14 लाख करोड़ की योजनाएं या रेवड़ी

नीति आयोग ने भी खाद्य सब्सिडी कम करने की अनुशंसा की, दी गई राहत को लेकर सरकार के पास कोई आंकड़े नहीं

नई दिल्ली (दोपहर आर्थिक डेस्क)। एक ओर जहां प्रधानमंत्री ने कई राज्य सरकारों द्वारा दी जा रही राहत को रेवड़ी बताते हुए कहा है कि इससे देश का कोई भला नहीं हो रहा है।

अब यह विषय बहस का बनने के बाद जब इस मामले में रेवड़ी, गजक या राहत के अलावा लाभार्थी के गणित का आंकलन किया गया तो जो परतें खुलकर सामने आई है वह बता रही है कि हमाम में सब नहा रहे हैं। फर्क इतना है कि मेरे दाग तेरी सफेदी से ज्यादा नहीं है। सरकारों द्वारा कई जगह राजनीतिक लाभ के लिए रेवडी और गजक की तरह कई विभागों का उपयोग किया जा रहा है। इसमें सबसे ज्यादा दुर्दशा बिजली विभाग की हो रही है।

पिछले दिनों नीति आयोग ने इस प्रकार की तमाम सब्सिडी और राहत को लेकर सरकार को अपनी एक रिपोर्ट भी सौंपी थी। इसमें कहा गया था कि सबसे पहले सरकार खाद्य सब्सिडी को तुरंत कम करना चाहिए। इसे घटाकर 90 करोड़ से कम कर 72 करोड़ लोगों तक लाना चाहिए। इससे सरकार का 41 हजार करोड़ रुपया बचेगा। इस सब्सिडी से अभी भी 41 प्रतिशत लोग वंचित हैं, जिन्हें इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। दूसरी रिपोर्ट इलेक्ट्रिक वाहनों की सब्सिडी 2031 तक जारी रखने की सलाह दी थी, इससे 2 करोड़ वाहन की संख्या बढ़ जाएगी। वहीं केन्द्र सरकार द्वारा उद्योगों को दी गई 1.11 लाख करोड़ की सब्सिडी का रोजगार क्षेत्र में कोई लाभ नहीं मिला। वहीं 68 हजार करोड़ रुपया किसानों को सम्मान निधि के रूप में दिया जा रहा है।

इससे किसानों की आर्थिक स्थिति में क्या लाभ हुआ, इसका कोई आंकलन सरकार के पास नहीं है। अब इसे चुनावी रेवड़ी या राहत माना जा रहा है। इसके अलावा 14 कॉर्पोरेट घरानों को दी गई 193 लाख करोड़ रुपए की सब्सिडी का परिणाम का भी आंकलन नहीं है। केन्द्र सरकार की 740 योजनाएं ऐसी हैं जिन पर 11.88 लाख करोड़ रुपया आवंटित किया जा रहा है। इनमें कई योजनाएं नाम बदल कर भी चलाई जा रही है। अभी तक इन योजनाओं से कितने लोगों को सक्षम बनाया गया, इसकी भी कोई जानकारी नहीं है।

दूसरी ओर यही स्थिति राज्य सरकारों की भी हो गई है। उनके घाटे खतरनाक स्तर पर बढ़ गए हैं। फिर भी कर्ज लेकर घी पी रही हैं। खासकर बिजली के नाम पर 27 राज्यों में रेवड़ी बांटी जा रही है। राज्यों में लागू सब्सिडी योजनाओं पर 4.42 लाख रुपया हवन हो रहा है। इनमें से कई योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट भी चढ़ी हुई है। वर्ष 2015-16 में नेशनल इनवेस्टमेंट पर्सनल फायनेंस द्वारा किए सर्वे में कहा गया था कि खाद्य सब्सिडी के अलावा सभी प्रकार की योजनाएं रेवड़ी ही हैं।

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