भारतीय सिनेमा के कॉऊ बॉय के रूप में पहचाने जाने थे

27 अप्रैल को फिरोज खान की पुण्यतिथि के अवसर पर

इंदौर। 27 अप्रैल को एक ऐसे फिल्मकार की पुण्यतिथि है, जो भारतीय होते हुए भी जिनका रहन सहन पाश्चात्य शैली का रहा है। उनकी कुछ फिल्मों में भी वो युरोपियन कॉऊ बॉय जैसे नजर आये थे। ये है निर्माता- निर्देशक- अभिनेता ‘फिरोज खानÓ।
आपका जन्म सन् 1929 में हुआ था। पिताजी ‘सादिक अली खानÓ अफगानिस्तान के पठान थे तथा माताजी ‘ईरानÓ की निवासी थी। फिरोज खान की पढ़ाई लिखाई ‘बेंगलोरÓ के ‘सेंट बिशप कॉटन बॉय स्कूलÓ तथा ‘सेंट जर्मेन हायस्कुलÓ में हुई।
आपकी फिल्म यात्रा शुरू हुई सन् 1960 में फिल्म ‘दीदीÓ की एक छोटी-सी भूमिका से, धीरे-धीरे कम बजट वाली और छोटी भुमिका वाली फिल्मों में काम मिलने लगा। सन् 1965 में निर्देशक- फणी मजुमदार की फिल्म ‘ऊंचे लोगÓ में बड़ा अवसर मिला, क्योंकि साथ में थे – अशोक कुमार साहब, राजकुमार साहब और तनुजा, लेकिन इस फिल्म से भी फिरोज खान को कुछ लाभ नहीं हुआ। उन्हें कम बजट वाली फिल्मों में ही काम करना पड़ा, लेकिन अब वो इनमें नायक की भूमिका में नज़र आने लगे जैसे – टारजन गोज टू देहली ‘चार दरवेशÓ और ‘एक सपेरा एक लुटेराÓ जैसी फिल्में। इसके बाद उन्हें सहायक अभिनेता की महत्वपूर्ण भूमिकाएं मिलने लगी।

ये फिल्में थी ‘आरजूÓ आदमी और इन्सान, सफर, आदमी और इन्सान के लिये उन्हें फिल्म फेयर के श्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार प्राप्त हुआ था। इसके बाद इनकी कुछ मुख्य फिल्में रही – खोटे सिक्के, शंकर शंभु, प्यासी शाम अपने छोटे भाई ‘संजय खानÓ के साथ आपने – मेला, उपासना, नागिन में काम किया है।
सन् 1971 में उन्होंने स्वयं की निर्माण कंपनी ‘एफ के फिल्मÓ की स्थापना करके ‘अपराधÓ फिल्म का निर्माण और निर्देशन किया। इसके बाद उन्होंने धर्मात्मा फिल्म बनाई जिसे जबदस्त सफलता मिली। उनकी अंतिम फिल्म वेलकम थी।
उनके पुत्र ‘फरदीन खानÓ वर्तमान समय के व्यस्त अभिनेता है। सन् 2009 में फिरोज खान का निधन हो गया उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।
– सुरेश भिटे

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