नर्मदा के 15 क्यूमेक पानी से 7 साल में नही सूखा सागर

83 साल से पश्चिम क्षेत्र की बुझा रहा है प्यास

इंदौर। शहर के पश्चिमी क्षेत्र की बड़ी आबादी की 1939 से प्यास बुझाने वाला शहर का सबसे बड़े तालाब में नर्मदा का पानी छोड़ने से गर्मी के दिनों में भी यह लबालब भरा रहता है। इस तालाब में बड़वाह से बड़ी कलमेर तक भूमिगत पाइप लाइन के जरिए नर्मदा का पानी पहुंचाया जा रहा है। 4 पम्प हाउस के सहारे 426 मीटर की ऊंचाई से नर्मदा का 15 क्यूमेक पानी गंभीर नदी के माध्यम से इसमे 7 साल से पहुंचाया जा रहा है, यही कारण है कि इन सालो में यह एक बार भी नही सूखा।


सरकार व नगर निगम के अधिकारियों ने नर्मदा की आस में शहर के 56 तालाबों को बर्बादी की कगार पर खड़ा कर दिया है। इसमे नर्मदा का पानी छोड़ने से पहले गर्मी के दिनों में कई जगह से ऊंचे ऊंचे टीले दिखाई देने लगते थे। सफाई व गहराई के नाम पर सिर्फ इसकी चैनल ही साफ की जाती थी। सूखे तालाब के अंदर कई जगह खेती होने लगी थी। नदी जोड़ो अभियान के तहत 7 साल पहले गंभीर नदी में बड़वाह से नर्मदा का पानी लिफ्ट कर छोड़ा जा रहा है। यही कारण है कि शहर का सबसे बड़ा व पुराना यशवंत सागर तालाब पिछले 7 सालों से लबालब भरा रहता है। राज्य सरकार की 1852 करोड़ रुपए की महती नर्मदा-मालवा-गंभीर लिंक सिंचाई परियोजना का ही यह परिणाम है कि अब यहां पानी की कमी नही रहती है। नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (एनवीडीए) का यह प्रोजेक्ट सफलता की कहानी खुद बयां कर रहा है। यहां पर चार पंप हाउस की मदद से नर्मदा का 15 क्यूमेक पानी गंभीर नदी में छोड़ा जा रहा है। 74 किमी मेन राइजिंग पाइप लाइन और यहां से 70 किमी डिस्ट्रीब्यूशन पाइप लाइन भी बिछाई गई है। तालाब की चैनल नर्मदा के पानी से लबालब भारी होने से निगम द्वारा पिछले तीन सालों से यहां न तो सफाई की गई और न ही इसका गहरीकरण किया गया। तालाब में कई जगह बड़े बड़े टापू बन गए है। जिनके ऊपर कई लोग अवैध तरीके से खेती कर रहे है। गर्मी के दिनों में यहां पर ककड़ी, खरबूज, तरबूज की खेती बाड़ी मात्रा में कई जाती है। जबकि अन्य दिनों में सभी प्रकार की सब्जियों की खेती बड़ी मात्रा में लोग बेख़ौफ रहे है। इन्हें न तो जिला प्रशासन रोकता है न ही नगर निगम।

एक नजर में यशवंत सागर
यशवंतराव होलकर द्वितीय द्वारा 1939 में गंभीर नदी में 70 लाख की लागत से बांध बनवाया गया था। यह बांध लगभग 2,650 हेक्टेयर में फैला हुआ है। उस समय होलकर रियासत की सबसे महंगी योजना थी, जिसने इंदौर शहर में सालो तक पानी की समस्या को नहीं पनपने दिया। उस समय इसके निर्माण में तांबे के पाइप बिछाए गए थे। पितृ पर्वत पर इसका फिल्टर प्लांट लगा हुआ है। जिससे पश्चिमी क्षेत्र में पानी की सप्लाई की जाती है।

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