गुस्ताखी माफ़: नाथ के नए डॉक्टर…कहीं बन रहे कहीं बिगड़ रहे…

निशांत दौड़ में अभी हैं...हल्का-पतला मत समझना...

नाथ के नए डॉक्टर…

इन दिनों कांग्रेस में इस कान से उस कान खबर चल रही है। हालांकि इसका इस्कान से कोई लेना-देना नहीं है, पर कान ही कान बता रहे हैं कि कमलनाथ ने अब अपने लिए नए आंख-कान-गला विशेषज्ञ नियुक्त कर दिए हैं। इसके पूर्व उनके आंख-कान-गला विशेषज्ञ मेघलानी और मुकेश कुमार होते थे। नए समीकरण में आदमी प्रवीण चाहिए। जो पहले से ही प्रवीण हो, उसकी तो बात ही अलग है। हालांकि कांग्रेस की नेता बिरादरी को भी इससे कुछ तकलीफें हो रही हैं। हम नहीं कह रहे, नेता बिरादरी ही कह रही है। वैसे भी कमलनाथ का पुराना रिकार्ड भी अधिकारियों पर ही विश्वास कर रहा था। कार्यकर्ता तो उन्होंने रोबोट की तरह रख रखे थे, जब जरूरत होती थी, तब ही याद आते थे। ऐसे में उनके नए आंख-कान-गला बन जाने से भी कार्यकर्ताओं को कोई विशेष अंतर पार्टी में दिखाई नहीं दे रहा है। पहले भी भोपाल से ही प्रदेश में राजनीति हो रही थी और अभी भी राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की बची हुई आंच में ही अपनी खिचड़ी पकाने के प्रयास किए जाएंगे।

कहीं बन रहे कहीं बिगड़ रहे…

भाजपा में इस बार गुजरात चुनाव के बाद अच्छे-खासे नेताओं के समीकरण बिगड़ रहे हैं। पिछली बार के जीते तो अपने आपको बचाने में लगे हैं, पर हारे को किसका सहारा, यह भी कठिन होगा। अब यह तय है कि इस बार पूरे थोक में बदलने की तैयारी दिख रही है। सबसे ज्यादा संकट पुराने नेताओं के सामने भी आ रहा है, जो विधानसभाओं में कुलांचे भरते रहे हैं। हर बार नई विधानसभा में इसलिए जाना पड़ रहा है कि पुराने में तो अब लोगों ने पहचान लिया है। ऐसी स्थिति उषा दीदी की भी है। हालांकि उनकी उम्मीदवारी को भाजपा संगठन के बड़े नेता अब गंभीर नहीं मान रहे हैं। दूसरी ओर वे वापस क्षेत्र क्रमांक तीन या एक में ही चौसर बिछाने लगी हैं, परंतु दूसरी तरफ इस बार साठ की उम्र की दहलीज पर पहुंच चुके और उससे ज्यादा उम्र हो चुके कई नेता कृष्णमुरारी मोघे के साथ जाजम पर ताल से ताल मिलाते हुए दिखाई देंगे। इस समय तो नए गणित में केवल एक ही उम्मीदवार भाजपा का तय दिखाई दे रहा है और वह हैं दादा दयालू। इधर दादा दयालू ने भी क्षेत्र क्रमांक एक में भी एक मठ पर अपने शिष्य को स्थापित करने को लेकर साधु-संतों को साधने का काम शुरू कर दिया है। वैसे भी हर विधानसभा में दादा दयालू के एक-दो मठ तो काम कर ही रहे हैं। जरूरत पड़े तो उम्मीदवारी घोषित होने के बाद हवन करेंगे-हवन करेंगे की आवाजें आने लगती हैं।

निशांत दौड़ में अभी हैं…

भाजपा में महापौर उम्मीदवार पुष्यमित्र भार्गव के चुनाव जीतने के बाद जिन्हें यह लग रहा है कि निशांत खरे की फाइल अब बंद हो गई है, वे इस बात को अच्छी तरह समझ लें कि प्रशासनिक जमावट के साथ मुख्यमंत्री की जमावट भी उन्हें किसी दिन भये प्रगट कृपाला, दीनदयाला बनाकर अचानक उतार सकती है।

हल्का-पतला मत समझना…

इस बार इंदौर में कांग्रेस के उम्मीदवार भाजपा के उम्मीदवारों पर भारी पड़ते दिखाई दे रहे हैं। हालांकि यह मामला कार्यकर्ता स्तर या संगठन स्तर का नहीं है। यह मामला हनुमान और सुरसा के बीच बदन के विस्तार को लेकर है। जस-जस सुरसा बदन बढ़ावा कपि भी करते रहे विस्तार, यानी पूरा मामला धनापति को लेकर है। क्षेत्र क्रमांक एक से यदि उम्मीदवारों को देखा जाएगा तो संजय शुक्ला किसी भी भाजपा नेता पर मन और धन से भारी दिखाई देंगे। यही स्थिति क्षेत्र क्रमांक दो में भी रहेगी। यहां चिंटू चौकसे चार वार्डों में दादा दयालू के उम्मीदवारों पर भारी रह चुके हैं। साथ में राजू भदोरिया टैक्स फ्री हैं ही। ऐसे में यहां भी इस बार धन के मामले में अच्छा-खासा मामला कार्यकर्ताओं के लिए रहेगा। क्षेत्र क्रमांक तीन में नए समीकरण में शिक्षाविद् स्वप्निल कोठारी को उतारने की तैयारी भी की गई है। वे भी खोखापति से कम नहीं रहेंगे। क्षेत्र क्रमांक चार में कांग्रेस गोलू अग्निहोत्री को हरी झंडी दे चुकी है तो क्षेत्र क्रमांक पांच में सत्यनारायण पटेल हर स्थिति में भाजपा उम्मीदवार पर भारी होंगे। यही स्थिति सांवेर में विशाल पटेल की रहेगी। यह कपि सब सुग्रीव समान हैं। ताकत में भी और धन में भी। अब जिसे भी मैदान में उतरना है, उसे अलग से संगठन के बाद भी अपनी तैयारियां करनी ही होगी।

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