गुस्ताखी माफ़- मुरली की धुन में प्रकाश का उजाला…नए अंदाज में थे कार्यक्रम में भिया…

मुरली की धुन में प्रकाश का उजाला…
इन दिनों भाजपा के मध्यप्रदेश की राजनीति में एक नया दीया अपने प्रकाश से कई लोगों को चौंधिया रहा है। अब शिव के प्रकाश जहां पूरे प्रदेश में नजर रख रहा है तो मुरली धर कर घूम रहे राव के तीखे बाण कई नेताओं को घायल कर रहे हैं और इसी का परिणाम है कि अब भोपाल से दिल्ली की कई दौड़ प्रारंभ हो गई है। ज्योति बाबू की ज्योति में भी कितना घी जलेगा, यह तो भविष्य बताएगा, परंतु यह तय हो गया है कि उन्हें भी भाजपा की राजनीति और रणनीति समझ में आने लगी है। एक साल तक मंत्री के इंतजार में रहने के बाद अब उनके समर्थकों को निगम-मंडलों में जगह मिल जाए तो बड़ी बात होगी। अगले चुनाव तक वे इसी भाजपा में अपने कई समर्थकों को खो चुके होंगे और इसीलिए उनके तमाम प्रयास के बाद भी वे अपने समर्थकों को जगह नहीं दिला पा रहे हैं तो दूसरी ओर नई जोड़ी ने जो नियंत्रण किए हैं, उससे संगठन और सत्ता में भी अब मनचाहे निर्णय आसान नहीं होंगे। अब संगठन और सत्ता में प्रकाश की रोशनी में मुरली की धुन पर होने वाले फैसले ही होना तय है।

नए अंदाज में थे कार्यक्रम में भिया…
दो दिन पहले पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर आयोजित समारोह में आर.के. स्टूडियो के मुखिया भिया ने जमकर इशारों-इशारों में कई राजनीतिक तीर चलाए। हालांकि वे अपने स्वभाव के अनुसार दो घंटे देर से ही आए और उन्होंने कहा मैं सीधे खंडवा से ही चला आ रहा हूं। हालांकि इस दौरान उन्होंने आंखों की बीमारी यानी कंजक्टिव वाइरस के बारे में बताया। काला चश्मा लगाने का फायदा यह है कि हम किसे देख रहे हैं, हमें मालूम रहता है। भिया ने कहा हीरो मत समझना, मजबूरी है। अपने बेबाक उद्बोधन में उन्होंने तीन नंबर में यह कहकर आनंद ले लिया कि आकाश कैसा काम कर रहा है, मैं इसे लोकप्रिय विधायक नहीं मानता और वे इस क्षेत्र में भी अभी पूरी तरह लोकप्रिय हैं। इस दौरान बार के नए-नवेले अध्यक्ष दिनेश पांडे ने कहा कि यह मेरा भानजा है। मेरे साथ के लोग इसके मामा हैं, परंतु हम कंस मामा नहीं हैं। उस दौरान उन्होंने प्रमोद टंडन, जो वहां मौजूद थे, उन्हें भी धन्यवाद दिया। अपने पुराने दिनों को याद करते हुए उन्होंने कहा पहले हम यहां जनसंघ के दिनों में दीपक लेकर आते थे तो लोग लौटा देते थे। विधानसभा चुनाव के बाद वे पहली बार इस क्षेत्र में आए हैं। हालांकि दादा दयालू के निर्देश पर कार्यक्रम होने की बात राजेश शिरोढ़कर ने कही और फिर कार्यक्रम के बाद सेल्फी को लेकर परंपरागत धक्का-मुक्की का मुख्य कार्यक्रम जारी हुआ। कई वरिष्ठ भाजपा नेताओं को धक्का-मुक्की के बीच ही शाल-श्रीफल दिए जाते रहे।
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