क्यों खटकते हैं इंदौर प्रेमी अफसर…?

पता नहीं क्यो. हमेशा से अफसरों का इंदौर से प्रेम होना सबको खटकता रहा है... कभी भोपाल में बैठे रहनुमा... कभी जनििप्रतनिधि रह रहकर इस मुद्दे को उठाते रहे है। वैसे कोई भी प्रेम हो... प्रेम तो खटकता ही है...शायद अंदर का ये भाव रहता है कि हाय... हम क्यों ना हुए....? और फिर क्यों ना हो प्रेम...?

प्रदेश का सबसे बड़ा शहर है… अच्छा शहर है… व्यावसायिक नगर है… अच्छे और जिंदादिल लोग है… उत्सवप्रियता का मूड है… बच्चों के लिए शिक्षा के भरपूर अवसर है… बूढ़े माता-पिता के लिए मेडिकल फेसिलिटीज है.. रोजगार की अपार संभावनाएं हैं… खुशनुमा मौसम है… पूरे भारत से आवागमन की अच्छी कनेक्टिविटी है… ऐसे इन्दौर से प्रेम तो होना लाजमी ही है… ऐसे प्रेम में गलत क्या है…?
आखिर हर तरह के प्रेम को कुत्सित नजरों से क्यों देखा जाता है…? प्रेम तो पवित्र है… पावन है.. निश्छल है.. दरअसल दोष रहनुमाओं की नजरों में है.. मन में है… इसीलिए वे ऐसा मानते हैं कि इंदौर लोग पैसा कमाने ही आते हैं। वैसे उनका सोचना भी पूरी तरह से गलत नहीं है.. ऐसे भी लोग है जो इंदौर सिर्फ पैसा कमाने ही आते हैं… पर ये लोग इंदौर से प्रेम नहीं करते हैं… ये येन-केन प्रकारेण पैसा कमाते हैं.. लूटपाट करते हैं और जल्दी विदा भी हो जाते हैं।
ऐसे लोगों को इंदौर अच्छे से पहचान भी जाता है। ये प्रेमी शहर है… पर कमजोर नहीं है। एक सीमा के बाद किसी भी गलत बात को बर्दाश्त नहीं करता है… बिजनेस मेंटिलिटी वाला सहनशील शहर तो है… लेकिन कब… किसको… कब… कैसे और कहां निपटा देता है… पता भी नहीं चलता। ये ताकत भी इसके पास है। यहां के व्यापारी… व्यवसायी… नेता… मीडिया और रहवासी भी सक्षम और ऊंचे सम्पर्कों वाले लोग हैं… यानी जितने जमीन के बाहर… उतने ही जमीन के भीतर…
इंदौर की बात कुछ अलग तो है.. यूं तो इंदौर आना सरल है.. पर रूकना कठिन है.. यहां रूकने के लिए… काम करने के लिए इंदौर से प्रेम करना पड़ता है… समय देना पड़ता है… काम करना पड़ता है। शहर की व्यवस्था और विकास में.. रूटीन की नौकरी से आगे जाकर समर्पित होना पड़ता है। इसलिए यूं तो इंदौर में कई आए और कई चले गए… पर रूक वही पाए जो काबिल थे…जिन्होंने काम किया… जिन्हें इंदौर से प्रेम था।
महत्वपूर्ण बात यह है कि इंदौर प्रेमी अधिकारी अपनी मनमर्जी से नहीं आए हैं… अपनी पोस्टिंग उन्होंने खुद नहीं की है… उनकी पोस्टिंग की है सरकार ने… यदि कोई अधिकारी बार-बार अलग-अलग पदों पर पदस्थ हुआ है तो सिर्फ इसलिए कि शासन ने उनकी पोस्टिंग वहां की है… उनकी योग्यता के आधार पर… उनकी काबिलियत के आधार पर… उन्होंने जो पूर्व में रिजल्ट दिए थे उसके आधार पर। यदि आज कोई उनकी इंदौर पदस्थापना पर प्रश्न उठा रहे हैं तो वे सरकार पर…. मुख्यमंत्री पर और प्रशासनिक व्यवस्था पर प्रश्न उठा रहे हैं।
इंदौर तो है ही सपनों का शहर… मुख्यमंत्री का भी.. प्रशासनिक रहनुमाओं का भी… और कनिष्ठ अधिकारियों/कर्मचारियों का भी। हमारे पुराने मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह सप्ताह में दो दिन इंदौर प्रवास में रहते थे। शिवराजसिंह का तो इंदौर प्रेम जगजाहिर है… वे तो इसने सपनों का शहर करते हैं।
वर्तमान में इंदौर में पदस्थ 50 प्रतिशत अधिकारी इंदौर प्रेमी है और तथाकथित इंदौर प्रशासनिक सेवा के नाम से ही जाने जाते हैं। लेकिन इनकी पोस्टिंग गलत नहीं है… ये पोस्टिंग लूटमार के लिए नहीं हुई है.. इन अधिकारियों की निष्ठा और नीयत पर कोई प्रश्न नहीं उठा सकता है। ध्यान रहे इन्हीं अधिकारियों ने शहर को पहचान दी है वे शहर को समझते हैं… इन्हें इंदौर से प्रेम है… इन अधिकारियों ने शहर के विकास के लिए… समृद्धि के लिए शहर के नेताओं से कम काम नहीं किया है और ये अधिकारी सफल हुए हैं… काम कर पाए है तो अपनी टीम के कारण। उस टीम के कारण जो टीम भी इंदौर से प्रेम करती है।
इन्दौर में कार्य करना एक चुनौती है… इस चुनौती को पूरा करने वाले ही इंदौर प्रेमी है… इंदौर को राष्ट्रीय नक्शे में स्थान दिलाने में इन्हीं अफसरों का अहम योगदान रहा है। इन्हीं के कारण इंदौर साल दर साल लगातार नंबर 1 बना हुआ है। इन्हीं अफसरों के कारण अंगदान जैसे पुनीत और महत्वपूर्ण अभियान में इंदौर का नाम चमक रहा है… इन्हीं के अथक प्रयास से टीसीएस… इन्फोसिस… सिम्बायोसिस… नरसीमुंजी और मेदांता जैसी आईटी… एजुकेशन व हेल्थ के क्षेत्र की नामी कम्पनियों ने इंदौर में निवेश किया है। जिनमें इंदौर के साथ-साथ प्रदेश की सूरत बदलने की भी क्षमता है।
यही नहीं एमआर-10 का विकास हो.. एलआईजी लिंक रोड हो.. सुपर कारिडोर जैसी महत्वपूर्ण योजना हो.. इन सबके पीछे कहीं ना कहीं इंदौर प्रेमी अफसर ही है। विभिन्न क्षेत्रों में इन्दौर को.. प्रदेश को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान व पुरस्कार दिलाने वाले… स्वच्छता में इंदौर को पूरे देश में लगातार नंबर 1 बनाने वाले इंदौर से प्रेम करने वाले अफसर ही हैं।
अगर पूरे प्रदेश में सर्वे कराया जाए तो निश्चित रूप से यह पाया जाएगा कि जो अधिकारी ग्वालियर डिवीजन में नौकरी कर रह हैं, वे लगातार वहीं या आसपास ही घूमते रहते हैं… इसी प्रकार जो लोग भोपाल… रीवा… जबलपुर या सागर में नौकरी की शुरुआत करते हैं या कुछ लम्बे समय तक रह जाते हैं तो वे भी फिर लगातार उसी क्षेत्र में या आसपास नौकरी करते हैं, वहां से हटना ही नहीं चाहते। ऐसा नहीं कि वे भी लूटपाट या सिर्फ पैसा कमाने के लिए नौकरी कर रहे हैं.. दरअसल वहां के लोगों से उनके संबंध हो जाते हैं… परिचय बढ़ जाता है..और वास्तव में उन्हें उस क्षेत्र से मोहब्बत हो जाती और वे शहर के लिए बेहतर काम कर पाते हैं। वे शहर की मानसिकता… शहर की तासीर को पहचानने लगते हैं… वहां की समस्याओं… परम्पराओं और परिस्थितियों से अच्छी तरह वाकिफ हो जाते हैं। वे शहर की आवश्यकताओं को समझने लगते हैं।
पता नहीं ये सारे सवाल सरकारी नौकरियों में ही क्यों खड़े होते हैं…? अन्यथा धर्म हो.. खेल हो… व्यापार हो… व्यवसाय हो.. एजुकेशन हो… हेल्थ हो… राजनीति हो… मीडिया हो… यहां तक कि दादगिरी या गुंडागर्दी हो… सबका इंदौर में काम करने का सपना होता है। वैसे भी अपवाद कहां नहीं होते हैं…? कहां स्वार्थ… भ्रष्टाचार… लापरवाही नहीं है..? कहां गलत नहीं हो रहा…? इसलिए इंदौर प्रेम को दोष देना ठीक नहीं है। ये प्रेम तो उमंग है… उत्साह है.. एक ताकत है जिसके कारण इंदौर एक महानगर के रूप में आकार ले रहा है।
हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग,
रो-रो के बात कहने की आदत नहीं रही।

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