लंबे संघर्ष के बाद उन्होंने अपना स्थान कायम रखा
3 फरवरी को 'कुलदीप कौरÓ की पुण्यतिथि पर स्मरण
इंदौर। हिन्दी फिल्मों के सुनहरे युग में कई अभिनेत्रियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है, जो लगभग सभी नायिका का काम करती थी, इनमें खलनायिका की भूमिका करने वाली कुछ गीनी चुनी अभिनेत्री रही है इनमें एक नाम आता है- कुलदीप कौर जिनकी दिनांक 3 फरवरी को पुण्यतिथि है।
आपका जन्म सन् 1937 में अविभाजित भारत के ‘लाहौरÓ में एक पंजाबी परिवार में हुआ था, दो वर्ष की आयु की थी कि पिताजी का स्वर्गवास हो गया, उन्हें बचपन से कड़ा संघर्ष करना पड़ा, इसलिए उनमें अल्हड़पन, शोखपन, चंचलता, नटखट पन और लड़की होते हुए भी बहुत सारे लड़को के गुणों का समावेश हो गया, व्यवहार लड़को जैसा हो गया, स्कूली नाटकों- ड्रामे में भी लड़को की भूमिकाएं निभाती रही।
कुलदीप अभी केवल 14 वर्ष की आयु की थी कि उनका विवाह पंजाब के जाने माने- सम्पन्न परिवार के ‘मोहिन्दरसिंहÓ से कर दिया गया, 16 वर्ष की आयु में वो माँ भी बन गयी, इसके बाद उन्हें फिल्मों में जाने का अवसर भी मिला।
उस जमाने में हमारे देश के तीन शहर फिल्म निर्माण के केन्द्र थे – लाहौर, मुंबई और कलकत्ता कुलदीप ने अपना कैरियर- लाहौर से शुरू किया जहाँ उनकी पहली फिल्म थी – निर्देशक रूप के शौरी की ‘मुखडाÓ फिल्म रिलीज होती उसके पूर्व देश का विभाजन हो गया, कई कलाकार जो लाहौर फिल्म इन्डस्ट्री से जुड़े हुए थे भारत में मुंबई आ गये
कुलदीप कौर ने फिल्मों के लिये कोशिश शुरू की निर्देशक और छायाकारों ने उनकी सूरत शक्ल, हाव भाव कुछ कुछ विदेशियों जैसा चेहरा होने से उन्हें चरित्र और खलनायकी की भूमिका निभाने की सलाह दी जो कुलदीप ने मान ली, उस समय फिल्मों में खलनायकी की भुमिका करने वाली अभिनेत्रियों की कमी थी, कुलदीप कौर को इस बात का फायदा मिला और इसी प्रकार की भुमिका लगातार मिलने लगी, भारत में उनकी पहली फिल्म थी पंजाबी भाषा की ‘चमनÓ जो सफल रही।
सन् 1960 कुलदीप कौर का स्वर्गवास हो गया, उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।
-सुरेश भिटे