गुस्ताखी माफ़-भाजपा कई सबक के साथ नया दौर शुरू कर रही है…मूंछें क्या गईं बाल कचरा हो गए…

भाजपा कई सबक के साथ नया दौर शुरू कर रही है…
एक ओर मध्यप्रदेश में चुनावी बयार शुरू होने में मात्र एक वर्ष ही बाकी रह गया है, उधर भाजपा में अब उम्मीदवारी के कई नए मॉडल स्थापित हो रहे हैं। इसका उदाहरण गुजरात में विजय रूपाणी सरकार के हटाए जाने और एक बार के चुने हुए को मुख्यमंत्री बनाने के साथ पूरे मंत्रिमंडल में नए चेहरे लाने की तैयारी बता रही है कि मोदी-अमित शाह के घर में हो रहा यह प्रयोग अब अन्य राज्यों में भी लागू होने जा रहा है और इसी आधार पर मध्यप्रदेश में आने वाले चुनाव कई स्थापित नेताओं को घर बैठाने के लिए नया मॉडल होगा। पार्टी अब पुराने पैमाने में विचारधारा और समर्पण से और आगे बढ़कर ऐसे नए चेहरों को आगे लाएगी, जो समाज में मॉडल के रूप में भी दिखाई देते हों। भाजपा में तेजी से बढ़ रही सदस्यों की संख्या के बाद अब रोटेशन के आधार पर नए उम्मीदवार चयनित होंगे। उदाहरण के लिए दिल्ली नगर निगम में सारे पुराने उम्मीदवारों को हटाने के साथ ही उनके परिजनों को भी उम्मीदवारी नहीं दी गई थी, इसके बाद भी दिल्ली में भाजपा का तीनों नगर निगमों में परचम लहराया था। गुजरात मॉडल के आधार पर अब मध्यप्रदेश में आने वाले चुनाव में जहां सभी नए चेहरे मैदान में दिखाई देंगे तो पुराने दिग्गजों के रिश्तेदार भी कहीं पर भी नहीं मिलेंगे। इधर कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए नए-नए भाजपाई मंत्रियों की भी भाजपा में चल रही नई रणनीति से नींद उड़ी हुई है। उन्हें लग रहा है कि अगले चुनाव तक वे भी न घर के रहेंगे और न घाट के। ऐसी स्थिति में अगले डेढ़ साल में ऐसे कई मंत्री अपने विभागों में सुबह से ही फावड़ा और तगाड़ी लेकर पहुंचना शुरू हो जाए तो इसकी खबर भी लग ही जाएगी। वैसे भी भाजपा में दिग्गजों का मानना है कि लोगों को पार्टी से शिकायत नहीं होती है, शिकायत व्यक्ति से होती है।
मूंछें क्या गईं बाल कचरा हो गए…
इंदौर में लंबे समय से संगठन मंत्रियों को रबड़ी छनवा-छनवाकर पदों पर बने रहने वाले कई नेता इन दिनों चिंतित दिखाई दे रहे हैं, क्योंकि उन्होंने शेर की पूंछ पकड़ रखी थी तो जंगल में कौन विवाद मोल ले। ऐसे में वे जहां चाहते थे, नियुक्ति करवा लेते थे। इसी कारण वे नगर अध्यक्ष के साथ ही क्षेत्रिय विधायक तक को घांस नहीं डालते थे। कुछ तो खुद ही विधायक बनने के लिए भी दावेदारी करते देखे जा सकते थे। अब संगठन मंत्रियों की दुकान मंगल होने के बाद वे भी समझ नहीं पा रहे हैं कि अब किस खूंटे से बंधा जाए। इंदौर में चार नाम ऐसे थे, जो लंबे समय से संगठन मंत्रियों की मूंछों के बाल होते थे। अब बिना मूंछ उन्हें जगह नहीं मिल रही है। वक्त बताएगा कि अब वे किस मोहरे को अपनी जेब में रखने का प्रयास करते हैं।
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