शहर बना प्रयोगशाला : जो एलिवेटेड ब्रिज सबसे बड़ी आवश्यकता था अब वह समाप्त, प्रयोग पर 15 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च!
टेंडर भी हो गए, काम भी शुरू हो गया था, अब नए 6 ब्रिज को लेकर एबीसीडी
इंदौर। ऐसा लगता है शहर अब अधिकारियों और राजनेताओं की प्रयोगस्थली बनता जा रहा है। जिस योजना को पहले शहर के लिए सबसे बड़ी योजना बताया जा रहा था, बाद में वही बोझ हो गई और निरस्त करना पड़़ी। इस प्रयोग में 15 करोड़ रुपए स्वाहा हो गए। हम बात कर रहे हैं बीआरटीएस पर बनने वाले एलिवेटेड कोरिडोर की। तो दूसरी ओर पहले घोषित की गई योजनाओं को भी देख लें। 2014 में 29 गांव शहरी सीमा में शामिल किए गए थे। यहां न सड़क के पते हैं न ड्रेनेज लाइन, न बिजली के। और नगर निगम इन गांव से 300 करोड़ के लगभग टैक्स वसूल कर चुका है। वहीं महापौर यह कह रहे हैं कि पिछले 10 साल में काम नहीं हो पाए।
कल मुख्यमंत्री ने एक बार फिर शहर के विकास को लेकर समीक्षा की और नए सिरे से शहर के विकास का मॉडल भी सामने रखा। इसमें बीआरटीएस पर बनने वाले एलिवेटेड ब्रिज को लेकर कई सवाल खड़े हो गए। इधर पिछले एक साल से इस योजना पर यह बताया जा रहा था कि इससे शहर के यातायात को सुधारने में मदद मिलेगी। पहले चरण के टैंडर भी हो गए तो वहीं रसोमा चौराहे पर इसे लेकर काम भी भी प्रारंभ हो गया। अब इस एलिवेटेड कोरिडोर को निरस्त करते हुए नए 10 फ्लायओवर का प्रस्ताव रखा गया। इस मामले में शहर में पदस्थ रहे अधिकारियों का कहना है कि अब नए सिरे से इसके लिए सर्वे होने के बाद फिर टैंडर प्रक्रिया प्रारंंभ होगी और इस पूरे काम के लिए कम से कम 5 साल फिर लगेंगे। दूसरी और जब एलिवेटेड कोरिडोर को बनाए जाने के बारे में शहर के लोगों को बताया जा रहा था इससे यातायात का दबाव कम होगा। अब कहा जा रहा केवल 3 प्रतिशत लोग ही इसका उपयोग करते।
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इसका मतलब यह है कि पुरानी फिजिब्लिटी रिपोर्ट फर्जी थी। ऐसे में अब दूसरी ओर अब कई सवाल खड़े हो रहे हैं। सरकार के पैसों का कैसा दुरुपयोग हो रहा है यह भी विचारणीय है। पूरा इंदौर प्रयोग स्थली के रूप में देखा जा सकता है। शहर के लोगों की तकलीफों को दरकिनार कर कहीं पर भी सड़़क खोद दी जाती है।
जवाबदेही कोई तय नहीं है। इधर महापौर ने आरोप लगाया है कि पहले ही इन कार्यों पर ध्यान नहीं दिया गया। तो अब सवाल उठता है कि पिछले महापौर और परिषद के अलावा अधिकारी किनके थे और उस समय ध्यान नहीं देने वालों पर सवाल नहीं उठता है? वहीं दूसरी ओर मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने भी सवाल उठाए कि कान्ह नदी के शुद्धिकरण पर पहले ही अत्यधिक राशि खर्च हो चुकी है। नाव चलना तो दूर की बात हो गई है, अब पूरी नदी के लिए फिर से एक बड़ी कार्य योजना बनाना होगा।
इसी के साथ नई योजनाओं पर काम करने के बजाय एक बार सभी पुरानी योजनाओं की समीक्षा कर जिन योजनाओं पर काम होना है उनको प्राथमिकता दी जानी चाहिए और जिन योजनाओं पर सालों से काम नहीं हो पा रहा है उन्हें फिलहाल स्थगित कर देना चाहिए। परंतु अब नए प्रस्ताव के साथ नई तैयारियां भी शहर को देखने को मिलेगी। क्या होगा यह तो समय बताएगा।
10 साल से उलझे हुए हैं 29 गांव विकास के नाम पर, 300 करोड़ से ज्यादा टैक्स वसूला
शहर के 29 गांवों को लेकर भी कल मुख्यमंत्री के समक्ष चर्चा हुई, जिसमें बताया गया कि यहां पर अभी तक सड़़क, पानी, बिजली को लेकर कोई काम नहीं हुआ है। आश्चर्य की बात यह है कि 2014 में इन 29 गांवों को शहरी सीमा में शामिल किया गया था। इनको शामिल करते ही यहां पर नगर निगम ने संपत्तिकर थोप दिया था। अब जिन लोगों ने यहां भूमि पर डायवर्सन करवा रखा था वे सब शहरी सीमा में आ गए और उन्हें करोड़ों रुपए का संपत्तिकर 2014 से 2021 के बीच का देना पड़ा। ऐसे में इन 29 गांवों से लगभग 300 करोड़ से ज्यादा का राजस्व वसूला गया है। यहां अभी भी खेती हो रही है। कुछ भी काम नहीं हो पाया है। ऐसे में पहले इन गांवों को लेकर कोई बड़ी योजना और समय निर्धारण दोनों की जानी चाहिए। दूसरी ओर अब मास्टर प्लान में 79 गांव शामिल किए गए हैं।
इनमें भी कोई योजना का पता तो नहीं है पर मास्टर प्लान आने से पहले धारा 16 के तहत जमकर टॉउनशिप काटने को लेकर धड़ाधड़ अनुमति दी जा रही है। 79 गांव में नक्शे पास करने पर बाद में रोक लगाई तो दूसरी ओर सांवेर के 18 गांव जो मास्टर प्लान में शामिल किए गए उनमें अभी भी नक्शे पास हो रहे हैं, जबकि मास्टर प्लान आने में अभी लंबा समय लगना है क्योंकि अभी शामिल किए गए गांव का सर्वे भी पूरा नहीं हो पाया है। अब नए सिरे से समीक्षा के बाद शहर का विकास कितनी तेजी से रफ्तार पकड़ेगा यह देखना होगा। दूसरी ओर नगर निगम के ठेकेदारों को देने के लिए पैसे नहीं होने पर टैंडर लेने के लिए भी ठेकेदार सामने नहीं आ रहे हैं।