गुस्ताखी माफ़: बावलों-उतावलों में चल पड़ी है श्रेय की राजनीति…

बावलों-उतावलों में चल पड़ी है श्रेय की राजनीति…

भाजपा में इन दिनों काम और पराक्रम की राजनीति की बजाय श्रेय लेने की होड़ के चलते अब उतावलों और बावलों की राजनीति के दर्शन रोज करने पड़ते हैं। विषय की पूरी जानकारी और पूरी तरह अनुभवी लोगों से विचार-विमर्श के बाद जो बयान जारी होना चाहिए वह बिना किसी तैयारी के श्रेय लेने के चक्कर में जारी हो रहे हैं। इस मामले की स्पर्धा में सबसे पहले इंदौर के सांसद शंकर लालवानी लगातार भागने के चक्कर में लड़खड़ाकर गिर रहे हैं। उन्हें खुद ही अपनी गलती का एहसास उस वक्त होता है जब पूरे गांव में उनकी गलतियां दिख जाती हैं। इसका मुख्य कारण आसपास के सलाहकार हैं। जैसे सलाहकार होंगे वैसी बुद्धि भी वे देते रहेंगे। सलाहकार बाजार में मलाई समेटने में लगे रहेंगे तो वैसी ही राय वे देंगे।

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सांसद के लिए आदर्श होना चाहिए आठ बार की जीती हुई सांसद सुमित्रा महाजन, जिन्होंने कभी भी श्रेय की राजनीति नहीं की बल्कि शहर के विकास को लेकर तब तक कोई बयान जारी नहीं किया जब तक उन्हें अच्छी तरह से तसल्ली नहीं हुई। इसका उदाहरण अभी ताजा ही है कि सांसद महोदय ने 50 साल पुराने पुल को तोड़कर नया पुल बनाने के लिए भी बयान दे दिया। जबकि इस मामले में नगर निगम के बड़े अधिकारियों ने कहा कि पुल हमारा, फैसला हमको करना है। सांसद महोदय कहां से आ गए। अब श्रेय के चक्कर में एक बार फिर सोशल मीडिया पर सांसद जमकर ट्रोल हो गए। उन्होंने गुजरात का फोटो डालते हुए ंिढंढोरा पीट दिया कि उज्जैन में प्रधानमंत्री का भव्य स्वागत किया गया। भारी जग हंसाई के बाद उन्होंने अपना ट्विट वापस लिया। ऐसे एक नहीं कई उदाहरण हो रहे हंै। समझ नहीं आ रहा कि वे इतनी जल्दी में क्यों हैं। ऐसा लग रहा है 5 साल के कार्यकाल में वे तमाम नेताओं को पीछे छोड़कर विकास के पुरुष के रूप में अपनी पहचान बना लेंगे। जो भी हो उतावलों और बावलों की राजनीति के चलते इंदौर की पहचान राष्ट्रीय स्तर पर हो चुकी है।

ज्योति बाबू ने क्या मामा को पीछे छोड़ दिया…

इन दिनों ज्योति बाबू का परचम तेजी से लहरा रहा है। उनके समर्थक भी इन दिनों उनकी लोकप्रियता के आगे मुख्यमंत्री शिवराजसिंह की लोकप्रियता को पीछे छोड़ रहे हैं। कुछ तो यहां तक कह रहे हैं कि दिसम्बर तक प्रदेश में बड़े फेरबदल होने के बाद मुख्यमंत्री के रूप में भी उनके दर्शन होना शुरू हो जाएंगे। इस मामले में उनके समर्थक दावा कर रहे हैं कि आप शिवराजजी का ट्विटर खंगालो तो पता चलेगा कि लाखों फालोअर हैं पर उनकी डाली पोस्ट पर हजारों भी नहीं आते। जाहिर है मुख्यमंत्री की लोकप्रियता में सोशल मीडिया पर कमी आ गई। ठीक इसके विपरित ज्योति बाबू की लोकप्रियता भाजपा में आने के बाद इतनी बढ़ गई है कि इसे बयां नहीं किया जा सकता। प्रधानमंत्री के श्री महाकाल लोक लोकार्पण की तस्वीर 20 घंटे पहले डाली थी जिस पर 9348 व्यू मिले। 1821 लोगों ने पसंद किया। 481 लोगों ने ट्विट किया। 81 लोगों ने कमेंट किया जबकि ज्योति बाबू ने 16 घंटे मोदी के श्री महाकाल लोक लोकार्पण की पोस्ट डाली तो उस पर 97 हजार व्यू मिले। 13 हजार 500 लोगों ने पसंद किया। 1229 लोगों ने भी ट्विट किया। 229 लोगों ने कमेंट किया। एक मुख्यमंत्री से ज्योति बाबू की लोकप्रियता कितनी ज्यादा है, इससे पता लगता है। दूसरी ओर जब पूछा कि फिर ग्वालियर क्षेत्र में भाजपा का सुपड़ा क्यों साफ हो रहा है तो कहा इसके लिए भाजपा के ही बड़े नेता जिम्मेदार हैं।

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और अंत में….

इंदौर में पदस्थ तीन राजस्व निरीक्षक एक बार फिर सारे जोड़ गणित को धत्ता बताते हुए फिर से इंदौर में ही पदस्थ हो गए। कहना है तबादला कराने से ज्यादा तबादला रुकवाने में खर्च हो गए।

-9826667063

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