गुस्ताखी माफ़: भाजपा धरम, धार के बाद सत्य से मुक्त….वाह.. भाषा ही सुधर गई….

gustakhi maaf (गुस्ताखी माफ़)
(गुस्ताखी माफ़)

भाजपा धरम, धार के बाद सत्य से मुक्त

( गुस्ताखी माफ़) इन दिनों भाजपा में अजीब सी उहापोह की स्थिति निर्मित होती जा रही है। जमीनी और समर्पित कार्यकर्ता मान रहे हैं कि पार्टी को अब न रमेश की जरुरत है और न उमेश की। पार्टी अब कार्यकर्ताओं से मुक्त होकर विशाल जनआबादी की पार्टी हो गई है। यह वही भाजपा है कि इसके कद्दावर नेता के खड़े होने पर भी कार्यकर्ता जोश में भर जाते थे। नारायण फोटो रोड धर्म से लेकर धार तक और उसके बाद सत्यनारायण सत्तन के बोले हुए शब्द खुली हवा में लहराते रहते थे। भाजपा की अपनी मजबूत जमीन ही अपने कार्यकर्ता की आवाज हुआ करती थी। परंतु अब$ कांग्रेसयुक्त होने के बाद धीरे धीरे संस्कृति में भी कांग्रेस का कायाकल्प बनता जा रहा है।

यह बात भाजपा के ही स्थापित और पुराने नेता अब मानने लगे हैं। स्थिति यह है कि कल भाजपा के राज्यसभा सदस्य रहे और पुराने प्रचारक के अलावा संगठन महामंत्री रहे मेघराज जैन ने अपनी फेसबुक वॉल पर इंदौर के नेताओं को लेकर लिखा कि यहां के जनप्रतिनिधि नाकारा हो गये हैं। नौकरशाही के हवाले शहर हो चुका है कोई सुनने को तैयार नहीं है। मोबाइल भी उठाने की जहमत नहीं उठा रहे हैं। दूसरी ओर रेलवे स्टेशन पर वृद्धों को चढऩे उतरने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। ट्रेन कहां बता रहे हैं और कहां से जा रही है इसका भी भगवान ही मालिक है। इस पर लिखा तो बहुत कुछ उन्होंने परंतु चंद घंटे बाद ही उन्होंने पोस्ट डिलिट कर दी। दर्द उनका भी छलक आया जिन्होंने भाजपा में अपना जीवन हवन कर लिया। शहर के स्थापित नेता रहे कई दिग्गज मान रहे हैं कि अब शहर भाजपा को एक पुराना कांग्रेसी और दो पुराने भाजपाई पदों पर बैठकर चला रहे हैं। एक ही कार में तीनों ने अपनी अपनी विधानसभा भी बांट ली है। जमीन पर आधार नहीं है पर भाजपा की धार पर मैदान में जगह बना रहे हैं। हालत यह हो गई है कि सांसद भी दरकिनार होते जा रहे हैं। उनके डमरू भी कोई काम नहीं आ रहे हैं। यह वही भाजपा है जिसके कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय ने अपनी ही भाजपा सरकार यानी पटवा सरकार में कानून व्यवस्था बिगडऩे के बाद इंदौर के पुलिस अधीक्षक अनिल कुमार धस्माना को पूरी ताकत के साथ खिलौनी की बंदूक भेंट की थी। उनका आरोप यह भी रहा कि संगठन की बजाए अब नौकरशाही ही भाजपा की मूल संस्कृति का आधार बन चुकी है। जो भी हो यदि भाजपा के संस्थापक से लेकर भाजपा के स्थापित पुराने नेता विचलित हो रहे हैं तो यह आने वाले समय के लिए भी शुभ नहीं है।

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वाह.. भाषा ही सुधर गई….

दो दिन पहले झाबुआ पु्लिस अधीक्षक का आडियो वायरल होने के बाद उनके द्वारा पुलिसिया संस्कृति में की गई बातचीत के बाद अगले दो दिनों से पुलिस अधिकारियों सहित अन्य अधिकारियों की भाषा और लय फोन पर बदल गई है। सख्त लहेजे वाले भी प्यार से समझा रहे हैं। जो भी हो मुख्यमंत्री ने एक ही निशाने से सभी के संस्कार सुधार दिये हैं। अच्छा हो थोड़े थोड़े दिन में वे खुद ही आम आदमी बनकर बात करके देख ले इससे सच्चाई भी पता लगेगी और संस्कार भी सुधर जायेंगे।

क्या बात है…

पिछले दिनों युवा मोर्चा की होने वाली पत्रकार परिषद में युवा मोर्चा अध्यक्ष सौगात मिश्रा तय समय से एक घंटा देरी से पहुंचे तो पत्रकारों ने उनके आने से पहले ही अपना तामझाम समेट लिया। इस बीच उनके करीबी सलाहकार ने यह नहीं देखा कि सारे पत्रकार चले गए हैं या नहीं। अनुभवहीन पदाधिकारी अनुभव ने उनसे कहा सबको छोटे-छोटे लिफाफे दे देना थे, कहां जाते, यहीं बैठे रहते। जो भी हो, दोनों की साख पर बट्टा लगा। ( गुस्ताखी माफ़)

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