गुस्ताखी माफ़-कुछ और भगवान अभी और लगेंगे…संजू बाबू की रेवड़ी…वाहवाही लूट के निकल लिए…

कुछ और भगवान अभी और लगेंगे…
इन दिनों कांग्रेस हो या भाजपा दोनों ही दलों में पिछड़ा वर्ग आदिवासी जनजातीय लोगों को अपनी ओर लाने की ऐसी स्पर्धा शुरू हो गई है, ऐसा लग रहा है जैसे अब अगला चुनाव जीतने का रामबाण मिल गया है। पिछले एक माह में जोबट सीट जीतने के बाद आदिवासियों को महान बनाने की ऐसी स्पर्धा चली की आदिवासियों के उत्थान में समय बिताने वाले बिरसा मुंडा को भगवान बना दिया। भले ही दस्तावेजों में वे कहीं भगवान न हो, क्या करे चुनाव जीतने का मामला है। तो पिछले दो दिनों में टंट्या भील एक ओर भगवान मिल गए, इसके पहले श्रीराम थे। इधर कांग्रेस की लार भी इन जातियों को लेकर गिरने लगी है। वे भी सारी ताकत इन्हीं जातियों पर लगाने जा रही है। कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि कांग्रेस आदिवासी मुख्यमंत्री का ऐलान भी कर रहे हैं। सवाल किसी का भले का नहीं, सत्ता में आने का है। तो वही अब डॉ. अम्बेडकर के जन्मस्थली पर फिर से करोड़ों रुपए खर्च कर अनुसूचित जाति को भी लपेटा जा रहा है। ऐसा लग रहा है अगले चुनाव तक 10-15 भगवान गली-मोहल्लों में दिखाई देने लगेंगे। लपेटा-लपेटी के खेल में कहीं ऐसा न हो कि न खुदा ही मिले, न मिसा-ले-सनम, न इधर के रहे, न उधर के।
इन दिनों संजय बाबू क्षेत्र क्रमांक 1 में अपनी जमीन मजबूत करने के लिए धड़ल्ले से लोगों को जोड़ने का काम कर रहे है। इसके लिए चाहे कथा करनी हो या महाभारत हर हाल में हर क्षेत्र तक हर घर में रेवड़ी पहुंचना जरूरी है। यह हुनर उनके गुरू रहे दादा दयालु का है। दादा दयालु के क्षेत्र में ऐसा कोई घर नहीं जिसके घर दादा का नमक नहीं पहुंचा हो। इसी के कारण इस क्षेत्र में टाटा का नमक नहीं चलता। इधर क्षेत्र क्रमांक 1 में 1300 से अधिक सफाईकर्मियों को 500-500 रुपए सम्मान निधि के रूप में दिए जा रहे है। अब कहने वाले तो कह रहे है कि वे चाहे तो 5-5 हजार रुपए भी दे दे, एक मुट्ठी बाल से रीछ के शरीर में बालों की कमी नहीं होती है।

संजू बाबू की रेवड़ी…
इन दिनों संजय बाबू क्षेत्र क्रमांक 1 में अपनी जमीन मजबूत करने के लिए धड़ल्ले से लोगों को जोड़ने का काम कर रहे है। इसके लिए चाहे कथा करनी हो या महाभारत हर हाल में हर क्षेत्र तक हर घर में रेवड़ी पहुंचना जरूरी है। यह हुनर उनके गुरू रहे दादा दयालु का है। दादा दयालु के क्षेत्र में ऐसा कोई घर नहीं जिसके घर दादा का नमक नहीं पहुंचा हो। इसी के कारण इस क्षेत्र में टाटा का नमक नहीं चलता। इधर क्षेत्र क्रमांक 1 में 1300 से अधिक सफाईकर्मियों को 500-500 रुपए सम्मान निधि के रूप में दिए जा रहे है। अब कहने वाले तो कह रहे है कि वे चाहे तो 5-5 हजार रुपए भी दे दे, एक मुट्ठी बाल से रीछ के शरीर में बालों की कमी नहीं होती है।
वाहवाही लूट के निकल लिए…
शहर में इन दिनों उपलब्धियां मिलने पर इस कदर श्रेय लेने की होड़ लगी रहती है कि जब उपलब्धियां अचानक गायब होती है तो उपलब्धि लेने वाले भी मौन धारण कर लेते हैं। इंदौर से शुरू होने वाली कई विमान सेवाएं जब शुरू होती है, तब सांसद से लेकर मंत्री तक हार-फूल लेकर पहुंच जाते हैं। पिछले दिनों इंदौर से अमृतसर की फ्लाईट शुरू होने पर ऐसा बताया गया कि सिखों को लेकर सरकार और मंत्री कितना ध्यान रख रहे हैं, दूसरी ओर भले ही सिख किसानों की दुर्दशा दिल्ली के द्वारे पर हो रही हो, परन्तु जब यह फ्लाईट अचानक बंद हो गई, तो वाहवाही लूटने वाले गायब हो गए। वे यह भी बताने को तैयार नहीं हुए कि फ्लाईट बंद क्यों की गई है? और महाराजा से यह भी नहीं पूछ पाए कि यह फ्लाईट अचानक टाटा क्यों कर दी गई?

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