1950 में फिल्म ऑन की शूटिंग के लिए पहली बार दिलीप साहब इंदौर आए थे

उनके बंगले का गेट इंदौर में ही बना था, सेठी जी की चुनावी सभा में भी वे आ चुके थे

 

 

 

इंदौर। ट्रेजडी किंग आफ अभिनय के सम्राट दिलीप कुमार का इंदौर से नाता रहा। वे 1950 में सबसे पहले फिल्म आन की शूटिंग के लिए इंदौर पहुंचे थे। यहां पर उन्होंने नौलखा पुल पर घोड़े पर चलते हुए गाने की कुछ लाइनें गाई थी। इसके बाद लालबाग पैलेस में भी शूटिंग में भी वे मौजूद थे। इस दौरान वे उस जमाने की होटल लेंटर्न जो अब टूट चुकी है, में ठहरे थे। इसके बाद वे 1971 में प्रकाशचंद्र सेठी के चुनाव प्रचार में भाषण देने के लिए भी इंदौर आए थे। इंदौर से उनके नाते और भी रहे। इंदौर के एक कारोबारी के साथ उन्होंने एक फिल्म का निर्माण भी किया था। वहीं आज उनके बंगले के बाहर बना गेट भी इंदौर से ही बनकर गया है, जो आज भी लगा हुआ है। हालांकि इसके अलावा भी दिलीप कुमार इंदौर आए।
आज 98वें साल की उम्र में उनका निधन हो गया पर वे अपने साथ कई यादें छोड़ गए। इस मामले में फिल्म समीक्षक गिरीश शरद ने बताया कि दिलीप कुमार का इंदौर से लंबा नाता रहा। वे सबसे पहली बार 1950 में फिल्म आन की शूटिंग के लिए इंदौर आए थे। यह फिल्म नादिरा की पहली फिल्म थी और टेक्नी कलर में बनाई गई थी। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान ही दिलीप कुमार और फिल्म के निर्माता महबूब खजराना दरगाह पर भी चादर चढ़ाने गए थे। इस फिल्म की शूटिंग के लिए बुधनी भी गए थे। इसके अलावा लालबाग पैलेस में भी मुख्य द्वार पर एक दृश्य के लिए शूट किया गया था। यह पहली फिल्म थी, जो लंदन में भी प्रदर्शित हुई थी। इसके अलावा वे इंदौर में 1971 के चुनाव के दौरान कांग्रेस से उम्मीदवार रहे प्रकाशचंद्र सेठी के चुनवा प्रचार के लिए भाषण देने के लिए आए थे। उनकी सभा एमवाय के पास शिवाजी स्टेचू पर हुई थी। उन्होंने देर से आने पर माफी मांगते हुए फिल्मी अंदाज से ही लोगों को डायलाग बोलकर बताया था कि वे क्यों लेट हुए? एक ओर महत्वपूर्ण बात यह रही कि इंदौर के कारीगरों से वे प्रभावित थे। जब उन्होंने अपने बंगले का निर्माण किया तो बंगले का गेट बनाने के लिए इंदौर के स्नेहलतागंज में एक छोटे से कारखाने में यह गेट का निर्माण करवाया। गेट बनाने वाले नूर मोहम्मद खत्री ने बताया कि इस गेट को बनाने में एक माह का समय लगा था। इसकी डिजाइन भी उन्हीं ने तैयार की थी। यह गेट आज भी दिलीप कुमार के बंगले के बाहर लगा हुआ है। इसकी खबर सबसे पहले दैनिक दोपहर में ही प्रकाशित हुई थी। लगभग 1000 किलो से 15 फीट लंबे गेट का निर्माण किया गया था। वहीं दिलीप कुमार की मुगल-ए-आजम इंदौर के ज्योति टाकिज में लगी थी और इस फिल्म को देखने के लिए सुबह 5 बजे से ही लाईनें लगना शुरू हो जाती थी। यह इंदौर की पहली फिल्म थी, जिसने सिल्वर जुबली बनाई थी। फिल्म को देखने के लिए लोग ढोल ढमाके के साथ आते थे। यह जानकारी ज्योति टाकिज के संचालक आदर्श यादव ने देते हुए बताया कि 60 का दशक फिल्मों के लिए सुनहरी यादों से भरा हुआ है। दिलीप कुमार की राम और श्याम जो अलका टाकिज में लगी थी, इस फिल्म ने भी सिल्वर जुबली का रिकार्ड बनाया था। इधर नयापुरा के सूत्रों का कहना है कि इस क्षेत्र में गौरी टाईल्स के नाम से कामकाज करने वाले भी एक फिल्म में उनके साथ पैसा लगा चुके थे।

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