जब-जब घाट पर हुई कुत्तन की भीड़ अपना-अपना दर्द और अपना-अपना दुखड़ा…

GUSTAKHI MAAF

एक बार फिर आधी रात चकवा अपने घर की खिड़की से जंगल को निहारने के साथ शहर को भी निहार रहा था। चेहरे पर चिंता थी और कुछ दर्द भी था। इस बार चिंता एक बिरादरी को लेकर दिख रही थी। इस बीच खिड़की से बाहर देख रहे चकवे को आवाज देकर चकवी ने पूछा- आज क्या देख रहे हो। अब तो जंगल में भी सबका काम अच्छा चल रहा है। खरगोश के काम भले ही अभी दिखाई नहीं दे रहे हों, पर दौड़-भाग तो भविष्य को लेकर दिखने लगी है। इस पर एक बार फिर चकवे ने थोड़ी मुस्कुराहट के साथ कहा कि धीरे-धीरे सब ठीक हो जाता है, पर इस बार मेरी चिंता शहर के उन तमाम कुत्तों को लेकर है, जिनके मामले लोकसभा तक में उठ रहे हैं। मुट्ठी भर कुत्ते शहर की गलियों और चौराहों पर भले ही माहौल खराब कर रहे हों, परंतु अभी भी बड़ी आबादी शांति से रहने में भी भरोसा रख रही है। मैं इसी प्रकार के कुत्तों की बैठक में चला गया था। हालांकि मैं झाड़ के ऊपर बैठा था और कुत्ते नीचे भविष्य का चिंतन कर रहे थे।

चकवी ने कहा- इसमें नई बात क्या है? कुत्ते तो आए दिन चौराहों पर चिंतन करते रहते हैं। तब चकवे ने कहा- विषय गंभीर था और उनका दर्द भी जायज है। हो-हल्ले में कोई, किसी की सुन नहीं रहा था, पर बोल सभी रहे थे। जैसे कि राजनीति में परंपरा रहती है। बैठक में थोड़ी शांति के बाद कुत्तों ने बतियाते हुए अपना-अपना दर्द भी सुनाना प्रारंभ किया। इस दौरान मजबूत पकड़ वाले वरिष्ठ कुत्ते ने यह समझाया कि उसे दर्द यह है कि शहर में कुत्तों की बिरादरी में चार प्रकार के कुत्ते रह रहे हैं। एक वे, जो धनाढ्य परिवार से सम्पर्क रखते हैं और उन्हीं के नेतृत्व में गाहे-बगाहे बाजार में घूमने निकलते हैं। इनकी बड़ी इज्जत है और ये किसी विवाद में भी नहीं पड़ते। अपने काम से काम रखते हैं। जरूरत हुई तो केवल अपनी उपस्थिति दूर से दर्ज करवाकर सो जाते हैं। इनसे किसी को कोई डर भी नहीं है, पर दूसरी ओर एक वो हैं, जो गलियों और चौराहों पर निकलने वाले वाहनों को देखते ही लपकना शुरू कर देते हैं। इन कुत्तों को कटखना कहा जाता है। सारे विवाद की जड़ यही हैं।

Also Read – तनी भाजपाई और मनी भाजपाई के बीच दरार खत्म नहीं हो पा रही…

इन्हें इससे कोई मतलब नहीं है कि कौन आ रहा है, कौन जा रहा है। ये केवल लपकने में ही विश्वास रखते हैं। इनका दर्द भी कोई नहीं जानता। छोटे-छोटे बच्चे सड़कों पर ही उजड़ गए और उन्हें ऐसा लगता है कि किसी दूसरे के बच्चे नहीं उजड़ जाएं, इसलिए वे बिना बात के भी लपकते रहते हैं। अब कुछ ऐसे भी हैं, जिनका कोई लेना-देना नहीं रहता है। गलियों में शांति का जीवन जी रहे हैं। वे किसी विवाद में भी कम ही दिखाई देते हैं, अपने काम से काम रखते हैं। क्षेत्र में भी इनका सम्मान रहता है इन्हें दूसरों की राजनीति से भी कोई लेनादेना नहीं रहता है और चौथे वो हैं, जो आवारा कहलाते हैं। इस बीच विशेष जाति के एक छोटे कुत्ते ने कहा कि हमें कई लोग प्यार से भी पालते हैं। दादा दयालु के यहां हमारी बिरादरी के दो और भिया के यहां दो आयातित होकर पल रहे हैं। उन्हें हलो, चलो भी कहा जाता है। यह भी जहां रहते हैं, वहां की पूरी जानकारी रखते हैं। इस पर एक अन्य कुत्ते ने यह बात उठाई कि कुत्तों के लिए भी श्रेणी होनी चाहिए, ताकि उसकी हैसियत के साथ उसे जगह मिले, परंतु कानून की नजर में सड़क पर घूमने वाले कुत्ते आवारा ही माने जाते हैं। ऐसे में कई कुत्तों को जो आवारा की श्रेणी में नहीं हैं, उन्हें इस प्रकार के नाम मिलने पर दु:ख होता है।

इस बीच एक कुत्ते ने कहा कि हम भले ही लोकसभा में बैठे लोगों पर बात नहीं कर सकते, पर हमारा जिक्र वहां पर भी हो चुका है और एक कुत्ते ने बताया कि भाजपा सांसद रहे हुकुमदेव नारायण यादव ने लोकसभा में यहां तक हमारे बारे में कहा कि वे जब लोकसभा में सांसद बन कर आए तो जब वे संसद के बाहर घूम रहे थे उस दौरान कार में बैठे एक कुत्ते पर उनकी नजर पड़ी, जो जीब लपलपा रहा था। सांसद और कुत्ते की नजर जब मिली तो सांसद को ऐसा लगा कि कुत्ता कुछ कह रहा है तो वे उसके पास खड़े हो गए तो कुत्ते ने कहा- तुम गरीब, मजदूर, किसान, दलित यहां क्या करने आए हो। मैं यहां कुछ नहीं करके भी केक और पेस्ट्री के साथ शहर में लाखों की कार में घूम रहा हूं। इस पर सांसद ने सदन में कहा कि हमसे ज्यादा बेहतर जिंदगी कुत्तों की है और हमें उनसे ज्यादा संघर्ष करना पड़ रहा है। वहीं एक कुत्ते ने अपना दर्द बताते हुए कहा कुछ लोग हमारे कांन काट कर ही अपना काम चला रहे है। दोष हम पर ही मढ़ा जा रहा है।

-9826667063

You might also like