साहब बाबू कमिश्नरी नहीं पुलिस कमिश्नरी चाहिए…

कल मुख्यमंत्री के फरमान के बाद इंदौर पुलिस मैदान में उतर गई और अलग-अलग कलालियों के बाहर बैठकर शराब पी रहे 100 लोगों को पकड़ लिया, जो बता रहा है कि अब मुख्यमंत्री के बताने के बाद ही इंदौर पुलिस कार्रवाई शुरू कर रही है। चाहे ट्रेजर सिटी में मकानों के बिकने का मामला हो या फिर ड्रग का, हर जगह पुलिस पंगु ही नजर आ रही है। जहां ज्यादा विवाद है वहां उसे आपसी विवाद बताकर अपना पल्ला झाड़ रही है पर सार यह है कि इस शहर में पुलिस कमिश्नरी नहीं ‘बाबू कमिश्नरीÓ लागू हो गई है और इसके साथ बाबू-अधिकारी भी पदस्थ हो रहे हैं। यानी अब शहर की पुलिस लॉली लिपिस्टिक पुलिस में बदलती जा रही है, जो केवल सुंदर दिख रही है पर परिणाम बेहतर नहीं दे पा रही है। शहर में पदस्थ हुए पुलिस कमिश्नर की स्थिति यह है कि 90 प्रतिशत आबादी ने उन्हें देखा ही नहीं है, जबकि पुलिस की पहचान फिल्ड से होती है। पुलिस के अधिकारी जब तक आधी रात में फिल्ड में नहीं दिखते तो फिर बेलगाम थाना प्रभारियों से क्या उम्मीद रखेंगे। शहर में थाना प्रभारी वर्षों से जमे हुए हैं। उपलब्धि के नाम पर केवल इंदौर में पदस्थ रहना ही सबसे बड़ी उपलब्धि बन गई है। नशे को लेकर पुलिस की कार्यप्रणाली ही गलत है। शराब के अहाते बंद करना सबसे गलत निर्णय है। उस समय कहा गया कि लोग अपने घर जाकर पिएंगे, जरा यह भी पता लगाना चाहिए कि कितने पीने वाले अपने घर ले जाकर इन दिनों शराब पी रहे हैं। सरकार को इसका आंकड़ा भी जारी करना चाहिए कि हमारे प्रयास से इतने दारुड़िये आजकल कलाली की बजाय अपने घर जाकर बाल-बच्चों के सामने शराब पी रहे हैं। इस प्रकार के राजनीतिक निर्णय केवल समाज में और गंदगी ही फैलाने का काम कर रहे हैं। दूसरी ओर इंदौर पुलिस की कमिश्नरी जो अब एसी कमरों में बैठकर शहर की कानून व्यवस्था की ऐसी की तैसी कर रहे हैं, कई पुलिस अधिकारियों को तो यह भी नहीं मालूम है कि शहर के किस थाने में किस पुलिस अधिकारी का क्षेत्र कौन सा है। शहर में 100 करोड़ के लगभग नशे का कारोबार पहुंच गया है और अब नशा शराब का ही नहीं ड्रग के अलावा ऐसी तमाम दवाइयों का भी हो गया है जिनमें आयोडेक्स से मिलाकर पंचर जोड़ने के सिलोचन तक का उपयोग किया जा रहा है। सर्दी की दवाइयों में 10 प्रतिशत तक अल्कोहल के उपयोग भरपूर हो रहे हैं। कभी पुलिस ने यह पता लगाने की कोशिश नहीं की कि किस दवा की दुकान से सीरप तेजी से उठ रहे हैं। दूसरी ओर पुलिस की सबसे ज्यादा जरूरत शहर के स्कूलों के बाहर लग रही दुकानों पर है। आज तक एक भी स्कूल के बाहर की दुकानों की जांच नहीं की गई है। कमरों में बैठे अधिकारी कमिश्नरी नहीं बाबूगिरी कर रहे हैं। शहर के राजनेता भी मान रहे हैं कि पुलिस कमिश्नरी का निर्णय पूरी तरह फ्लॉप हो गया है। इससे पुरानी व्यवस्था ही ठीक थी। रातों को होने वाली गश्त पूरी तरह जाम हो गई है। कारण अधिकारी अपने घरों में जाकर सो रहे हैं और थाना प्रभारी थानों को बेलगाम छोड़ रहे हैं। इस मामले में 20 से अधिक थानों के सबइंस्पेक्टरों से बात करने पर यह तय रहा कि कई को पूरी तरह से बीट का ही ज्ञान नहीं है। इनमें से कई तो एक-एक हफ्ते तक क्षेत्रों में ही नहीं जाते हैं। शहर में बाहर से शिक्षा लेने के लिए आने वाले युवा और लड़कियां सबसे ज्यादा आसानी से नशे के शिकार हो रहे हैं। शहर की चकाचौंध के बीच हर दिन नशे की सिगरेट भरकर पीते हुए किसी भी जगह पर देखे जा सकते हैं। एक वक्त था शहर में ऐसे बच्चों को पकड़ने के बाद उनके परिवारजनों से बात करवाकर उन्हें चेताया जाता था। अब तो शहर में जब बाबू कमिश्नरी चलेगी और लाली लिपिस्टिक पुलिस की व्यवस्था रहेगी तो फिर ऐसे में आने वाला समय पुलिस के लिए तो अच्छा हो सकता है पर इस शहर के लिए यह कैसा होगा यह सोचना इस शहर के उन राजनेताओं को जो बढ़ते अपराधों को लेकर आने वाले समय में मुंह दिखाने के लायक भी नहीं बचेंगे और जो मैदान पकड़ेंगे वे पुलिस के ल_ खाकर अपने घरों में इलाज करवाते रहेंगे।

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