आई.के. सोसायटी चुनाव शह और मात का खेल जारी

मतदान से पहले ही हार जीत की कोशिशें

 islamia karimia society indore
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इंदौर (मेहबूब कुरैशी)।
सालों बाद इंदौर इस्लामिया करीमिया सोसायटी में चुनाव को लेकर भारी बवाल बना हुआ है। सोसायटी पर काबिज कुछ सदस्यों ने अपने आप को इस चुनाव से पीछे हटा लिया है। बावजूद इसके कशमकश जारी है। ऐसा ही हाल ३५ साल पहले भी था जब हाजी अब्दुल गफ्फार नूही साहब और अब्दुल मजीद गौरी साहब चुनावी मैदान में थे। इन चुनाव में एक वोट से नूरी साहब विजयी घोषित हुए थे। और तब ही से वो ही सोसायटी के सर्वे सर्वा थे। दो साल पहले उनके इंतकाल हो गया था। तभी से कयास लगाए जा रहे थे कि एक ही परिवार के कब्जे से आई को को मुक्त कराया जाना चाहिए। $जबकि एक सच यह भी है कि यदि नूरी बाबा की जगह संस्था की बागडोर किसी और के हाथ होती तो संस्था इस मुकाम तक नहीं पहुचती। वैसे तो कई बाते चुनावी घमासान में तैर रही है कहा यह भी जा रहा है कि राजनीति से मुस्लमों को बेदखल करने के मसबे पालने वाली भाजपा के नेता आखिर क्यों इस संस्था में सिर दे रहे है।
निर्वाचन अधिकारी की घोषणा के बाद १० सितमंबर को चुनाव पस्तावित है। इरफान मुलतानी के खिलाफ आदिल खान ताल ठोंक रहै है। बहूप्रतीक्षित इस चुनाव के लिए आईके राजनीति का गढ़ बना हुआ है। हांलाकि राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते यह कोशिश की जा रही थी कि निर्विरोध चुनाव संपन्न हो जाएं लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है।

 

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१७६ सद्स्यों वाली इस संस्था में १० सितंबर को होने वाले चुनाव में खान ने खुद को अलग कर लिया है।भाजपा के एक बड़़े नेता और एक बड़़े मंत्री भी इन चुनाव में खासी दिलचस्पी ले रहे है। वजह है कि ज्यादातर सदस्य कई सालों से इन दोनो नेताओं से जुड़़े हुए है । हांलाकि चुनाव की नौबत आई तो मुलतानी परिवार का ही दबदबा रहेने वाला है। अध्यक्ष का चुनाव लड़़ रहै इरफान मुलतानी पूर्व अध्यक्ष जब्बार मुलतानी के पुत्र जबकि आदिल खान भी सालों से सोसायटी के वरिष्ठ सदस्य है।

 

प्रदेश की सबसे बड़़ी मुसलिम शैक्षणिक संस्था, कभी विदेशी छात्र भी यहां पढ़़ने आते थे

चुनाव को लेकर शहर में भी अब चर्चे होने लगे है। १०० साल से भी पुरानी इस्लामिया करीमिया सोसायटी पांच से भी ज्यादा शिक्षण संस्थान लाती है। इन संस्थानों में पांच हजार से भी ज्यादा बच्चे तालीम हासिल कर रहे है। यह भी सच है कि सासायटी के जिम्मदारों ने इस इदारे को अभी संभाल कर रखा है। कई मुश्किलों के बाद भी इस संस्थान ने शिक्षा के क्षैत्र में बड़़ी कामयाबी हासिल की है। शहर का एक बड़़ा तबका अब भी संस्थान पर ही भरोसा करता है और अपने बच्चों को प्राथमिक से लेकर विश्वविद्यालयीन स्तर की शिक्षा यही दिलाना पसंद करता है।
शहर के विकास में कई बड़़े नाम है जो यहीं से पढ़़ लिखकर बड़़े मुकाम तक पहुंचे है। भाजपा और कांग्रेस जैसे बड़़े राजनीतिक दलों को भी यहीं से कई होनहार नेता मिले है। वर्तमान में नगर निगम मे कई पार्षद है जिनका राजनीतिक जीवन आई के से ही शुरू हुआ । और उन्होने भी यही तालीम भी हासिल की है । पूर्व सचिव प्रोफेसर हलीम खान ने भी लंबे समय खिदमत की और वह पिछले चालीस सालों सोसायटी के कईपदों पर रहै । यह प्रोफेसर हलीम खान की ही कोशिशे थी कि प्रदेश का पहला बड़़ा कम्प्यूटर सेंटर आईके में ही स्थापित किया गया था। साठ,सत्तर और अस्सी के दशक में संस्था ने पूरे प्रदेश में अपना अलग मुकाम बना लिया था। उसी दौर में कई विदेशी छात्र भी आई के कॉलेज में तालीम हासिल करने आते थे।
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