गुस्ताखी माफ़-न भाजपा के तेवर रहे न कार्यकर्ता के जेवर रहे…

न भाजपा के तेवर रहे न कार्यकर्ता के जेवर रहे…
भाजपा के नेतृत्व में यह मान लिया है कि राजनीतिक सत्ता के लिए भाजपा में शामिल होते ही सब गंगा की तरह पवित्र हो जाते हैं। दूध के धुले हुए तो वह कांग्रेस में भी थे ही। पांच साल पहले तात्कालीन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने खुद कहा था कि किसी भी बूथ का कांग्रेस कार्यकर्ता भाजपा में लाया जाता है तो अच्छा होगा। भाजपा की नई विचारधारा ने अब कार्यकर्ता की दल में परवाह समाप्त हो गई है। भाजपा की विचारधारा और संस्कृति सत्ता की लालच के चलते इस कदर संक्रमित हो गई है कि मूल विचारधारा ही अब दरकिनार हो गई। भाजपा का मूल कार्यकर्ता तीन तरीके से मर रहा है। मध्यप्रदेश के संगठन महामंत्री रहे सुहास भगत ने 55 साल की उम्र से कार्यकर्ताओं को जो सेवानिवृत्ति देना प्रारंभ की तो पूरी जवानी भाजपा को देने वाले कार्यकर्ता को भारी सदमा लगा। दूसरी ओर यह भी हो गया है कि यदि उस कार्यकर्ता का कोई विकल्प दूसरे दल से आ गया तो पहली प्राथमिकता उसके सम्मान की होगी। यानि भाजपा मान रही है कि हमारे दल से ज्यादा बेहतर प्रतिभाएं कांग्रेस में भरी पड़ी हुई है। इसीलिए घर बैठे कांग्रेसियों को अपने ही दल के जीवन समर्पित करने वाले कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर पदों पर स्थापित किया जा रहा है। यह भी तय है कि जो आ रहे है वे केवल मलाई के पदों पर ही बैठना चाहते है। संगठन में काम करने की किसी की रूचि नहीं है। सब सत्ता की गंगा में ही नहाना चाह रहे है। खंडवा में भी कांग्रेस के बड़े नेता के इंतजार में पलकें बिछाए भाजपा के दिग्गज बैठे हुए है। जिसका परिणाम यह हो रहा है कि भाजपा का वह कार्यकर्ता जो सिद्धांतों और चरित्र की बातों को प्राथमिकता देता था वह आज ऐसे काकस में उलझ गया है कि अब वह चरित्र की नहीं केवल सत्ता की बात कर रहा है। कार्यकर्ताओं की छटपटाहट का अंदाज सत्ता और संगठन में आनंद ले रहे उन नेताओं को नहीं है जो पिछले 13 सालों से सत्ता का आनंद ले रहे हैं। पर यह तय हो गया है कि सही समय का इंतजार कार्यकर्ता बड़ी छटपटाहट के साथ कर रहा है। वह जानता है कि उपचुनाव में सरकार के हारने से कोई प्रभाव नहीं होगा। अत: वह मुख्य चुनाव का इंतजार करेगा। अब उन तमाम नेताओं को भी यह समझ लेना चाहिए कि उनके क्षेत्र में घर बैठा कोई कांग्रेसी नेता उनके विकल्प के रूप में दिखेगा तो उस आयातित नेता की गाज उन पर भी गिरना तय है। इसका परिणाम भोग रहे भंवरसिंह शेखावत से लेकर राजेश सोनकर तक है, जिन्हें अब पार्टी में वापसी के लिए बड़े संघर्ष करने होंगे। कुल मिलाकर भाजपा के यह संस्कार ही एक दिन भाजपा को ले डूबेंगे। इन संस्कारों ने जहां भाजपा के तेवर गिरवी रख दिए हैं वहीं कार्यकर्ता के संस्काररूपी जेवर भी गिरवी रखा गए हैं। ना कार्यकर्ता अपनी बात कह पा रहा है ना नेता किसी की सुन रहे हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह भी है कि भाजपा के वरिष्ठ नेता कृष्णमुरारी मोघे को अपने समर्थकों के साथ भोपाल में कार्यालय पर प्रदर्शन करना पड़ा जब प्रधानाचार्य की यह स्थिति हो गई है तो फिर कार्यकर्ता के बारे में तो सोचना ही बेकार होगा।
-9826667063

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