इंदौर नगर पालिका 1870 में आई थी वजूद में

1870 तक इंदौर में कुल 10731 मकान थे जिसमें 56730 नागरिक निवास करते थे

इंदौर। ( मेहबूब कुरैशी ) देश का सबसे साफ शहर इंदौर अपनी शुरूआत में भी ऐसा ही था। उस समय के अंग्रेज अधिकारी और भी शहर के लोगों $की जागरूकता के कायल थे। होलकर शासन के साथ ही इंदौर धीरे-धीरे विकास की यात्रा शूरू कर चुका था। सेट्रल इंडिया का प्रमुख व्यापारिक केंद्र होने की वजह से अन्य प्रांतों के लोग यहां पर आने लगे थे। अफीम की खेती के लिए मशहूर इंदौर नगर में तेजी से आबादी बढ़ी थी। यही कारण है कि शहर में गंदगी होने लगी थी। गटरें नहीं होने की वजह से सड़कों पर ही पानी बहता था। १८६६ में महारानी को इंदौर रेसीडेंसी से एक पत्र लिखा गया था। इस पत्र में कहा गया था कि इंदौर की आबादी तेजी से बढ़ रही है। यहां पर साफ सफाई की व्यवस्था करना बेहद जरूरी है। इस पत्र के बाद १८६९ में शहर के कुछ व्यापारी महाराजा तुकोजीराव (द्वितीय) से मिले थे इस बैठक में शहर फैल रही गंदगी पर विचार किया गया था। तब इंदौर रेजिडेंट और महाराजा की स्वीकृति से १९७० में नगर पालिका का गठन किया गया। इसके सभी सदस्य मनोनीत थे। नगर पालिका की मदद के लिए १२००० रू, का अनुदान भी महाराजा की तरफ से दिया गया। ये अनुदान शहर की साफ सफाई के लिए था। इस दौर में शहर में सिर्फ दस हजार मकान थे जिसकी आबादी लगभग पचास हजार थी।

नागर पालिका ने किरएदार रखने वालों से पहली बार वसूला कर
$कई सालों तक महराजा द्वरा संचालित यह व्यवस्था चलती रही। शहर बड़ा हो रहा था और नगर पालिका को अपने खर्च के लिए राशि कम पड़ने लगी तब महाराज ने शहर के नागरिकों पर कर लगाने की अनुमति पालिका के सदस्यों को दे दी थी। सबसे पहले इंदौर नगर पालिका के द्वारा सिर्फ उन लोगों से कर वूसला गया जो अपने मकानों को किराए से देते थे। नगर पालिका की यह तरकीब काम कर गई पहली बार ही ३६००० रू कर वसूला गया। इससे शहर की साफ सफाई पर खर्च किया जाता रहा। साफ सफाई के बाद नगर की प्ऱकाश व्यवस्था भी एक बड़ी समस्या बन कर उभर रही थी। यही वजह हे कि नगर पालिका को साफ सफाई के साथ ही प्रकाश व्यवस्था का भी जिम्मा सौपा गया। ‘८ॉॉ१८८५ में पहली बार शहर को प्रमुख चौराहों और घनी आबादी में चिमनियां जलाने का दौर शुरू हुआ। नगर पालिका का कर्मचारी शाम को हर चौराहे पर लकड़ी खंबे में लगे लैंप में ईधन डालता था। यहां यह बात रोचक है कि चिमनियों में तेल उतना ही डाला जाता था जो सुबह तक चल सके। सुबह होते होते यह चिमनिया अपने आप बुझ जाती थी। १९०३ तक चिमनियों से लाईट व्यवस्था की जाती रही । इसके बाद गैस बत्ती से चौराहों को रोशन किया जाने लगा। एक रिपोर्ट के मुताबकि इस काल में शहर में कुल २५३ जगह लैंप जलाए जाते थे।

पहली बार सन,१९१२ में इंदौर नगर पालिका के हुए थे चुनाव

१९७० से लेकर १९०४ तक नगर पालिका की व्यवस्था ऐसी ही चलती रही। महाराजा और अंग्रेजी अफसर द्वरा चुने गए लोग ही नगार पालिका की पूरी जिम्मेदारी संभालते थे। मकान मालिकों कर वसूलने से से भी कई व्यापारी नाराज थे। इसी कारण नगर में नगर पालिका पर भरोसा कायम रखना कठिन हो चला था। इसी को ध्यान में रखते हुए महाराजा तुकोजीराव ने यह तय किया कि अब पांच सदसीय समीति शहर की देखरेख करेगी। नगर में सबसे पहला चुनाव १९१२ मे कराया गया। इस दौरान नगर पालिका के सदस्यों की संख्या ३० थी। इनमे से १५ सदस्यों का चुनाव होता था और १५ सदस्य रेसीडेंसी और महाराजा द्वारा मनोनित होते थे। १९०४ तक नगर पालिका का कोई लिखित विधान नहीं था इसलिए कई वाद विवाद भी उभरकर सामने आ रहे थे। इस कारण नगर पालिका को अब कानूनी अधकार भी दिए गए। एक न्यायाधीश की भी नियुक्त की गई जो आम नागरिकों और नगर पालिक के बीच हुए विवादों का निपटारा करवाता था। मौजूदा रेजिडेंट कर्नल एक डी डैली ने इंगलैण्ड पत्र लिखकर इंदौर की शासन व्यवस्था के बारे में विस्तार पूर्वक बताया था। और कर्नल ने शहर की खूब तारीफ की थी। यहां की साफ सफाई और नगर पालिका की कार्य प्रणाली को लेकर सरकार बहादुर भी प्रसन्न थे।

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