस के तमगों के चक्कर में इस कदर उलझ गया है कि कई क्षेत्र में अब रहना भी श्रॉप से कम नहीं है। जिन क्षेत्रों में पानी नही भरा करता था वह क्षेत्र भी अब डूब रहे हैं। शहर की निगम आयुक्त प्रतिभा पाल भी केवल नगर निगम में पदस्थ रहे उनके पूर्वजों के कर्मों का केवल श्राद्ध और तर्पण ही कर पा रही हैं। पिंडदान तो शहर के लोगों ने ही कर दिया है। दो दिन पहले इस शहर की दुरावस्था को लेकर भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को अपने स्वभाव के अनुसार अंतत: बोलना ही पड़ा। वे भी उसी हंडी के चावल है जो अधिकारियों ने चढ़ा रखी है। यह दर्द कैलाश विजयवर्गीय का नही शहर के हर उस व्यक्ति का है जो यह त्रासदी भोग रहा है। दुख इस बात का है कि राष्ट्रीय नेता को शहर की समस्या पर बोलना पड़ रहा है। जबकि स्थानीय राजनेता बोलने को या गलतियां बताने को तैयार नहीं है। कैलाश विजयवर्गीय भी अब खोने-पाने की तमन्ना से ऊपर उठ चुके हैं इसलिए उनका दर्द शहर के दर्द जैसा ही है। नगर निगम में पदस्थ अधिकारी प्रतिनियुक्ति पर आकर इस शहर को बता रहे हैं कि विजन विहिन अधिकारियों की कितनी बढ़ी फौज खड़ी हो गई। शहर के नागरिकों के लिए मिल रहे तमगे भी अब श्राप बन गए है। स्वच्छता के नाम पर तीन सौ करोड़ खर्च हो गए। पांच सौ करोड़ पर अभी और आग लगाना शेष है। शहर की नब्ज को समझने वाले दावा कर रहे हैं कि अधिकारियों की जब तक कोई जवाबदेही तय नहीं होगी तब तक यह शहर ऐसे ही लूटता रहेगा। शहर के चल रहे कार्यों पर पदस्थ अधिकारियों की कोई देखरेख नहीं है और इसी कारण शहर डूब रहा है ड्रेनेज लाईने भर रही हैं क्योंकि बेतरतीब निर्माण ने कई चैम्बर सड़कों के नीचे दबा दिए है। हिंदुस्तान के सबसे बेहतरीन इंजीनियरिंग कॉलेज मे इंदौर का एसजीएसआईटीएस प्रसिद्ध है। यहां के इंजीनियरों को लाखों रुपए के पैकेज दूसरे प्रदेशों में मिल रहे हैं। बेहतरीन इंजीनियरों से सज्जित इस कॉलेज का उपयोग शहर के अधिकारियों ने विकास को लेकर कभी नहीं किया। करोड़ों रूपए सलाह लेने के नाम पर लूटे जा रहे हैं और इस बंदरबाट में सब नहा रहे हैं। ऐसे में कैलाश विजयवर्गीय का दर्द पूरी तरह जायज है और अब यह देखना होगा कि आठ साल से हर बार शहर की सड़के डूबने पर सफेद दरी बिछा कर केवल मातम मनाने वाले अधिकारी अपने किए की कोई सजा पाते हैं या शहर के लोगों को अगले कई वर्ष इस प्रकार के जल रूपी श्राप से संघर्ष करना होगा। अब समय दोषी अधिकारियों को आड़े हाथ नहीं हाथों-हाथ लेना पड़ेगा ताकि वे इस शहर की मूल संस्कृति से भी परिचित हो जाएं।

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