गुस्ताखी माफ़-वंशवाद से मुक्त भाजपा उधार के सिंदूर में उलझी…हुआ कुछ नहीं है दो नए आ गए है…

वंशवाद से मुक्त भाजपा उधार के सिंदूर में उलझी…
भाजपा में उम्मीदवारों के चयन को लेकर एक और जहां लोकसभा में वंशवाद को सिरे से नकार दिया तो वहीं विधानसभा में उधार के सिंदूर से मंगल परिणय का प्रयास शुरू हो गया है। लंबे समय से भाजपा में पदों पर बैठे दिग्गज नेताओं द्वारा विरासत में उनके परिजनों को आगे लाने को लेकर कार्यकर्ताओं में नाराजगी बनी हुई है। खंडवा में इस बार भाजपा का लोकसभा उम्मीदवार दिल्ली से ही तय हुआ। परिणाम यह हुआ कि हर्ष चौहान जो नंदकुमार सिंह चौहान के पुत्र हैं, वे अपनी उम्मीदवारी तय मान रहे थे, मामा की भी यही इच्छा थी कि यहां पर नंदू भैया के चिरंजीव ही मैदान में परंतु दिल्ली बैठे आंकाओं ने भाजपा ने छोटे से कार्यकर्ता ऊपर ला दिया। ज्ञानेश्वर पाटिल यहां से अब मैदान में हैं। फैसला जो भी हो, भाजपा के ही कई लोग इस बात से खुश हैं कि वंशवाद को लेकर लंबे समय से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी निशाना साधते रहे हैं। भाजपा के ही आईटी सेल द्वारा जारी की गई सूची में विपक्षी दलों के परिवारों और उनके पुत्रों पर जमकर प्रहार होता रहा है, जिसमें राजनीतिक दलों को प्रा.लि. भी बताया गया है, परंतु खंडवा की उम्मीदवारी में वंशवाद के समापन पर भाजपा का ही एक धड़ा प्रसन्न है और मान रहा है कि भविष्य में यही वंशवाद की परंपरा छोटे चुनाव में भी समाप्त होना चाहिए। इंदौर में पंद्रह से अधिक पार्षद भाजपा के ऐसे हैं, जो खुद के लड़ने के बाद अब अपने परिजनों के लिए जमीन तैयार कर रहे हैं तो दूसरी ओर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से भाजपा में लाकर उम्मीदवारी दिए जाने को लेकर माना जा रहा है कि भाजपा के बड़े नेताओं को यह महसूस होने लगा है कि उधार के सिंदूर में ज्यादा आनंद है। कार्यकर्ताओं के बजाय वे कांग्रेस के नेताओं पर ज्यादा भरोसा कर रहे हैं। हालांकि अब उपचुनाव के परिणाम ही बताएंगे कि वंशवाद से भाजपा मुक्त हो रही है या उधार के सिंदूर से अपनी मांग भरकर मंगल परिणय के बाद इसी परंपरा को आगे भी चलाती रहेगी।

हुआ कुछ नहीं है दो नए आ गए है…
इन दिनों शहर में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी को लेकर ऐसा लग रहा है कि पूरी तरह से नई इकाई का गठन किया गया है, जबकि भाजपा के दिग्गज नेताओं का कहना है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा इकाई का गठन पहले ही कर चुके थे, उसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। केवल राष्ट्रीय कार्यकारिणी में लोकसभा अध्यक्ष रहीं सुमित्रा महाजन के हटने के बाद खाली हुई जगह पर ज्योति बाबू और पंडित नरोत्तम मिश्रा का आगमन हो गया है। हालांकि ज्योति बाबू के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के प्रवेश को लेकर अब भाजपा के दिग्गज नेताओं को यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि मध्यप्रदेश के चुनाव में अब उनका दखल पहले की अपेक्षा और ज्यादा हो जाएगा। पिछली बार उनके पच्चीस टिकट थे तो अगली बार उनके पचास उम्मीदवारों का होना लगभग तय है और सबसे ज्यादा असर मालवा-निमाड़ में दिखाई देगा। ज्योति बाबू अभी भी कांग्रेस के दो दिग्गज नेताओं से संपर्क में बने हुए हैं और बता रहे हैं कि उन्हें भाजपा में पूरा सम्मान मिलेगा।

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