खंडवा: राजपूत और मुस्लिम वोट निर्णायक होंगे
यह चुनाव कांग्रेस, भाजपा नहीं महंगाई विरुद्ध आम आदमी हो गया, जोबट में कूदाकादी के चलते भाजपा का बड़ा धड़ा बेहद नाराज, मतगणना कल
इंदौर। कल मध्यप्रदेश के एक लोकसभा और तीन विधानसभा के उपचुनाव को लेकर सुबह से ही मतगणना को लेकर तैयारियां प्रारंभ हो चुकी है। मालवा निमाड़ की दो सीटों पर सबकी नजर लगी हुई है। खंडवा को लेकर वोटों का प्रतिशत कम होने को लेकर जहां कांग्रेस के लोग यह दावा कर रहे हैं कि इस बार चुनाव कांग्रेस भाजपा का नहीं महंगाई और बेरोजगारी के साथ सरकार का है। दूसरी ओर खंडवा में पिछले चुनाव से वोटों का प्रतिशत बेहद कम है। यानि भाजपा को लहर का लाभ मिलने की संभावना नहीं के बराबर है। 2009 में यहां से अरुण यादव 49 हजार मतों से विजयी हुए थे। तब वोटों का प्रतिशत 60.40 था। वहीं इस लोकसभा में 1 लाख के लगभग राजपूत वोट हैं जिसका लाभ राजनारायण पुरनी को मिलना तय है। वहीं मुस्लिम आबादी के डेढ़ लाख वोट का फायदा भी मिल सकता है। इन सबके बाद ही यहां पर जीत हार 15 से 20 हजार मतों के बीच ही रहेगी।
41 साल बाद इस सीट पर उपचुनाव करवाया जा रहा है। इसके पहले 1979 में यहां उपचुनाव करवाया गया था। जिसमे जनता पार्टी के कुशाभाऊ ठाकरे ने कांग्रेस के एन.एस. ठाकुर को हराया था। खंडवा लोकसभा क्षेत्र में 8 विधानसभा आती है। खंडवा, बुरहानपुर, नेपानगर, पंधाना, मांधाता, बड़वाह, भीकनगांव और बागली शामिल है। इन आठ विधानसभाओं में से तीन पर बीजेपी और चार पर कांग्रेस के अलावा एक पर निर्दलीय उम्मीदवार पिछले लोकसभी में जीता था। खंडवा लोकसभा सीट भाजपा की परंपरागत सीट मानी जाती है। यहां 1989 में पहली बार भाजपा के उम्मीदवार नंदकुमार सिंह चौहान जीते थे और छह बार वे यहां से लोकसभा के लिए चुने गये। केवल 2009 में उन्हें कांग्रेस के अरुण यादव के हाथों 49 हजार वोटों से हार का सामना करना पड़ा था। 2014 और 2019 में इस सीट पर मोदी लहर का लाभ मिला था। इस बार यहां से कांग्रेस में राजनारायणसिंह पुरनी को टिकट दिया था तो वहीं मुख्यमंत्री शिवराजसिंह की इच्छा भाजपा से नंदकुमारसिंह चौहान के बेटे हर्ष चौहान को उम्मीदवार बनाने की थी। परंतु परिवारवाद के चलते भाजपा ने उन्हें उम्मीदवार नहीं बनाया। इस सीट पर बीस प्रतिशत सामान्य वोट है। 26 प्रतिशत ओबीसी है। एसटी.एससी वोट 38 प्रतिशत है और अल्पसंख्यक 15 प्रतिशत है। लगभग सभी विधानसभा में पिछले चुनाव से वोटों का प्रतिशत कम रहा है। बागली में जहां 2019 में रिकार्ड 42.52 प्रतिशत मतदान हुआ था वह इस बार घटकर 67.74 प्रतिशत रह गया है। यही स्थिति मांधाता की है। भाजपा के गढ़ों में भी इस बार वोटों का प्रतिशत बेहद कम रहा। पंधाना में 80 प्रतिशत से ज्यादा मतदान पिछली बार हुआ था जो इस बार घटकर 60 प्रतिशत रह गया। बड़वाह में 2009 में 60 प्रतिशत मतदान के साथ कांग्रेस जीती थी यहां पर इस बार भी 60 प्रतिशत मतदान ही हुआ है। यहां पर कांग्रेस के पक्ष में सचिन बिरला के जाने के बाद गुर्जर समाज की नाराजगी का लाभ भी कांग्रेस को मिल सकता है। दूसरी ओर जोबट में भाजपा के चार मंत्रियों ने पिछले पंद्रह दिनों से डेरा डाल रखा था। इसके बाद भी कांग्रेस की इस परंपरागत सीट पर जीत की उम्मीद भाजपा को भी कम है। वहीं रेगांव सीट पर इस बार दलित मतदाता ही अहम रहेंगे। कांग्रेस के स्टार प्रचारक के रुप में केवल पूरे चुनाव में कमलनाथ ही मैदान में रहे जबकि भाजपा की ओर से दो प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों के अलावा बीस से अधिक सांसद और बीस से अधिक मंत्री इन क्षेत्रों में डटे रहे हैं। कल सुबह 11 बजे तक परिणामों की सही स्थिति दिखाई देने लगेगी।