वक्फ बोर्ड के मुखिया डॉ. सनवर पटेल को अब डबल इंजन की सवारी शुरू हो चली है और हो भी क्यों नहीं खैर, पटेल से जितने मुस्लिम कांग्रेसी परेशान है, उससे ज़्यादा मुस्लिम भाजपाई परेशान हैं। 2008 से सनवर पटेल के सितारे बुलंद हैं। वे एक कुर्सी छोड़ने के पहले ही दूसरी पर कुंडली जमाने मे माहिर है। 2008 से ही किसी ना किसी अल्पसंख्यक समाज की अहम जिम्मेदारी पर विराजमान है। जो नेता इन कुर्सियों की चाह रखते हैं। वो सनवर पटेल के ख़ास वी डी शर्मा के हटने की मन्नत मान रहे थे, कि सनवर पटेल के हमसाया हम प्याला को मुख्यमंत्री की कुर्सी से नवाज़ दिया गया। यानी अब सिफ़र् अल्पसंख्यक मामलो में ही नहीं कई सरकार के कामों में पटेल, मोहन यादव का हाथ बटाएंगे अब पटेल से दूरी बनाने वाले नेता ये शेर सुना रहे हैं। ना खुदा मिला ना विसाल ए सनम ना इधर के रहे ना उधर रहे…
कहीं गरम कही नरम…
ठंड में वक्फ बोर्ड की इंदौर जिला कमेटी ने गर्मी दिखाई है। बड़वाली चौकी कब्रस्तान जिसकी मेन रोड की 29 दुकानों का किराया मात्र 200-300 रुपए महीना है, लेकिन वो भी जमा नही होता और एक ही परिवार के पास कई कई दुकानें हैं, इन दुकान दारो में से कुछ ने दूसरों को 5 हज़ार से 8 हज़ार तक दुकान किरायदारी पर दे रखी है। अब मजे की बात ये है कि ये किराया भी ऐसा कनवीनर किराया उगा रहा हैं, जिसका कोई रिकार्ड वक्फ बोर्ड मै है ही नही जब पूरा मामला इंदौर जिला वक्फ बोर्ड के संज्ञान मे आया तो फौरन किरायदार भाड़ेतियो की दुकानें खाली कराई गई है और फर्जी कनवीनर पर एफआईआर की तैयारी है। दूसरी कमेटी का फैसला अब भी ठंडे बस्ते में है। तुकोगंज कमेटी की जांच 6 माह पहले हुई, खान बहादुर का मामला अटका पड़ा है, इनके जवाब का अवाम को इंतज़ार है।
हरिराम नाई…
नेताओ को अपनी दुकान चलाने के लिए बहुत से लोगों की ज़रूरत पढ़ती है, फ्लैक्स वाला, टेंट वाला, चाय वाला, सजने संवरने के नाई और थकान मिटाने के लिए मालिश भी करवाते हैं, रिलैक्स में आने के लिए कई नाई की गॉसिप, लफ्फासी मालिश कराते हुए नेता जी सुनते हैं, कई नाई ये समझते हैं कि नेता जी के खास पठ्ठे हो गए हैं वो खुद को भी नेता समझने लगते है मालिश से आगे मख्खन मालिश करते हैं और चापलूसी की हद पार करते हैं। यहां तक कई ऐसे प_े अपने पिताजी का सर नेम इस्तेमाल करने की बजाए नेता जी का सरनेम यूज करते हैं। इन पट्ठों के मोबाइल नंबर को जब ट्रूकॉलर पर चेक किया गया तो, मेंदोला, विजयवर्गीय लिखा आता है, ऐसे अंभक्तको मेंदोला फटकार लगा चुके हैं उसके बाद मेंदोला का सरनेम हटा के अब्बा का लगाया।
अंधा बांटे रेवड़ी…
अंधा बांटे रेवड़ी अपने-अपने को… ये कहावत इंदौर कांग्रेस में देखने को मिल रही है। जहाँ एक तरफ हालिया चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार अपने घरों के वार्डो से अपनी इज्जत की हिफाजत नही कर पाए, और अल्पसंख्यक इलाको से ही इनकी जमानतों की हिफाजत हो पाई। अब कांग्रेस में रेवडी की तरह कार्यवाहक अध्यक्ष पद बाटें जा रहे है तो अल्पसंख्यक समाज के विरोध के बाद भी इनका कोई पुरसाने हाल नही है। जब भी अल्पसंख्यकों को कुछ देने की बात आती है, तो भजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टी मुस्लिम समाज को नजर अंदाज करती दिखाई देती है।