बहुमंजिला माफियाओं की हो जाएगी चांदी, ७० प्रतिशत भवनों में है अवैध निर्माण

इंदौर (वीरेन्द्र वर्मा)। राज्य शासन ने नगर पालिका निगम सीमा में तय एफएआर से अधिक निर्माण पर कंपाउंडिंग 30 प्रतिशत कर दिया है। पहले यह 10 प्रतिशत था, यानी 20 प्रतिशत की छूट और बढ़ा दी गई है। इससे आम जनता को तो राहत मिलेगी , लेकिन बहुमंजिला माफियाओं की चांदी हो गई। उनके अवैध निर्माण अब वैध हो जाएंगे। हालांकि अभी इस पर कितने प्रतिशत की दर से शुल्क वसूला जाएगा? वो तय नहीं है। पहले यह रहवासी क्षेत्र के लिए कलेक्टर गाइडलाइन का 5 प्रतिशत और व्यावसायिक क्षेत्र में 6 प्रतिशत तय किया गया है। माफियाओं के ही अनुसार शहर की हर बहुमंजिला में बड़े पैमाने पर अवैध निर्माण है। कई जगहों पर पार्किंग भी नहीं बचा है।
पिछले दिनों राज्य शासन ने नगर निगम सीमा में भवन निर्माण के क्षेत्र में बड़ा निर्णय करते हुए कंपाउंडिंग का दायरा बड़ा दिया है, जिसको अवैध निर्माण भी कहा जाता है। पहले इस निर्माण की जारी भवन अनुज्ञा से 10 प्रतिशत अधिक निर्माण होने पर निर्धारित राशि भरकर उस निर्माण को वैध करा लिया जाता था। शासन ने अब उसी अवैध निर्माण को को वैध करने की सीमा बढ़ा दी है जो प्लाट एरिया का 30 प्रतिशत हो गई है। बताया जा रहा है कि इससे नगर निगम का राजस्व बढेगा, मगर इससे निगम के अधिकारियों खासकर भवन अधिकारी, भवन इंस्पेक्टर और दरोगा की ऊपरी कमाई या भ्रष्टाचार भी बढ़ेगा। हां, इस निर्णय से शहर के मल्टी माफियाओं को बहुत बड़ी राहत मिल जाएगी और कंपाउंडिंग फीस भरकर उनके अवैध निर्माण वैध हो जाएंगे। यह राशि करोड़ों में होगी , लेकिन मल्टी माफियाओं की बिल्डिंग में कीमत भी बढ़ेगी।
इस निर्णय का नुकसान
कंपाउंडिंग की सीमा 10 से बढ़ाकर 30 प्रतिशत करने पर मल्टी माफियाओं को फायदा हो गया है। इसको छोटा मोटा फायदा मानकर नहीं बल्कि बहुत फायदा मानना पड़ेगा , क्योंकि नक्शे के विपरीत निर्माण तो बिल्डर पहले से करते आए है। भवन अधिकारी , इंस्पेक्टर और दरोगा के साथ बिल्डरों की सांठगांठ तो वर्षो से चली आ रही है। बिल्डर अभी ही 10 प्रतिशत की आड़ में 25 प्रतिशत तक का अवैध निर्माण कर लेता है । इस छूट के बाद वो 40 प्रतिशत तक का अवैध निर्माण करेगा , यह बात तय है। इसमें पूर्व में बनी बहुमंजिला इमारतों में अवैध निर्माण को वैध दर्शाने की कवायद शुरू हो जाएगी।
जैसे दस हजार फीट के प्लाट पर एफएआर के अतिरिक्त 30 प्रतिशत कंपाउंडिंग मिलने पर हजारों वर्गफीट का ज्यादा निर्माण होगा और उसको बेचने से बिल्डरों को बहुत फायदा मिलेगा।
इसका शुल्क निर्धारण होगा क्या?
सवाल यह है कि शासन के इस निर्णय के बाद इसका शुल्क निर्धारण होगा क्या ? देश के अन्य राज्यों जैसे कर्नाटक और तमिलनाडु में रहवासी क्षेत्रों में कोई दुकान या व्यावसायिक गतिविधि कर ली गई है तो उसका निर्धारित शुल्क मौके पर ही वसूल करके रसीद बना दी जाती है और रिकॉर्ड में इंट्री कर दी जाती है कि इतना निर्माण तय नियमों से ज्यादा है और व्यावसायिक भी है। इस नियम और निर्धारित शुल्क तय करके निगम बड़ी वसूली कर सकता है। इसके लिए शहर के स्कीम न. 54 , 74 , 71 जैसे कई क्षेत्र है, जिससे तोड़फोड़ भी नहीं होगी और लोगों का रोजगार भी नहीं छीना जाएगा। हां, एक बात जरूर होगी कि वसूली में परेशानी और निगम के अधिकारी भ्रष्टाचार कर सकते है।
इसको ऐसे समझ सकते है
माना कि किसी व्यक्ति का एक हजार फीट का प्लाट है । उसे पहले सामने का एम.ओ. एस.( मार्जिनल ओपन स्पेस ) और साइड का सेट बेक छोड़कर 750 वर्गफीट से ज्यादा की अनुमति नहीं थी । उसमें 1.5 एफएआर मिलता है तो 1500 वर्गफीट के साथ 10 प्रतिशत कंपाउंडिंग का 150 वर्गफीट मिल जाता था। कुल 1650 वर्गफीट निर्माण कर सकता था , इससे ज्यादा नहीं , लेकिन अब यह 1000 वर्ग फुट कब प्लाट पर 300 वर्गफीट निर्माण ज्यादा हो सकेगा । मतलब यह कि अब 1650 वर्गफीट में 20 प्रतिशत और जोड़ने पर 1950 वर्गफीट निर्माण हो सकेगा।
आम जनता को राहत
शासन के इस निर्णय से गरीब और मध्यम वर्गीय आम जनता को राहत मिल गई है। अभी उसको प्लाट एरिए का 50 से 60 प्रतिशत निर्माण की अनुमति तय नियम के आधार पर मिलती थी । इस कारण परिवार बड़ा होने पर भी उसे पूर्ण निर्माण करने में परेशानी आती थी। अब 30 प्रतिशत कंपाउंडिंग की छूट मिलने से उसे सामने का ओपन स्पेस और साइड का हिस्सा छोड़कर प्लाट एरिया में पूर्ण निर्माण की अनुमति मिल जाएगी।

 

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