विवादों के चलते नगर ईकाई लंबे समय के लिए टली

गंगा पांडे और मोहन सेंगर के बीच तुलना से पुराने भाजपाई व्यथित

इंदौर। क्षेत्र क्रमांक ४ के भाजपा नेता गंगा पांडे को संगठन की नगर ईकाई में जगह न दिये जाने को लेकर क्षेत्र क्रमांक २ के विधायक रमेश मेंदोला और क्षेत्र क्रं. ४ के विधायक मालिनी गौड़ पूरी तरह आमने सामने आ गये हैं। अब सूचिता और संस्कार की बात करने वाली भाजपा में गुटबाजी पूरी तरह हावी हो गई है। गंगा पांडे को रोकने के लिए मोहन सेंगर का नाम जिस तरीके से संगठन में आया है इसे लेकर कई पुराने दिग्गज भाजपाई बुरी तरह आहत है। उनका कहना है पार्टी में अब योग्यता का कोई पैमाना नहीं है। अब केवल सत्ता ही संगठन को चलाने लगा है और इसीलिए सत्ता में बैठे लोग संगठन पर भी भारी हो गये हैं। संगठन में बैठे बड़े नेताओं में दम नहीं कि वे कार्यकर्ताओं को उचित स्थान दिला सकें।
भारतीय जनता पार्टी की नगर और ग्रामीण ईकाईयां खींचतान के चलते अब बुरी तरह उलझ गई है। दूसरी ओर निकाय चुनाव को देखते हुए कई दिग्गज नेताओं ने संगठन से अपनी दूरी बना ली है। वे निकाय चुनाव में ही अपनी किस्मत आजमाना चाहते हैं। दूसरी ओर निकाय चुनाव भी अगले साल जनवरी के लगभग ही होने की संभावना है। इधर नगर अध्यक्ष गौरव रणदीवे संगठन खड़ा करने के लिए अब संगठन महामंत्री के भरोसे ही रह गये हैं। उनका भाजपा के बड़े नेताओं में कद बेहद कम है पर इसी कारण वे फैसले नहीं ले पा रहे हैं। दूसरी ओर भाजपा में लंबे समय से राजनीति कर रहे गंगा पांडे विद्यार्थी परिषद के अलावा युवा मोर्चा में भी प्रबल दावेदार रहे परंतु उनके रिश्ते गौड़ परिवार से बेहतर नहीं रहे और इसी कारण वे संगठन में जगह नहीं बना पा रहे हैं। इस मामले में अब भाजपा के ही पुराने नेता कह रहे हैं कि मोहन सेंगर और गंगा पांडे के भाजपा के प्रति समर्पण में बड़ा अंतर है। मोहन सेंगर एक व्यक्ति की निष्ठा के कारण पार्टी में है। जबकि गंगा पांडे पिछले बीस सालों से संगठन के लिए काम कर रहे हैं। योग्य कार्यकर्ता को इस तरह दरकिनार करना भविष्य में अच्छे कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ेगा। इधर दूसरी ओर विधायकों और कोर कमेटी के सदस्यों से गठन के लिए नाम मांगे गये थे। करीब तीन सौ से ज्यादा नाम शहर और जिलाध्यक्षों के पास पहुंचे थे। ग्रामीण ईकाई में सिंधिया समर्थकों को लिये जाने में भी बड़ी खींचतान है। एक राय बनाने के लिए बड़े नेताओं के प्रयास भी विफल हो चुके हैं। अब जब तक महामंत्री पद के लिए निराकरण नहीं हो जाता तब तक ईकाई का गठन नहीं होगा। यह भी संभव है कि महामंत्री के लिए अब नये नाम ही सामने आयेंगे।

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