गुस्ताखी माफ़-दिग्गज चुनावी क्षेत्रों से वापस नहीं लौटेंगे…ये कोई बात नहीं…बिल्ली के भाग पर टिका छिंके का भविष्य…

दिग्गज चुनावी क्षेत्रों से वापस नहीं लौटेंगे…
उपचुनाव को लेकर अब भाजपा में चुनावी पर्यटन पर सख्त नजर रखी जा रही है। भाजपा के तमाम दिग्गजों को अब निर्देशित किया गया है कि वे केवल त्यौहार मनाने के लिए ही अपने घर वापस लौटेंगे। कई दिग्गज अपना सामान समेटकर दिए गए क्षेत्रों में पहुंच चुके हैं, वहीं दूसरी ओर कई क्षेत्रों में परंपरागत तरीके से चुनाव लड़ने वाले साड़ियां पहुंचाने में भी जुट गए हैं। अब कहां पहुंच रही हैं, कहां नहीं, यह तो आपको ही देखना होगा। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस पूरी तरह से स्थानीय इकाई के भरोसे ही मैदान में है, वहीं खंडवा के चुनाव से कमलनाथ ने सज्जन वर्मा को छेंटी कर दिया है। क्यों किया गया है, यह नहीं मालूम, पर उनके तमाम समर्थक खंडवा को छोड़कर कहीं पर भी जाने को तैयार हैं। लगता है अरुण यादव की उम्मीदवारी नहीं हो पाने के कारण सदमे में हैं, पर अब दूसरी जगह जाना कहां है, यह भी तो नहीं कोई बता रहा है।
ये कोई बात नहीं…
कोरोना महामारी के दौरान ऐसा कोई घर शायद ही होगा, जिसमें कोई परिजन इस बीमारी के प्रभाव में नहीं आया, परंतु पूरे शहर में इस बात की चर्चा जोरों से है कि इस बीमारी से थर्ड जेंडर के लोग प्रभावित नहीं हो सके। उन तक बीमारी भी नहीं पहुंच सकी थी। डॉ. भी मानते हैं कि यह सही है कि थर्ड जेंडर अस्पताल में भर्ती नहीं हुआ। उनका कहना था कि कोरोना भी समझता है कि कहां घर-घर ताली बजाता फिरूंगा, यानी जो लोग बीमारी के प्रभाव में नहीं आए, क्या वे… खैर छोड़ो।
बिल्ली के भाग पर टिका छिंके का भविष्य…
तीन विधानसभा और एक लोकसभा चुनाव पर कांग्रेसियों की ही नहीं, भाजपा के भी कई असंतुष्टों की नजरें लग गई हैं। विरोधी मान रहे हैं कि इन चुनाव के परिणाम मध्यप्रदेश के भाजपा के भविष्य की राजनीति को भी तय करेंगे। मामा के तमाम प्रखर विरोधी मान रहे हैं कि यह चुनाव परिवर्तन की बयार लेकर ही आएगा, क्योंकि महंगाई के साथ बेरोजगारी और पेट्रोल-डीजल की कीमतों ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है। ऐसे में अब इस चुनाव में कई मुसीबतों का सामना होने जा रहा है। विरोधी तो यहां तक दावा कर रहे हैं कि मामाजी का हाव-भाव, यानी बॉडी लैंग्वेज भी संकेत दे रहा है कि यह चुनाव उनके लिए कई निर्णय लाएगा। इधर, कांग्रेस भी इन्हीं चुनाव से अपना भविष्य जोड़ रही है। संगठन का पता नहीं है, कार्यकर्ताओं की फौज नहीं है, ऐसे में कांग्रेस बिल्ली के भाग से छींका टूटने का इंतजार कर रही है। अब यह कौन समझाए कि इस बार न बिल्ली का भाग ठीक है, छींके का तो भगवान ही मालिक है।

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