गुस्ताखी माफ-खड़ा नहीं हो रहा संगठन…कहा किसने अकेले ही दौड़ रहे है…दो बार देव उठकर सो गए कुछ नहीं हुआ…
खड़ा नहीं हो रहा संगठन…
तमाम कोशिश के बाद भी इंदौर में कांग्रेस का संगठन खड़ा नहीं हो पा रहा है। पिछले दिनों कोरोना परिवारों की जानकारी के लिए कांग्रेस के नेताओं ने लंबी-चौड़ी सूची वार्ड स्तर पर जारी कर दी। सूची में शामिल लोगों से जब पूछा गया कि आपको सूची में शामिल किया गया है तो कई ने कहा कि हमें तो कोई जानकारी ही नहीं है और न पूछा गया है। इसमें कई नाम ऐसे हैं, जिनको वार्ड में भी लोग नहीं जानते हैं। अब ऐसे लोग कांग्रेस का संगठन खड़ा करने के लिए लगे हुए हैं। खुद मैदान में खड़े नहीं हो पा रहे है कार्यकर्ता को खड़ा करना चाहते है। सूत्र बता रहे हैं कि अभी संगठन इसलिए खड़ा नहीं हो पा रहा है कि जहां भाजपा में कम पदों के लिए ज्यादा कार्यकर्ता के बीच महाभारत है तो कांग्रेस में कम कार्यकर्ताओं के बीच ज्यादा पदों पर महाभारत है। अब सवाल उठता है कि जो खुद ही सीधे खड़े नहीं हो पाते हैं, वे संगठन कैसे खड़ा करेंगे। इसके लिए भी रिश्ते और हुनर लगता है।
कहा किसने अकेले ही दौड़ रहे है…
खंडवा लोकसभा चुनाव को लेकर इन दिनों भाजपा के वरिष्ठ नेता दौड़ में अकेले ही शामिल हो गए हैं। वे अकेले ही अब यहां से चुनाव लड़ने के लिए दौड़ रहे हैं। भोपाल में कहीं पर भी उनका कोई नामलेवा नहीं है। दूसरी ओर आईबी और प्रशासनिक रिपोर्ट में भी दो टूक लिखा गया है कि मोघे का खंडवा लोकसभा में कोई वजूद नहीं है। हालांकि दूसरी ओर अर्चना चिटणीस की उम्मीदवारी को लेकर भी बेहतर हालत नहीं बताई गई है। ले-देकर एक बार फिर स्व. नंदकुमारसिंह के पुत्र का ही नाम सामने आया है और इस पर लगभग सभी की सहमति बनी हुई है। नंदकुमार सिंह चौहान के पुत्र पर हालांकि महाराष्ट्र में एक प्रकरण है, वह भी हादसे के रूप में दर्ज है। इसका चुनाव पर कोई विशेष असर नहीं होगा। अतत: एक बार फिर खंडवा में चौहान परिवार ही मैदान में उतरता दिखाई दे रहा है। हालांकि मोघेजी के पास अभी कई मौके बाकी हैं, इसके बाद महापौर का चुनाव होना है और उसके बाद फिर विधानसभा भी होनी है। यह हम नहीं कह रहे, भाजपा संगठन के उच्च पद पर बैठे नेता कह रहे हैं।
दो बार देव उठकर सो गए कुछ नहीं हुआ…
अंतत: एक बार फिर नगर और जिला कार्यकारिणी की आस में देव उठकर वापस सो गए और गठन नहीं हो पाया। अब जब फिर देव वापस उठकर काम पर लगेंगे, उस वक्त कुछ संभावना बन सकती है। वैसे भी संगठन की इतनी जरूरत अभी है नहीं। दूसरी ओर उपचुनाव को लेकर एक बार फिर कार्यकर्ताओं को जोता जा रहा है। ऐसे में अब अगले चार महीने तक दोनों इकाइयों के गठन की फाइलें बंद हो चुकी हैं। हालांकि गौरव बाबू के लिए ये लाइनें बिलकुल सही हैं कि कभी चिलमन से ये देखें और कभी चिलमन से वो देखें और आग लगा दो ऐसी चिलमन में, न ये देखें, न वो देखें। दो और चार नंबर में महामंत्री को लेकर चल रहे संग्राम के बाद अब चार महीने आनंद-मंगल से गुजरेंगे। इस बीच दादा दयालू भी एक बार फिर उस्तरों में धार करके अगली तैयारी के लिए तैयार हो जाएंगे। उसके बाद निकाय चुनाव आ जाएंगे। दो साल तो उलट-पलट कर ही निकल जाएंगे। यदि अपने वालों ने…।
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