दसवीं-बारहवीं फेल चला रहे मेडिकल स्टोर

खुलेआम उड़ाई जा रही कानून की धज्जियां, किया जा रहा खिलवाड़

इंदौर (आशीष साकल्ले)।
यदि आपको यह पता चले कि जिस मेडिकल स्टोर से आप दवाएँ खरीदते है, वहां आपको दवा-इंजेक्शन देने वाला फार्मासिस्ट नहीं, दसवीं बारहवीं फेल सेल्समेन है तो आपकी क्या हालत होगी? हार्ट पेशेन्ट तो बेचारा सुनते ही दम तोड़ देगा। है ना…?

यही हो रहा है महानगर में इन दिनों। हालात कितने संगीन है, इसका अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि दसवीं-बारहवीं फेल सेल्समेन जीवन रक्षक औषधियां बेचकर लोगों की जान के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। खुलेआम डंके की चोट पर कानून की धज्जियां बिखेरी जा रही है। बावजूद इसके, शासन-प्रशासन जहां धृतराष्ट्र बना हुआ है, वहीं उसके कारिन्दे गांधारी की भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं।

क्या कहता है फार्मेसी एक्ट…?
फार्मेसी एक्ट के मुताबिक, मेडिकल स्टोर पर फार्मासिस्ट की मौजूदगी अनिवार्य है। इतना ही नहीं, डिस्प्ले बोर्ड पर फार्मासिस्ट का नाम, पंजीयन नंबर का उल्लेख करना जरुरी है। इसके अलावा स्टोर पर फार्मासिस्ट का ड्रेस कोड भी तय किए गए है, ताकि अधिकृत व्यक्ति को पहचाना जा सके। यदि किसी मेडिकल स्टोर पर इन नियमों का पालन नहीं हो रहा है तो तत्काल ड्रग लाइसेंस रद्द करने का प्राविधान है। जुर्माना लगाया जा सकता है, मेडिकल शाम को सील भी किया जा सकता है। बावजूद इसके, खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग की निष्क्रियता आश्चर्यजनक है। जिम्मेदारों की लापरवाही के चलते जीवनरक्षक दवाओं के खरीदने वालों के साथ देखा जाए तो धोखाधड़ी हो रही है।

५० फीसदी स्टोर पर नहीं है फार्मासिस्ट…
उल्लेखनीय है कि मेडिकल स्टोर का संचालन करने के लिए फार्मासिस्ट का होना एक अनिवार्य शर्त है। इसके बाद लाइसेंस लेना जरुरी है। अन्यथा मेडिकल स्टोर संचालित करना कानूनन जुर्म है। महानगर में ३ हजार से अधिक मेडिकल स्टोर्स संचालित हो रहे है और इनमे से पचास फीसदी मेडिकल स्टोर में फार्मासिस्ट ही नहीं है और दसवीं-बारहवीं फेल सेल्समेन ही फार्मासिस्ट की भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं। यहां पर यह भी महत्वपूर्ण है, कि इंदौर में मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा दवा बाजार है जहां १२०० से अधिक मेडिकल स्टोर है और यहां पर भी आधे मेडिकल स्टोर्स पर फार्मासिस्ट नहीं है।
लोगों की जिंदगी से
यह कैसा खिलवाड़?
देखा जाए तो मेडिकल स्टोर संचालक फार्मासिस्ट की दुकान पर मौजूदगी दर्शाकर लाइसेंस ले लेते है। फिर, फार्मासिस्ट को उसके लाइसेंस कर किराया दे दिया जाता है और फार्मासिस्ट मेडिकल स्टोर पर मौजूद ही नहीं रहता। बताते है कि फार्मासिस्ट का किराया भी तय है, जो ढाई से तीन हजार रुपए प्रतिमाह है। ऐसा भी नहीं है कि जिम्मेदारों को इसकी खबर ही नहीं। बावजूद इसके, ९० फीसदी मेडिकल स्टोर ऐसे ही चल रहे है। क्या, यह खौफनाक नहीं है?

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