डगर कठिन थी मगर.. मंजिल तय होती ही गई..
2015 में लालकिले से कही बात पर इंदौर ने लगाया ठप्पा
इंदौर। 2015 में लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह घोषणा कि देशभर में स्वच्छता अभियान चलाया जाएगा। साथ ही सर्वेक्षण कर देश के स्वच्छ शहर को पुरस्कृत भी किया जाएगा। प्रधानमंत्री की घोषणा पर सबसे पहले इंदौर शहर ने मुहर लगाई। राजनेताओं और अधिकारियों के कुशल नेतृत्व ने शहर को देश में नंबर वन बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। एक बार नहीं लगातार पांच बार से शहर देशभर में नंबर आते हुए विश्व में अपनी पहचान बना रहा है। यह शहरवासियों के लिए गौरवान्वित करने वाली बात है। नगर निगम हमेशा राजनीतिक अखाड़े में उलझा रहा है, लेकिन 2015 के नेतृत्वकर्ताओं ने इस छवि को मिटाते हुए नई छवि बनाई और इसकी कार्यशैली को विश्वभर में प्रसिद्ध कर दिया। पूर्व महापौर मालिनी गौड़, तत्कालीन निगम आयुक्त मनीष सिंह व आशीष सिंह की तिकड़ी ने शहर को नंबर वन बनाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी, उक्त परिषद् के बाद वर्तमान कमिश्नर प्रतिभा पाल ने भी अपनी प्रतिभा दिखाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी।
2015 में देशभर में स्वच्छता अभियान प्रारंभ किया गया। इंदौर की महापौर रही मालिनी गौड़ और तत्कालीन कमिश्नर मनीष सिंह ने इस अभियान को इस तरह प्रारंभ किया और मोदी के अभियान को देशभर में पहचान दिला दी। सबसे पहले गौड़ और सिंह की जुगलबंदी ने डोर टू डोर कचरा अभियान कलेक्शन की शुरुआत एक वार्ड से की, फिर धीरे-धीरे इसे शहर के 85 वार्डों में शुरू कर दिया। इस नई शुरुआत ने ही शहर में स्वच्छता अभियान को गति दी। गिला व सूखा कचरा अलग रखने की परंपरा शुरू करते हुए इसके निपटान के भी अलग-अलग क्षेत्रों में प्लांट बनाए गए। उसके बाद गौड़ और सिंह कदमताल करते हुए इस अभियान को जारी रखते हुए विभिन्न कार्यों में जुट गए। कचरा निपटान, कंपोजस्ट खाद, सीएनजी वेस्ट, सूखे कचरे से आमदनी, कार्बन क्रेडिट के साथ ही मुख्य लक्ष्यों पर ध्यान रखते हुए इस अभियान को इस स्तर पर ले गए कि शहर पहली बार के सर्वेक्षण में ही नंबर वन बन गया।
कचरे के पहाड़ को बनाया हरियाली से हरा-भरा
इस अभियान के पहले शहर का कचरा देवगुराड़िया स्थित निगम के ट्रेचिंग ग्राउंड पर पहुंचाया जाता था, जो न सिर्फ कचरे के पहाड़ के रूप में तब्दील हो गया था, बल्कि इसकी गंदगी से कई क्षेत्र बीमारियों की चपेट में आने लगे थे। निगम ने इसके निपटान की योजना बनाई और यहां पर ऐसा अभियान चलाया, जो कचरे के पहाड़ की बजाय अब हरियाली में तब्दील हो गया है। निगम ने यहां ऐसे तकनीकी प्लांट लगाए, जिससे सूखा व गिला कचरे का निपटान करते हुए वहीं नष्ट कर दिया गया और पूर्व कचरे को भी हटाते हुए यहां हरे-भरे मैदान तक बना दिए।
कार्यशैली देखने आए विदेश के प्रतिनिधि
1200 टन कचरे का प्रतिदिन निपटान
शहर जब दूसरी बार नंबर वन आया, तो देश-विदेश के प्रतिनिधि इंदौर शहर की सफाई देखने आया, वहीं यह भी जाना कि कचरे से कमाई की जा सकती है। वहीं कचरे के निपटान की योजना को भी जाना व समझा। देशभर में शहर एक पहचान बनकर सामने आया। शहरभर में 1200 टन कचरा प्रतिदिन निकलता है, इसका कलेक्शन व निपटान आसान नहीं था, लेकिन निगम की कार्यशैली ने न केवल कलेक्शन किया, वरन इसका निपटान भी आसान बना दिया।
12 लाख लोगों को सीधे जोड़ा अभियान से
35 लाख के शहर में सभी का सहयोग निगम को मिला, लेकिन निगम ने भी इस अभियान से आमजन को जोड़ने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। पूर्व महापौर गौड़ व पूर्व कमिश्नर मनीष सिंह ने इस अभियान को सीधे आमजनों से जोड़ा और शहरभर में हर क्षेत्र के लोगों से संपर्क साधा और 12 लाख लोगों को इस अभियान से जोड़ते हुए सफाई अभियान में महती भूमिका निभाई।
रात्रिकालीन सफाई पहली बार हुई प्रारंभ
शहर में 2015 के पहले रात्रिकालीन सफाई नहीं होती थी, लेकिन इस अभियान के प्रारंभ होते ही शहर में रात्रिकालीन सफाई व्यवस्था भी शुरू की गई। शहर के प्रमुख बाजार जब रात को बंद होते थे और वहां गंदगी पसरी होती थीह्य, उसके बाद निगम यहां सफाई अभियान चलाता था। निगम के सफाई मित्र हो या एनजीओ के सफाई मित्र, दोनों मिलकर यह अभियान चलाते थे। शहर की प्रमुख खाने-पीने की चौपाटियों पर विशेष नजर रखी जाती थी।
गौड़ व सिंह की जुगलबंदी में आड़े नहीं आई राजनीति
यूं तो निगम परिषदों में महापौर व कमिश्नर की पटरी कम ही बैठती है, क्योंकि महापौर पर राजनीतिक दबाव बना रहता है, जिसके चलते अधिकारियों व नेताओं का सामंजस्य हमेशा बिगड़ता रहता था, लेकिन मालिनी गौड़ व मनीष सिंह ने जिस तरह से आपसी सामंजस्य बैठाते हुए न विरोधियों का दबाव सहा, न ही इस परिषद् की कार्यशैली में राजनीतिक महत्वाकांक्षा आड़े आई। हालांकि दोनों की कार्यशैली का विरोध हुआ, लेकिन जब शहर नंबर वन आया तो विरोधियों ने चुप्पी साध ली।
धूल मुक्त शहर बनाने के लिए किए अथक प्रयास
शहर धूल, धुएं के प्रदूषण से भी घिरा हुआ था, लेकिन निगम ने नई पहल करते हुए सबसे पहले इन दोनों पर लगाम लगाते हुए स्वच्छता मिशन के तहत यह प्रयास किए कि सबसे पहले इसको खत्म किया जाए। जिसके चलते आधुनिक तकनीक की मशीनों का प्रयोग किया गया और धूल, धुएं से शहर को इससे मुक्ति दिलाई, जो इस अभियान में कारगर साबित हुए।