तालिबान द्वारा हमला करके काबुल पर कब्जा करने के संकेत

आज की स्थिति में अफगानिस्तान तालिबानी आतंकवादियों से दहशत में हैं। तालिबानी आतंकवादियों ने काबुल के राष्ट्रपति भवन के पास गोले तथा बम बरसा कर यह स्पष्ट संकेत दे दिया है कि वह कभी भी काबुल पर कब्जा कर सकता है ।दिन में मस्जिद में जब नमाज पढ़ी जा रही थी ।तब अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अब्दुल अशरफ गनी वहां मौजूद थे, और यह बम राष्ट्रपति भवन के पास ही बरसाए गए थे।
इसके पहले तालिबान ने आई,एस,आई तथा पाकिस्तानी समर्थित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा एवं अन्य संगठनों के साथ अफगानिस्तान के मुख्य व्यवसायिक मार्ग पर कब्जा जमाने का प्रयास किया है ।पर अफगानी सेना ने उन्हें काफी दूर तक खदेड़ा था। तालिबान इस आशंका पर काबुल पर कब्जा नहीं कर रहे हैं कि अमेरिका तथा अन्य देश मिलकर हवाई हमला कर सकते हैं। इसके अलावा तालिबान ने भारत और अफगानिस्तान के साथ मिलकर बनाएं महत्वपूर्ण सिंचाई योजना के बांध पर हमला कर कब्जे की कोशिश की जिससे तालिबानी तथा पाकिस्तान के खुले विरोध का संकेत मिलने लगा है।अफगानिस्तान में 1995 से लेकर लगभग दो हजार तक सोवियत रूस का शासन तंत्र काम करता रहा है।तब पाकिस्तान तथा अमेरिका ने तालिबानी आतंकवादी संगठनों को उत्प्रेरित तथा धन एवं शस्त्रों की मदद से उकसा कर सोवियत रूस को वहां से बेदखल करवा दिया था।उसके बाद से अमेरिकी सैनिकों का दस्ता 2001 2021 तक नाटो की सेना के साथ अफगानिस्तान पर एक तरह से शासन तंत्र चला कर अफगानी सैनिकों की तालिबानी आतंकवादियों से रक्षा करता रहा हैतालिबानी आतंकवाद अभी इसी बात से पाकिस्तान पर नाराज है की तालिबानी तथा अमेरिकी युद्ध में पाकिस्तान ने तालिबान का साथ छोड़ा अमेरिका का साथ दिया था। बबबआज की स्तिथि में अचानक अमेरिकी सैनिकों तथा नाटो सैनिकों की वापसी से अफगानिस्तान पर भयानक तालिबानी आतंकवादियों से युद्ध का संकट छा गया है।तालिबान आतंकवादी संगठनों के समूह वाला देश है। और इनकी मूल गतिविधि अत्याचार, दमन, सैनिकों की हत्या नागरिकों से लूटपाट, महिलाओं से बलात्कार एवं वैश्विक आतंकवाद को बढ़ावा देना ही है। ऐसे में अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा न सिर्फ दक्षिण एशिया में अशांति फैलाने वाला है, बल्कि अफगानिस्तान में नारकीय युग की शुरुआत की तरह देखा जा रहा है। अफगानिस्तान में तालिबानियों के कब्जे से कई चिंताएं एक बात सामने आ गई है कि सामरिक महत्व के अफगानिस्तान क्षेत्र में तालिबानी आतंकवादियों का दिनोंदिन बढ़ते प्रभाव से तुर्कमेनिस्तान, ताजिकिस्तान,तुर्क, ईरान, भारत, पाकिस्तान, चीन की चिंताएं बढ़ा दी है। अब तालिबानी हरकतों से अमेरिका,संयुक्त राष्ट्र संघ तथा यूरोपीय देश भी काफी परेशान एवं चिंतित दिखाई दे रहे हैं। क्योंकि तालिबानी आतंकवादियों की हरकतें वैश्विक अशांति की ओर इशारा कर रही है। अफगानिस्तान में तालिबानी आतंकवादियों के डर के चलते लगभग 3 लाख लोग अपने घरों को छोड़कर सुरक्षित जगह में पलायन कर चुके हैं। पाकिस्तान जो हमेशा तालिबान की हिमायत कर उसकी अस्त्र-शस्त्र से मदद करता रहा है, अब तालिबान ने पाकिस्तान को भी धमकी देकर डराना शुरू कर दिया है। पाकिस्तान की मुसीबत यह है कि पाकिस्तान अफगान सीमा पर पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन त हरीके तालिबान और लश्कर के 8हजार से ज्यादा आतंकवादी तालिबान की मदद के लिए तैयार बैठे हैं। सबसे रोचक बात यह है कि इन पर पाकिस्तानी सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है।विगत दो दशकों में पाकिस्तान ने तालिबानी आतंकवादियों की गतिविधि को बढ़ाने के लिए और अफगानिस्तान में तालिबानी सत्ता को विराजमान करने के लिए पाकिस्तान ने पूरी पूरी मदद की है। आज पाकिस्तान खुद असमंजस में खड़ा हुआ है। तालिबानी आतंकवादी अब किसी भी देश के नियंत्रण से बाहर है। ईरान और पाकिस्तान अफगानिस्तान क्षेत्र से लगी हजारों किलोमीटर सीमा की रक्षा के लिए चिंतित हैं। अफगानिस्तान भारत का बहुत पुराना मित्र रहा है, और अफगानिस्तान में सड़क, स्कूल, अस्पताल एवं अन्य महत्वपूर्ण भवन बनाने में अरबों डॉलर की मदद कर चुका है। और अफगानिस्तान में तालिबानी कब्जे से भारत की चिंता एवं इस स्थिति में परिवर्तन जरूर आएग। उधर अमेरिकी प्रशासन के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अफगानिस्तान से अमेरिकी तथा नाटो की सेना के वापस आने पर अफसोस जताया है, उन्होंने कहा कि हमने अब अफगानिस्तान को को तालिबानी आतंक के साए में छोड़ दिया है। चीन भी अपनी लंबी सीमाओं कि आतंकवादियों से रक्षा के लिए चिंतित है।
संजीव ठाकुर
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