American saffron : इंदौर के पास लहरा रही हैं अमेरिकन केसर

अमेरिकन केसर को मिलावट खोर असली केसर में मिलाकर भी बेच रहे है

American saffron is waving near Indore
American saffron is waving near Indore

इंदौर (धर्मेन्द्र सिंह चौहान)। American saffron is waving near Indore  अमेरिकन केसर के नाम से प्रसिद्ध कुसुम की खेती जिले के एक किसान ने की है, जो इन दिनों खुब लहरा रही हैं। इसे देखने के लिए आस-पास के किसान बड़ी संख्या में रोज आ रहे हैं। किसान कल्याण विभाग व आत्मा परियोजना के साथ ही उद्यानिकी विभाग के सहयोग व प्रेरणा से यह खेती जिले के उन्नत किसान ने की हैं। जो इन दिनों पक कर पूरी तरह से तैयार हैं। तथा आसपास के किसानों को अपनी ओर आकर्षित कर रही हैं। अमेरिकन केसर ओर भारतीय केसर में बहुत अंतर होता हैं। एक दम से केसर तरह की दिखाई देने वाली इस फसल को पहचानना काफी मुश्किल होता हैं।

जानकारी के अनुसार इंदौर जिले के देपालपुर तहसील के ग्राम शाहपुरा के उन्नत कृषक लाखनसिंह सीताराम गेहलोत के खेत पर इन दिनों अमेरिकन केसर के नाम से प्रसिद्ध कुसुम की फसल पक कर तैयार हैं। जिसे देखने के लिए आसपास क्षेत्र से कई किसान रोजाना यहां आकर इस नवाचार की फसल की सराहना करते नहीं थकते हैं। यह नवाचार की फसल के बारे मेें दैनिक दोपहर के प्रतिनिधि से बात करते हुए उन्नत कृषक लाखनसिंह सीताराम गेहलोत ने बताया कि किसान कल्याण विभाग एवं आत्मा परियोजना और उद्यानिकी विभाग के द्वारा मुझे कुसुम की खेती करने के लिए प्रेरित किया गया था। इस पर आत्मा परियोजना के द्वारा समय समय पर प्राकृतिक तरीके से इस फसल के रख रखाव के साथ ही फसल से संबंधित ट्रेनिंग भी मुझे दी गई हैं। इस नवाचार की खेती के बारे में मैने भी पहले से काफी कुछ सुन रखा था। जिसके बाद ही मैने शुरुआत में एक बिघा जमीन पर ही इसकी खेती की हैं। इसके लिए मैने एक बिघा जमीन में मात्र तीन किलो बीज डाले, तथा इसके बाद सिर्फ एक बार ही इसमें पानी दिया। मेरी मेहनत ओर नवाचार का जज्बा आज रंग लाया। मेरे खेत में शानदार कुसुम की फसल तैयार खड़ी हैं।

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गेहलोत ने आगे बताया की कुसुम की पंखुडिय़ां और बीज दोनों बिकते हैं। कुसुम की पंखुडिय़ां औषधिय गुणों से भरपूर हैं, यही कारण हैं कि बहुत से लोग इसका उपयोग चाय के तौर पर भी करते हैं। साथ ही इसका उपयोग अन्य तरीके से भी किया जाता हैं। यही कारण हैं कि इसका अच्छा खासा रेट मिलता है। साथ ही इसके बीज भी अच्छे दामों में बिक जाते हैं। जिससे किसान को अन्य ेसिजनेबल फसल की अपेक्षा इस फसल में ज्यादा मुनाफा मिल रहा हैं। कुसुम में कोई सुगंध नहीं होती। इसका उपयोग प्राकृतिक रंग निकालने, तेल व साबुन बनाने तथा अन्य कई उत्पादों में किया जाता है। कुसुम की खेती करने के लिए 15 डिग्री तक का तापमान होना चाहिए। जबकि अच्छी पैदावार लेने के लिए 20 से 25 डिग्री तक का तापमान अच्छा होता है। साथ ही इसके लिए काली मिट्टी काफी उपयुक्त मानी जाती हैं। यही कारण हैं कि इस फसल का प्रयोग मालवा अंचल में सफलतापूर्वक किया गया हैं। इसका बाजार भाव तीन से चार हजार रुपए क्विंटल होता हैं। कुसुम के फुलों में किसी भी तरह की कोई सुगंध नहीं होती हैं, तथा इसका उपयोग तेल साबुन के साथ ही अन्य सौंदर्य प्रसाधन के उत्पादनों को बनाने में किया जाता हैं।

केसर और कुसुममें अंतर

असली केसर का पौधा एक से डेढ़ फुट का होता है, जबकि कुसुम का पौधा 4 फीट तक का। केसर की बुआई प्याज की गंठियों जैसी छोटी गांठों से होती है। जिसे वल्ब भी कहते हैं। जबकि कुसुम की बुआई बीज से होती है। असली केसर के फूल में लाल रंग की एक या दो स्टिक होती है। जबकि कुसुम में गेंदा व सूरजमुखी जैसा फूल आता है। इस पूरे फूल का उपयोग किया जाता हैं। केसर की बुआई जुलाई-अगस्त में होती है जबकि कुसुम की बुआई रबी के दौरान अक्टूबर-नवंबर में की जाती है। असली केसर पानी में डालने पर हल्का रंग छोड़ती है जबकि कुसुम पानी में डालते ही गहरा रंग छोड़ती है।

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