देहरादून। उत्तराखंड के जोशीमठ में भू धंसाव की वजह से सैकड़ों परिवार बेघर होने के कगार पर है। पूरे शहर में मकानों और ऐतिहासिक स्थलों में बड़ी-बड़ी दरारें आने के बाद लोग दहशत में है, तो इधर कर्णप्रयाग में भी सैकड़ों घर दरकना शुरू हो गए हैं। वहीं दूसरी ओर इस बीच इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग की एक रिपोर्ट सामने आई है जो बताती है कि यह आपदा अचानक नहीं आई। पिछले दो साल से जोशीमठ और इसके आसपास के इलाकों में प्रति वर्ष 6.5 सेमी या 2.5 इंच की दर से जमीन धंस रही है।
क्षेत्र के लोगों का कहना है कि सरकार की गलत नीतियों की वजह से लोगों को आज इस परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। आईआईआरएस ने अध्ययन के लिए सैटेलाइट से मिले क्षेत्र के डेटा का इस्तेमाल किया है। इस स्टडी के अनुसार कई इलाके बेहद संवेदनशील हैं। यह स्टडी जुलाई 2020 से मार्च 2022 के बीच सैटेलाइट से प्राप्त तस्वीरों के आधार पर की गई है। सैटेलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि जोशीमठ और इसके आसपास के इलाके धीरे-धीरे धंस रहे हैं। सैटेलाइट तस्वीरें ये भी बताती हैं कि यह भूधंसाव केवल जोशीमठ तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह पूरी घाटी में फैला हुआ है। हैरानी वाली बात यह है कि उत्तराखंड को हर दस साल के भीतर भीषण आपदा का सामना करना पड़ रहा है। साल 2003 में उत्तरकाशी के वरुणावत में दरारें पड़ीं। सितंबर 2003 में बिना बारिश के करीब एक माह तक जारी रहे वरुणावत भूस्खलन से उत्तरकाशी नगर में भारी तबाही मची थी। करीब 70 करोड़ की लागत से इस पहाड़ी के उपचार के बावजूद अक्सर बरसात में इस पहाड़ी से शहर क्षेत्र में पत्थर गिरने की घटनाएं होती रही हैं। साल 2013 में केदारनाथ में जलप्रलय आई, जिसमें पांच हजार से ज्यादा लोगों की जान चली गई। वहीं दूसरी ओर जोशीमठ से कर्णप्रयाग तक अब जमीन धंसना शुरू हो गई है।
100 से ज्यादा मकान क्षतिग्रस्त, आज ढहाए जाएंगे असुरक्षित 86 भवन
देहरादून। जोशीमठ के बाद अब कर्णप्रयाग में भी 100 से ज्यादा मकानों में दरारें पड़ना शुरू हो गई है जिसके कारण पूरा क्षेत्र खाली कराया जा रहा है वहीं क्षतिग्रस्त मकानों को तोड़ने की कार्रवाई आज फिर शुरू हो रही है। उधर मौसम विभाग ने 24 घंटे में भारी बारिश का अलर्ट जारी किया है। भू-धंसाव की चपेट में आए जोशीमठ में ध्वस्तीकरण की कार्रवाई आज शुरू होगी। शासन के आदेश के बावजूद मंगलवार को भवनों के ध्वस्तीकरण की कार्रवाई शुरू नहीं हो पाई थी। जिला प्रशासन की टीम लाव-लश्कर के साथ भवन तोड़ने पहुंची तो प्रभावित लोग विरोध में उतर आए। ऐसे में ध्वस्तीकरण की कार्रवाई बुधवार तक के लिए टाल दी गई। इसे लेकर दिनभर अफरातफरी का माहौल रहा।
जोशीमठ में होटल माउंट व्यू और मलारी इन को ध्वस्त किया जाना था, लेकिन होटल स्वामियों ने कार्रवाई का विरोध शुरू कर दिया। उनका कहना था कि आर्थिक मूल्यांकन नहीं किया गया, साथ ही नोटिस तक नहीं दिए गए। विरोध बढ़ने पर प्रशासन को कदम पीछे खींचने पड़े। हालांकि अधिकारियों का कहना कुछ और ही है। सचिव आपदा प्रबंधन डॉ. रंजीत सिन्हा ने कहा कि ऊंचे भवनों को तोड़ने के लिए क्रेन की आवश्यकता है, जो वहां नहीं मिल पाई। इसलिए देहरादून से क्रेन भेजी गई है, जो बुधवार को वहां पहुंच जाएगी। वहीं, सचिव मुख्यमंत्री मिनाक्षी सुंदरम ने कहा कि सीबीआरआई की टीम देरी से मौके पर पहुंची, इसलिए पहले दिन ध्वस्तीकरण की कार्रवाई शुरू नहीं हो पाई। उधर, मुख्य सचिव डॉ.एसएस संधू ने मंगलवार को अधिकारियों की बैठक लेकर पुन: खतरनाक स्थिति में पहुंच चुके भवनों को प्राथमिकता के आधार पर ढहाने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि एक भी भवन ऐसा नहीं रहे, जिसमें रहने से जानमाल का नुकसान हो सकता है।
जोशीमठ में असुरक्षित भवनों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। मंगलवार को 45 भवन और चिन्हित किए गए। इस तरह से अब तक कुल 723 भवन चिन्हित किए जा चुके हैं। इनमें से 86 भवनों को पूरी तरह से असुरक्षित घोषित कर लाल निशान लगा दिए गए हैं। जल्द ही इन भवनों को ढहाने की कार्रवाई शुरू होगी।
जिला प्रशासन की ओर से अब तक 462 परिवारों को अस्थायी रूप से विस्थापित किया जा चुका है। मंगलवार को 381 लोगों को उनके घरों से सुरक्षित ठिकानों पर शिफ्ट किया गया। जबकि इससे पहले 81 परिवारों को शिफ्ट किया गया था। प्रशासन की ओर से अब तक विभिन्न संस्थाओं-भवनों में कुल 344 कमरों का अधिग्रहण किया गया है। इनमें 1425 लोगों को ठहराने की व्यवस्था की गई है।