गुस्ताखी माफ –और वे देखते ही रह गए…दुई पाटन के बीच…
और वे देखते ही रह गए….
भाजपाइयों को ज्योति बाबू से कुछ सीखना चाहिए। कार्यकर्ताओं के प्रति ईमानदारी का भाव शायद भाजपा में ज्योति बाबू के आने के बाद ही महसूस हो रहा है। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि उनके लिए सबसे पहले उनका कार्यकर्ता है और वे उसे अकेला नहीं छोड़ सकते। भाजपा का एक भी नेता ताल ठोककर यह नहीं कह सकता कि उसने प्रदेश कार्यसमिति में अपने किसी समर्थक को कभी पहुंचाया हो। कार्यकर्ताओं को टायर की तरह ही रखा, यानी जो टायर है, वह टायर ही रहेगा। कार की सीट नहीं बन सकता। दूसरी ओर चंद महीनों पहले कांग्रेस से भाजपा में आए ज्योति बाबू ने प्रदेश कार्यसमिति में अड़सठ समर्थकों को टेबल ठोककर जगह दिला दी। इधर ज्योति बाबू अब उनके इंदौरी समर्थक विपिन खुजनेरी संटू और मोहन सेंगर को अगली सूची में पदों पर सुशोभित किया जा रहा है। संटू इंदौर विकास प्राधिकरण में उपाध्यक्ष होने जा रहे हैं तो मोहन सेंगर तमाम विरोध के बाद संगठन में दिखाई देंगे। भाजपा के उन तमाम नेताओं के लिए यह एक सबक भी है, जिन्होंने अपने समर्थकों को कभी ताकतवर नहीं बनने दिया। केवल इस्तेमाल के लिए उपयोग करते रहे। आज की तारीख में भाजपा का एक भी विधायक यह नहीं चाहता कि नगर अध्यक्ष उसकी विधानसभा से हो, क्योंकि वह बाद में विधानसभा का टिकट मांगेगा, इसलिए पक्षी पालो, लेकिन ‘परÓ कतर कर रखो। अभी भी भाजपा नेताओं के लिए यह समय है कि वे अपने कार्यकर्ताओं को अधिक से अधिक जगह दिलाएं। खुद की जगह बनाए रखने के लिए अब भाजपा में नए युवा नेता आगे आने के लिए पिछले कई वर्षों से संघर्ष करते दिखाई दे रहे हैं और उम्रदराज भी हो रहे है। तमाम कोशिश के बाद भी वे जगह नहीं बना पाए। मजेदार बात यह है कि सिंधिया पूरी ताकत लगाने के बाद भी कांग्रेस में कार्यकर्ताओं को जगह नहीं दिला पाए।
दुई पाटन के बीच…
इन दिनों क्षेत्र क्रमांक एक श्रेय लेने की होड़ के बीच पांचाली हो गया है। यहां पर एक ही काम को लेकर सोशल मीडिया पर अलग-अलग दावे होते देखे जा सकते हैं। दूसरी ओर एक बार फिर ऊषा दीदी ने यहां अपनी मोहरें बैठाना शुरू कर दी हैं। इस बार वे क्षेत्र क्रमांक एक और तीन में पार्षद के कई टिकट के लिए अलग-अलग पीले चावल दे चुकी हैं। दूसरी ओर पिछले दिनों बाणगंगा अस्पताल को तीस पलंगों से सौ पलंगों का होने के सुदर्शन गुप्ता के ऐलान के बाद संजय शुक्ला के समर्थक भी इसे अपनी उपलब्धि बताने में नहीं चूके, पर पहले यह परचम सुदर्शन गुप्ता ने ही बाजार में लहराया था। दूध के जले गुप्ता इन दिनों छाछ भी फूंक-फूंककर पी रहे हैं, यानी दो साल बचे हैं और वे अपने पुराने साथियों और दुश्मनों दोनों को ही एक ही जाजम पर समेटते दिखाई दे रहे हैं। हालांकि गोलू शुक्ला भी इस क्षेत्र में कभी भी कांवड़ उठाने के लिए दिखाई देते रहते हैं। जो भी हो जनहित में अच्छा कार्य है इसका होना क्षेत्र के लिए बेहतर होगा। श्रेय की लड़ाई तो जीवनभर चलती रहेगी।