जिंदगीभर बूत परस्ति की अब मुसलमां होने से क्या फायदा…

भाजपा छोड़कर जा रहे नेताओं पर गोपी नेमा ने कसा तंज....

इंदौर। मध्यप्रदेश में भाजपा ने चुनावों की घोषणा होने से पहले ही पूर्व में हारी हुई सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर दिए। ऐसे में दर्जन भर ऐसी सीटें हैं जहां पर बगावत शुरु हो गई हैं। यह बागी कहीं पार्टी के समीकरण न बिगाड़ दे इसके लिए वरिष्ठ नेताओं को डैमेज कंट्रोल के लिए लगा दिया गया हैं। जिसके तहत इंदौर में भाजपा के वरिष्ठ नेता गोपीकृष्ण नेमा ने उन बागियों को आईना दिखाना शुरु कर दिया हैं जो कभी भाजपा के बैनर तले एक कार्यकर्ता से कईं ऊंचे ओहदे तक पहुंचने के बाद जब उनकी महत्वकांक्षा पूरी नहीं हो रही हैं तो वह पार्टी से ही बगावत करने लगे हैं। छह माह में ४० से अधिक भाजपा नेता दल छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गये हैं। इसमे कई दिग्गज भी शामिल है। कई और नेता भी कतार में लग चुके हैं।

इस मामले में वरिष्ठ भाजपा नेता गोपीकृष्ण नेमा ने एक अनौपचारिक मुलाकात के दौरान कहा कि मेरा व्यक्तिगत सोचना यह हैं कि जो लोग पार्टी मे रहे हैं वह एक ही आरोप लगा रहे हैं कि हमारी उपेक्षा हो रही हैं। जबकि उपेक्षा के बजाय उनकी आकांक्षाएं बलिबत हो रही हैं। इनकी आकांक्षाएं बढ़ रही हैं, और पार्टी ने इनको जितना दिया, उससे ज्यादा इनको चाहिए। परिवर्तन के दौर में ये पार्टी के दिए हुए को वापस रिटर्न करने की बजाय ये अभी तक पार्टी से मांगने की इच्छा हैं, इनकी। ये इनकी सोच हैं, बाकि पार्टी में कोई परिवर्तन नहीं हैं। पार्टी अपने रुटिंन अपनी आईडियोलॉजी पर चल रही हैं, और इनका जाना स्वयं के लिए आत्महत्या करने जैसा काम हैं, और जो स्वयं सलफास खाने को बैठा हैं, तो उसको डॉक्टर भी नहीं बचा सकता है। ये पीढ़ी परिवर्तन का दौर हैं।

यह सब हमें महसूस नहीं होता हैं, और कोई भी संगठन को लंबे समय तक चलाने के लिए नए ब्लड की जरुरत और पूराने को आराम। ये स्वभाविक सहज प्रक्रिया परिवार में होता हैं, समाज में होता हैं, देश में होता हैं। अब उस प्रक्रिया को आप सहज रुप से स्वीकार कर लेंगे तो किसी तरह की कोई तकलीफ नहीं होगी। लेकिन अगर आप अपने को भी उसी दौर में समझेंगे कि हम युवा हैं, और आप वृद्ध रहे हैं, तो ये जो पीढ़ी परिवर्तन के दौर में ये लोग अपने आप में कुंठित होंगे, और इनको तकलीफ होगी, और ये इसी तरह के कदम उठाएंगे। ये अपना-अपना दृष्टिकोण हैं, ब्यूरोकेसी हावी हैं ये एक इल्जाम हैं। आज की तरीख में पिछले वर्षों से तीन के बाद अभी तक कल-आज और कल ये एक शब्द ऐसे हैं कि तीन के पहले का मध्य प्रदेश आज का मध्य प्रदेश और आने वाला मध्य प्रदेश इस पर चिंता और चिंतन जरुरी हैं। ब्यूरोक्रेसी अगर हावी होती तो मध्य प्रदेश बीमारु राज्य से विकसित राज्य नहीं बनता। पार्टी की छवी नहीं बनती।

लगातार भारती जनता पार्टी इसके बारे में यह कह जाता था कि ये दूसरी बार रिपिट नहीं होती हैं। वो कंटिन्यू सरकार बना रही हैं। तो ये ब्यूरोकेसी पर लगाम हैं। ब्यूरोकेसी पर लगाम हैं ब्यूरोकेसी सरकार के कहने पर काम कर रही हैं। पार्टी से हमारी कोई नाराजी नहीं हैं, मुझे चार चुनाव भारतीय जनता पार्टी ने लड़ाए हैं। दो हारा, दो जीता, अभी फिर क्लेममेट हूं कि मुझे लडऩे की इच्छा हैं। हमारे प्रदेश अध्यक्ष जी बोले कि उम्र का कोई पैमाना नहीं हैं, टिकिट में जीत जरुरी हैं, तो मैने अपने जीतने के कारण नेतृत्व के समक्ष बता दिए, कि मैं इन कारणों से जीत सकता हूं, आप मुझ पर विश्वास करें। इससे ज्यादा पार्टी से झगड़ा कर के कोई चीज मांगना या पार्टी का विरोध करके कोई चिज मांगना और या पार्टी के बारे में सार्वजनिक रूप से चर्चा करना ये हमारे संस्कार नहीं हैं। क्योंकि हम पार्टी नहीं परिवार चलाते हैं, ऐसा ठाकरे जी कहते थे।

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हम भारतीय जनता पार्टी के सिपाही के रुप में जाने जाते हैं, और युद्ध के दौर में अगर सिपाही तलवार रखें, और तलवार चलाने की जगह जबान चलाने लगे तो उस रण में नुकसान होता हैं, और परिणाम विपरित होते हैं। सिंधियाजी हमारे बीच में आए हमारी पार्टी को उन्होंने आत्मसार किया। उनके साथ वाले कुछ लोग वापस चले गए। जिन लोगों को हमारी रीति-नीति, हमारा स्वभाव, व्यवहार समझ नहीं आया वो वापस अपने कांग्रेस अपनी पार्टी में चले गए। लेकिन जिनको हम अच्छे लगे वो हममें बस गए। सिंधियाजी हमारे परिवार में आए इनके पहले राजमाता हमारे साथ थी, वह वर्षों तक फाउंडर रही मध्य प्रदेश में। उस वक्त माधवरावजी हमारे साथ नहीं हुए। ये हमारे साथ नहीं हुए, उनकी बहन, बुआ यशोधाजी हमारे साथ हैं। वसुंधराजी हमारे साथ हैं, तो जिसको भारतीय जनता पार्टी में आए और उन्होंने उसको स्वीकार किया तो वो साथ में रह गए।

लेकिन जो लोग नहीं आए और जिनको हम रास नहीं आए वो लोग वापस चले गए। अब जो लोग यहां से जा रहे हैं, एक कहावत हैं मौत खुद नहीं आती, कोई कारण बताती हैं, कि एक्सीडेंट से मर गया, जहर खा कर मर गया। अब ये जाने वाले कोई बहाना तो बताए। सिंधिया जी के बहाने जा रहे हैं। ब्यूरोकेसी के बहाने जा रहे हैं, मैं टिकिट मांग रहा हूं, देंगी तो ठीक नहीं देंगी तो कोई बात नहीं, मुस्कुराकर आगे बड़ो, काम करों पार्टी जीत जाए उससे बड़ी खुशी क्या, मेरी सरकार हैं, मेरे लोग वहां पर बैठे हैं, इससे बड़ी खुशी का कोई कारण हम कार्यकर्ता के लिए नहीं हो सकता, और जिन लोगों को हैसियत से ज्यादा मिला हो आज वो नाराजगी पार्टी नेतृत्व पर करते हैं, जिनको मिला उनकी भूख ज्यादा हैं। वो छोटा कार्यकर्ता जो बेचारा पार्टी के लिए संघर्ष करने के लिए रोड़ पर बैठा हैं, वो आपको देख कर क्या सोचता होगा कि हमको कुछ नहीं मिला तो भी हम लडऩे को तैयार हैं और आपको सब कुछ मिला तो उसके बाद भी आप लडऩे से दूर हो रहे हो, लडऩे की बजाय दुसरी बात कर रहे हो। ये ठीक व्यवहार नहीं हैं, ऐसा मैं मानता हूं।

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