गुस्ताखी माफ-सत्ता के मठाधीशों ने संगठन की आवाज का गला दबा दिया…
सत्ता के मठाधीशों ने संगठन की आवाज का गला दबा दिया…
भाजपा में इन दिनों उलटी बयार चल रही है। भाजपा को जमीन पर खड़ा करने वाले तमाम संगठन और सत्ता के नेता यह मानने लग गए हैं कि अब संगठन नाम की कोई चीज नहीं रह गई है। पुतलों की भरमार है। स्वार्थसिद्धि और व्यक्तिवादी राजनीति ने संगठन को इस कदर पंगु कर दिया है कि रायशुमारी का भी चीरहरण मठाधीशों के सामने होते हुए भाजपा के ही कई कार्यकर्ता देखते रहते हैं। चीरहरण के बाद भी यह अपने भविष्य की कुछ उम्मीद को लेकर मौन साध लेते हैं। पहले संगठन के नाम नीचे से आते थे। अब ऊपर से आना शुरू हो गए हैं। नए अध्यक्ष वी.डी. शर्मा ने तो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के उन तमाम नेताओं को संगठन में दामाद बना दिया है, जिनका कोई जमीनी आधार नहीं है। पिछले दिनों आईटी सेल में हुई नियुक्ति ऐसी हुई है कि बड़े पद पर नियुक्त हुए नेता के सोशल मीडिया पर सोलह फालोअर भी नहीं हैं। इधर इंदौर में भी कुछ नियुक्तियां उन्होंने अपने पुराने रिश्तों के आधार पर करनी प्रारंभ कर दी हैं और यही असंतोष का एक कारण भी बनता जा रहा है। दूसरी ओर संगठनों में नियुक्त किए जाने वाले कार्यकर्ताओं के नाम भी विधायकों से ही मांगे जा रहे हैं, यानी भाजपा की निष्ठा के बजाय विधायक की निष्ठा ज्यादा जरूरी हो गई है। कार्यकर्ता का पार्टी के प्रति समर्पण का कोई मायना नहीं रह गया है। पिछले दिनों एक वार्ड के सौ से अधिक भाजपा कार्यकर्ताओं ने संगठन महामंत्री को पत्र लिखकर अपना दु:ख व्यक्त करते हुए लिखा कि पिछले तीस साल से क्षेत्र के पार्षद के रूप में पिता का कब्जा बरकरार रहा। पिता मकान से हवेली में आ गए, अब उनके पुत्र वार्ड में कब्जा करने जा रहे हैं, यानी अगले तीस साल अब पुत्र का कब्जा वार्ड पर रहेगा। वार्ड का कार्यकर्ता केवल बाप-बेटों का अर्दली ही बना रहेगा। इसी के साथ पिछले दिनों भाजपा कार्यालय में नगर अध्यक्ष के साथ मनाए गए राखी महोत्सव में महिला कार्यकर्ताओं ने खुलेआम शिकायत की कि राखी हमसे बंधवाते हो, आंदोलन में हमें बुलाते हो और जब वार्ड में उम्मीदवार का चयन किया जाना हो तो पार्षद की पत्नियों को टिकट दे देते हो। इस समय भाजपा पूरी तरह अंधत्व की शिकार हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वंशवाद के घनघोर खिलाफ हैं और शहर पूरी तरह वंशवाद की बेल पर चल रहा है, यानी भगतसिंह तो सभी को चाहिए, पर चार घर छोड़कर। भाजपा में समर्पण सबका है, पर मेरे परिवार का अलग है। दिग्गजों ने कहा अब संगठन कुशाभाऊ ठाकरे और प्यारेलाल खंडेलवाल की सैद्धांतिक अस्थियों को पूरी तरह कान्ह नदी में डुबोकर आ गए हैं। आश्चर्य यह भी है कि कार्यकर्ता को पार्टी में जीवन समर्पित करने के बाद पैंसठ साल की आयु में सेवानिवृत्ति मिल रही है तो दूसरी ओर शिखर पदों पर बैठे नेता अपना 71वां जन्मदिन मनाने जा रहे हैं। फिर वही बात है ना… कि सिद्धांत अपनी जगह है और राजनीति और सत्ता का सुख अपनी जगह है। अब तो कांग्रेस की सत्तर साल की गंदगी भी इन सात सालों में पार्टी की रीति-नीति की नदी में नहाने लगी है और सब पूरी तरह पवित्र होकर देश चला रहे हैं।