गुस्ताखी माफ़-भिया के तेवर से आइये शहर को दें अब नया कलेवर…
शहर की स्वच्छता को लेकर यदि हर व्यक्ति के मन में कुछ ऐसा जज्बा पैदा हो जाए तो निश्चित रूप से हमें किसी सम्मान और पुरस्कार की जरूरत नहीं पड़ेगी। अभी भी शहर की सड़कों पर कई संभ्रांत अपने वाहनों की खिड़की से कचरा सहित पानी की खाली बोतलें फेंकते हुए लोग केवल देखते है। यदि उन्हें रोककर एक भी व्यक्ति को हम संस्कार सिखाने लगे तो मानकर चलिए कि इस शहर को संस्कारवान बनाने में समय नहीं लगेगा। खासकर यह संदेश उन युवाओं के लिए है जो आने वाले समय में इस शहर को स्वच्छता के तमगे के साथ फिर देखना चाहते है। कल कुछ ऐसा ही वाक्या एमआर-10 पर देखने को मिला जब दूसरे प्रदेश की कार से आ रहे लोगों ने सड़क पर अपना कचरा और पानी की बोतल फेंक दी। इस दौरान पीछे से अपनी कार में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय आ रहे थे। उन्होंने कार का पीछा किया और चंद मिनट बाद ही कार को रोककर इंदौर की स्वच्छता का सम्मान करने का आग्रह किया। साथ ही खाली बोतल वापस उठवाई और अपनी गाड़ी में रखवाई। साथ ही यह भी बताया कि सड़क के किनारे कहां-कहां डस्टबिन लगे हुए है। इस दौरान वाहन में बैठे लोगों को भी अपनी संस्कृति पर दुख हुआ। उन्होंने क्षमा भी चाही और कहा कि इंदौर की स्वच्छता का वे भविष्य में भी जब आएंगे तो सम्मान करेंगे। यह जज्बा किसी एक व्यक्ति के लिए नहीं है। बेहतर हो शहर का हर व्यक्ति जो अपने दो पहिया वाहन या चार पहिया वाहन पर इस शहर में घूम रहा है यह केवल उसकी भी नैतिक जिम्मेदारी है कि वह भी इसी संस्कृति का परिचय दे और इस प्रकार के लोगों को विनम्र आग्रह के साथ संस्कार सिखाए। तो आइये कैलाश विजयवर्गीय की इस पहल को शहर के एक नए संस्कार के रूप में शुरू किया जाए। पिछले पांच बार से इस शहर को स्वच्छता का तमगा दिलाने वाले नगर निगम के उन कर्मचारी और अधिकारी का भी यह सम्मान होगा कि उनके किए कार्यों पर चवन्नी संस्कृति वाले लोग अब पलिता नहीं लगा पाएंगे। एक आंकलन के अनुसार शहर में अभी भी दो हजार से ज्यादा वाहन चालक खाद्य सामग्री का उपयोग करने के बाद चलती कार से ही सड़कों पर कचरा फैलाते है। वहीं कई दूसरे वाहन चालक सड़कों पर ही थूकते हुए गंदगी फैलाते है जिनके लिए शर्म का कोई अर्थ नहीं है।
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