निजता एवं तकनीकी के बहाने उड़ाई जा रही सूचना का अधिकार अधिनियम की धज्जियां

60 फीसदी आवेदनों को कर दिया जाता है येन-केन-प्रकारेण खारिज

इंदौर (आशीष साकल्ले)। बात चाहे राज्य सरकारों के विभागों की हो या केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों की, सभी जगह जिनता एवं तकनीकि के बहाने से सूचना का अधिकार अधिनियम की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही है। हालात कितने संगीन है, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि लगभग ६० फीसदी आवेदन तो येन-केन-प्रकारेण खारिज कर दिए जाते है। यही वजह है कि विभिन्न शासकीय विभागों में सूचना के अधिकार कानून के पहरेदारों की संख्या निरंतर घटते जा रही है।
उल्लेखनीय है कि शासन प्रशासन की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता लाने, फर्जीवाड़े एवं भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाए जाने तथा भ्रष्टाचारियों को सबक सिखाने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह की संयुक्त प्रगतिशील, गठबंधन सरकार के कार्यकाल में सूचना का अधिकार अधिनियम २००५ लागू किया गया था। इस कानून के बनने के बाद यह उम्मीद थी कि अब भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी, लेकिन यह इसलिए पूरे नहीं हुई क्योंकि नौकरशाही इसे पसंद नहीं करती। चूंकि वह इस कानून को ही पसंद नहीं करती इसलिए इस कानून से संबंधित आवेदन को पहली नजर में खारिज करने का अफसर मन बना लेते है।
प्रशासनिक बेरुखी के चलते हताश है सूचना का हथियार उठाने वाले
इसे कानून की कमजोरी समझी जाए या प्रशासनिक बेरुखी, सूचना के अधिकार कानून का लाभ उठाने वालों की संख्या बढ़ने की बजाए कम हो रही है। सरकारी आंकड़े इसी तथ्य को प्रमाणित करते है। सरकारें भले ही इसे भ्रष्टाचार पर अंकूशलगने का दावा कर अपने हाथों अपनी पीठ थपथपाा ले, चाहे तालियां ही बजा ले, लेकिन यह स्थिति चिंताजनक एवं दूरगामी संकट के संकेत है। यदि सूचना का अधिकार का हथियार उठाने वाले अपने कदम पीछे खींच लेंगे तो भ्रष्टाचारी रिश्वतखोर अफसर बेलगाम हो जाएंगे और यही तो यह चाहते हैं। देखा जाए तो सूचना का अधिकार अधिनियम को लागू हुए १६ वर्ष बीत चुके हैं। इस दौरान सूचना के अधिकार की वजह से ही कई भ्रष्ट और फर्जीवाड़ा करने वाले अधिकारी एवं कर्मचारी भी बेनकाब हो चुके हैं। बावजूद इसके, सूचना का अधिकार कानून के प्रति प्रशासन की बेरुखी सरकार पर भी सवालिया निशान लगाती है।
छूट का नाजायज लाभ उठाते है अफसर…
यहां पर यह प्रासंगिक है कि आरटीआई कानून की धारा ८,९,११ एवं २४ में सूचना नहीं देने की छूट दी गई है। आवेदक जब किसी विषय में जानकारी चाहता है तो प्राय: इन्हीं धाराओं में मिली छूट का लाभ उठाते हुए अधिकारी आवेदक के आवेदमन को खारिज कर देते है। कही पर निजता का हवाला दिया जाता है तो कहीं वजह बताई जाती है तकनीकी। इसी के चलते ६० प्रतिशत आवेदन खारिज कर दिए जाते है। शेष आवेदनों पर चलती रहती है अपील पर अपील और फिर मामले पेंडिंग होते जाते है।
फेक्ट-फाइल…
– सन् २०१९-२० में केंद्रीय वित्त मंत्रालय में १.९२ लाख आवेदन आए थे, जबकि पिछले वर्ष २०२०-२१ में इनकी संख्या २.११ लाख रह गई। मतलब सीधे ८ फीसदी कम आवेदन मिले।
– रक्षा मंत्रालय में २०२०-२१ में जहां १८ फीसदी तो गृह मंत्रालय में २२ प्रतिशत आवेदन कम आए और यह सिलसिला अनवरत जारी है।
– पिछले वर्ष केंद्रसरकार के २१९३ विभागों-एजेंसियों को १३.७४ लाख आवेदन प्राप्त हुए, जिनमे से ४.२७ प्रतिशत पहली नजर में ही खारिज कर दिए गए।
– अधिकांश आवेदनों को खारिज करने के पीछे २० प्रतिशत निजता की रक्षा तो ४० फीसदी वजह तकनीकी बताई जाती है। लंबित आवेदनों की संख्या भी निरंतर बढ़ते जा रही है।
-हाल फिलहाल सार्वधिक १.१५ लाख आवेदन रक्षा मंत्रालय में लंबित है, जबकि मानव संसाधन विकास मंत्रालय (शिक्षा मंत्रालय) में ५० हजार से अधिक एप्लीकेशन पेंडिंग है।

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