इंदौर में नोटा इस बार मतदान का नया इतिहास लिखेगा

बम की नाटकीय ढंग से हुई नाम वापसी पर भाजपा और कांग्रेस के नेता नहीं स्वीकार पा रहें

indore nota vote in loksabha 2024
indore nota vote in loksabha 2024

इंदौर। दो दिन पहले कांग्रेस के लोकसभा उम्मीदवार अक्षय बम के नाटकीय तरीके से नामांकन वापस लेने के बाद पूरे शहर में नई चर्चा प्रारंभ हो गई है। माना जा रहा है कि इस बार देशभर में नोटा पर हुए मतदान का नया रिकार्ड इंदौर में कायम होगा। जहां कांग्रेस इस बार नोटा पर मतदान के लिए मैदान में उतर रही है वहीं निर्वाचन में लगे अधिकारी भी मान रहे हैं कि अब मतदान को लेकर कोई उत्साह नहीं रह गया है।

३० प्रतिशत मतदान भी अगर हो जाए तो बड़ी बात होगी। दूसरी ओर पिछले दो दिनों में भाजपा के २०० से अधिक नेताओं से और वरिष्ठ कार्यकर्ताओं से बातचीत के बाद जो राय बाहर आई है वह बता रही है कि भाजपा का बहुत बड़ा धड़ा इसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। भाजपा के ही लंबे समय तक संगठन में काम करने वाले नेता ने कहा कि अच्छे खासे चलते चुनाव की बैंड बज गई। इंदौर की राजनीति में यह मूल संस्कृति नहीं रही है। वहीं खुद लोकसभा की पूर्व अध्यक्ष सुमित्रा महाजन और वरिष्ठ नेता सत्यनारायण सत्तन भी खुले रुप से इसका विरोध दर्ज करवा चुके हैं।

इंदौर लोकसभा में अब भाजपा के उम्मीदवार शंकर लालवानी के अलावा १४ उम्मीदवार मैदान में डटे हुए हैं इनमे से अधिकांश निर्दलीय ही है। माना जा रहा है कि इन सभी के वोट जोड़ लिए जाए तो भी दस हजार से ज्यादा सीमा में नहीं जाएंगे। इंदौर में लोकसभा चुनाव में निर्दलीयों के खाते में अधिकतम चार हजार वोटों का रिकार्ड ही दर्ज है। वहीं कांग्रेस के उम्मीदवार रहे अक्षय बम के नाम वापसी को लेकर जो नाटक हुआ उसे लेकर शहर में युवा वर्ग से लेकर व्यापारी और कांग्रेस और भाजपा के कार्यकर्ता स्वीकार करने को तैयार नहीं है। उनका मानना है यह दुखद है। खुद शंकर लालवानी के करीबी भी मान रहे हैं कि इस प्रकार के चुनाव का कोई मतलब नहीं रहा है।

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जब पहले ही भारी बहुमत से चुनाव के जीत की स्थिति बनी हुई थी तो फिर इसका क्या औचित्य है। शहर के स्वभाव को देखते हुए अब यह तय दिखाई दे रहा है कि मतदान का प्रतिशत नीचे जाने के साथ ही नोटा में होने वाले मतदान भी एक नया रिकार्ड देशभर में कायम करेगा। कांग्रेस पहले ही नोटा पर मतदान के लिए कह चुकी है पर इसके अलावा भी लोग स्वयं ही नोटा पर मतदान के लिए मानसिकता बना रहे हैं।

भाजपा के वरिष्ठ नेता और राष्ट्र कवि सत्यनारायण सत्तन ने भी इस मामले में तंज कसते हुए कहा कि अक्षय बम ने अपनी पार्टी के साथ विश्वासघात किया है और इसका मुख्य कारण उसके जीवन में कई विसंगतियां है। राजनैतिक लाभ के लिए कुछ लोग राजनीति में आते हैं। अक्षय बम के नाम वापसी के साथ ही अब शंकर ललवानी के जनसपंर्क को लेकर भी उत्साह समाप्त हो गया है। धीरे धीरे दिग्गज नेता अब जनसंपर्क की औपचारिकता पर लग गये हैं वहीं कार्यकर्ता अब मैदान में उतरने को तैयार नहीं है।

नोटा के मतदान को लेकर शहर में अब बड़े पैैमाने पर चर्चा प्रारंभ हो चुकी है और इसका असर भी १३ मई को दिखाई देगा वहीं 2018 के मध्य प्रदेश चुनावों में, 18 सीटों पर 5000 से अधिक नोटा वोट दर्ज किए गए। इन 18 खंडों में से, 13 एसटी आरक्षित थे, जबकि एक अनुसूचित जाति (एससी) आरक्षित था और शेष 4 अनारक्षित (या सामान्य) थे। वही बीते दो चुनावों में नोटा में क्रमश: 0.28 व 0.21 प्रतिशत वोट ही मिलने का रिकार्ड दर्ज है।

चुनाव आयोग में नोटा को लेकर जो नियम बने हुए हैं उसके अंतर्गत यह मतदाताओं के लिए जब उनकी पसंद का कोई उम्मीदवार नहीं हो तो नकारात्मक प्रतिक्रिया देने का एक माध्यम माना गया है। इसका कोई चुनावी मूल्य नहीं होने के कारण यदि उम्मीदवार से ज्यादा वोट नोटा में जाएंगे तो भी दूसरे नंबर के उम्मीदवार को विजयी घोषित किया जाएगा। कांग्रेस उम्मीदवार के नाम वापसी के बाद अब माना जा रहा है कि इसका असर चुनाव के समय में काम करने वाले छोटे कारोबारियों पर भी दिखाई देगा।

इसमे कैटरिंग से लेकर झंडे, पोस्टर लगाने वाले और पर्चे बांटने वाले के अलावा बूथ पर बैठने वाले भी इस बार खाली हाथ ही रह जाएंगे क्योंकि कांग्रेस की टेबलें किसी भी बूथ पर नहीं लगेगी दूसरी ओर निर्दलीय उम्मीदवारों की भी टेबलें नहीं होने के कारण केवल भाजपा को ही अपनी टेबलें लगाना होगी।

माना जाता है कि चुनाव लड़ रहे उम्मीदवार का खर्च भले ही कम दिखाया जा रहा हो पर पिछले दरवाजे से बड़ी राशी बाजार में पहुंचती है। पर्चे, पोस्टर, झंडे का काम करने वाले कारोबारी ने कहा कि पांच से छह लाख रुपये तक के काम चुनाव में हो जाते थे जो इस बार अब नहीं हो रहे हैं।

वहीं भाजपा ने भी अपने सारे खर्चों से हाथ खींच लिया है। इसका नुकसान दोनों ही दलों के कार्यकर्ताओं को होगा क्योंकि उन्हें जो राशि सम्मान के तौर पर दी जाती थी वह भी नहीं मिलेगी।

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