Bhopal Indore Police Commissioner System: सिर्फ थाने अपडेट, अपराध बढ़ते गए
देश की आदर्श पुलिस कमिश्नरी से कई कदम पीछे इंदौर, भोपाल की कमिश्नरी
शार्दुल राठौर
इंदौर। मध्यप्रदेश के दो बड़े शहर भोपाल और इंदौर में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू हुए एक साल पूरा हो गया गया है। इस एक साल में जनता को फायदा मिलने के बजाय कमिश्नरी से पुलिस ही अपडेट हो पाई है। दोनों शहरों के अपराध के पैटर्न और यातायात में कोई सुधार नजर नहीं आया है। पिछले एक साल में कमिश्नरी सिस्टम से अफसरों के प्रमोशन, थानों के अपडेशन और एसडीएम कोर्ट पावर के साथ अफसर रेंक की तनख्वाह बढ़ गई है। निचला स्टॉफ आज भी अनट्रेंड है और अन्य जिलों से उठाकर कमिश्नरी में डाल दिया गया। इसके बावजूद कमिश्नरी सिस्टम में नई भर्ती और बल की कमी पूरी नहीं हो पाई है।
देश मेें मुम्बई और कलकत्ता की पुलिस कमिश्नरी आदर्श मानी जाती है, लेकिन इंदौर-भोपाल की पुलिस कमिश्नरी कर्यप्रणाली में वहां की पुलिस जैसा रुतबा और अपडेशन देखने को नहीं मिला। इसका सबसे बड़ा कारण दोनों शहरों के पुलिस कमिश्नर के पद पर सख्त प्रशासक न होना और राजनीतिक हस्तक्षेप के साथ पुलिस का काम करना देखा जा रहा है।
अब बात करें जनता के फायदे की तो पुलिस कमिश्नरी की सख्ती इंदौर और भोपाल दोनों शहरों में नजर नहीं आई है। पिछले एक साल में अपराध के आंकड़ों को पुलिस कमिश्नरी से पहले शहरी और ग्रामीण थानों को जोड़कर देखें तो अपराध घटने के बजाय बढ़े हैं। हालांकि पुलिस विभाग की ओर से जारी किए गए आंकड़े में जादूगरी कमिश्नरी सिस्टम लागू होने के बाद शहरी और ग्रमीण थानों को बांटने से दिख रही है। थानों को दो भागों में बांटने के बाद अपराधों की संख्या कम नजर आ रही है। थानों पर जनता की शिकायत पर सुनवाई में कोई बदलाव नहीं आया है। आज भी जमीन से जुड़े अपराधों के अलावा सामान्य अपराधों में थानों में जनता की शिकायत को प्रमुखता से नहीं सुना जा रहा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण पुलिस प्रशासन की जनसुनवाई में आने वाली शिकायतें है।
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