पुलिस कमिश्नरी फ्लाप, अपराधों पर कोई नियंत्रण नही

दैनिक दोपहर सर्वे: शहर के आम लोगों का मानना है

इंदौर (धर्मेन्द्र सिंह चौहान)।

पुलिस कमिश्ररी को इंदौर में लागू हुए आठ माह पूरे हो चुके। इन आठ माह के बाद भी शहर के बाशिंदों का मानना है कि यह प्रयोग पूरी तरह फ्लाप रहा शहर में कहीं पर भी इस प्रयोग का असर दिखाई नहीं दिया। महिलाओं का मानना है कि लूटपाट और हत्या जैसे अपराध और ज्यादा बढ़ गये हैं। जिनपर केवल कागजों पर ही नियंत्रण दिखाई दे रहा है। परिणाम यह हो रहा है कि पूरा शहर ऐसे अधिकारियों के जाल में उलझ गया है कि यदि वे सादी ड्रेस में खुद ही घूम ले तो उन्हें उनकी और पुलिस की दोनों ही हैसियत का परिचय हो जाएगा। कई थानों के आरक्षक प्रधान आरक्षक ऐसे है जिन्हें यह भी नहीं मालूम है कि कौन सा अधिकारी कहां पर पदस्थ है। दैनिक दोपहर ने इंदौर पुलिस कमिश्ररी को लेकर पांच सौ से अधिक महिलाओं के अलावा उद्योगपतियों और राजनेताओं से बातचीत के बाद पाया कि इंदौर पुलिस कमिश्ररी को कोई भी सफल मानने को तैयार नहीं है।

इंदौर शहर में पुलिस कमिश्ररी सिस्टम लागू होने के बाद ना क्राइम कंट्रोल हुआ और ना ही लूटपाट की घटनाएँ। केवल यातायात के क्षेत्र में जरुर कुछ मानकों पर बेहतर परिणाम के लिए लोगों ने अपना विश्वास जताया। ९ दिसंबर को मध्यप्रदेश सरकार ने इंदौर शहर में पुलिस कमिश्ररी सिस्टम लागू किया था। इसे लेकर बड़े पैमाने पर शहर में बदलाव किए गए। पुलिस विभाग के ही सेवानिवृत्त अधिकारी मानते है कि अधिकारियों का नियंत्रण नहीं है।

अजयसिंह चौहान रिटायर्ड डीएसपी का कहना है कि पुलिस कमिश्ररी के दो बिंदु होते हैं लॉ एंड आर्डर और यातायात। ट्रैफिक कंट्रोल के लिए पुलिस का फोर्स बढ़ाना होगा। इससे और ज्यादा लाभ मिलेगा। वहीं आर्ट एंड कामर्स कालेज की प्रोफेसर वंदना जोशी का कहना है कि इंदौर में कमिश्ररी प्रणाली लागू होने के बाद जनमानस को यह उम्मीद जगी थी कि शहर में गुंडागर्दी में सुधार होगा पर निराशा ही हाथ लगी। पिछले तीन महीने के ही अपराध इस प्रणाली की पोल खोल रहे हैं।

दूसरी ओर यातायात व्यवस्था के नाम पर चौराहों पर चालान काटे जा रहे हैँ। पदमश्री जनक पल्टा का कहना है कि शहर में महिलाओं को स्वावलंबन बनाने वाली योजनाओं को महत्व देना होगा। जो महिला परामर्श केंद्र बंद कर दिये गये हैं उन्हें फिर शुरु करना होगा। इसके अलावा इस समय शहर के बाहरी इलाकों में ज्यादा अपराध हो रहे हैं इसके लिए विशेष बल तैयार करना होगा।

अशासकीय संस्था की संचालिका अनुपा गोखले का मानना है कि इस व्यवस्था का असर कुछ समय बाद देखने को मिलेगा। डॉ. दीपमाला गुप्ता का कहना है कि पुलिस कमिश्ररी सिस्टम, पुलिस प्रणाली अधिनियम १८६१ पर आधारित है। इसमे कई सुधार की जरुरत है। दूसरी ओर अलग अलग क्षेत्रों में पांच सौ से अधिक महिलाओं ने माना कि शहर में ना तो गुंडागर्दी कम हो रही है और ना ही अपराध कुछ महिलाओं का कहना था कि किसी जमाने में इसी शहर के मार्गों पर बड़े अधिकारी खुद ही व्यवस्था को नियंत्रित करते दिखते थे। परंतु आजकल के अधिकारी केवल कमरों से बैठकर ही पूरे शहर का संचालन और संधारण कर रहे हैं।

6 वां प्रयास में की लागू

पहली बार 1981 में इस सिस्टम को लागू करने की पहल हुई थी। तब से लेकर अब तक कई सरकारों में इसको लेकर प्रयास हुए। इतने सालों में यह 6वां प्रयास है, जब 40 साल की लंबी कवायद के बाद इंदौर भोपाल में 9 दिसम्बर 2021 को पुलिस-कमिश्नर सिस्टम लागू किया गया।

डीजीपी भी व्यवस्था से नाखुश

पिछले दिनों मध्यप्रदेश के डीजीपी सुधीर सक्सेना ने भी इंदौर की कानून व्यवस्था की बदहाली को लेकर पुलिस आयुक्त और अन्य अधिकारियों को अपनी नाराजगी व्यक्त की थी और इसी के चलते इंदौर में बड़े पैमाने पर पुलिस अधिकारियों के थोक तबादलों की तैयारी की जा रही है। अभी जो अधिकारी यहां उच्च पदों पर पदस्थ है उनके तमंगे में कोई बड़ी उपलब्धि दर्ज नहीं है।

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