गुस्ताखी माफ -नेताओं के कंधों से मुक्त शहर में अधिकारियों का शीतयुद्ध…भोपाल से फिर मथरी लौंगे बंटना शुरू….कम पड़ती पत्तलें, खींचतान करते नेता…

नेताओं के कंधों से मुक्त शहर में अधिकारियों का शीतयुद्ध…
इन दिनों शहर में कोरोना महामारी के बीच कई नेताओं के कंधे कमजोर हो गए तो कई अधिकारियों के कंधे मजबूत हो गए हैं। जो नेता चिल्ला-चिल्लाकर कहते थे हम पर भरोसा रखो, अब उन्हीं की पार्टी वाले उन पर भरोसा नहीं कर रहे और इसीलिए नेताओं से मुक्त होकर व्यवस्था अधिकारियों के कंधों पर चली गई है। अब जो अधिकारी इक्कीसवीं सदी को लेकर तैयारी कर रहे हैं, वे बीसवीं सदी में यहां से सामान समेट लेंगे, यानी सही कंधे मिलते रहे तो कंधा लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि सेवाएं अब उद्योग हो गई हैं और ओहदे के साथ अधिकारी शहर के उद्योगपति बन गए। अधिकारियों के आपसी हित बीच-बीच में कंधों से निकलकर हाथों तक आ जाते हैं। इस समय शहर के अधिकारी दो हिस्सों में विभाजित हो गए हैं। एक हिस्से का नेतृत्व मोती बंगला से हो रहा है तो दूसरे का नेतृत्व मोती तबेला से हो रहा है। खींचतान के बीच बड़े कंधों की जरूरत भी पड़ रही है। दो दिन पहले इकबाल सिंह बैस भोपाल से इंदौर पहुंचे थे। उन्होंने जिलाधीश की पीठ थपथपा दी और वाहवाही भी हो गई। इस दौरान चल रही बैठक से संभागायुक्त यानी पवन बाबू बीच बैठक में ही चले गए तो अगले दिन शहर की मेट्रो योजना को लेकर भोपाल से फिर दूसरे बड़े अधिकारी आए, यानी गौतमसिंह आए। अब इस बैठक में पवन बाबू के कार्यों को सराहा गया। इस बैठक के बीच में ही जिलाधीश उठकर चले गए थे, यानी सबके अपने-अपने खेल तय हैं और देव भी तय हैं।
भोपाल से फिर मथरी लौंगे बंटना शुरू….
एक बार फिर निगम-मंडलों के लिए भोपाल में लौंग मथरकर दी जा रही है। उसके पहले भी इसी प्रकार से लौंग बंटती रही, पर हासिल कुछ नहीं आया। कारण यह है कि उपचुनाव के दौरान हर विधानसभा में मुख्यमंत्रीजी इस कदर रेवड़ी बांट गए कि हर चौथा भाजपा नेता निगम-मंडलों में चेयरमैन बनने के ख्वाब लेकर बैठा हुआ था। जितने निगम-मंडल हैं, उससे कहीं ज्यादा अध्यक्ष तो इंदौर में ही घूम रहे हैं। दूसरी ओर सबसे पहले पंगत की संगत होने पर अतिथि जीमेंगे। उनकी संख्या भी अच्छी-खासी है, क्योंकि उन्हीं के तंत्रों-मंत्रों से सरकार स्थापित हुई है। ऐसे में यदि वे भूखे रह गए तो शिव की तपस्या बैठे-बिठाए भंग हो जाएगी और ज्योति एक बार फिर ज्वाला बन जाएगी। यानि देर तो है ही अन्धेर भी है…

भाजपा के नगर अध्यक्ष गौरव रणदिवे के कार्यकाल को एक साल पूरा हो गया है। एक साल के कार्यकाल में वे अकेले ही पूरे शहर में एकछत्र नेता संगठन के बने रहे। हालांकि कांग्रेस में इससे बड़ा रिकार्ड प्रमोद टंडन का हुआ करता था। उन्होंने तो पूरी उम्र बिना संगठन तैयार किए ही निकाल दी थी। वे इन दिनों भाजपा में शोभायमान हैं। इधर, गौरव रणदिवे की नगर कार्यकारिणी में कई पेंच उलझ गए हैं। ऐसे में यदि दूसरा साल भी निकल जाए तो परेशान होने की जरूरत नहीं है। पहले से ही पत्तलें कम पड़ रही थीं, दूसरी ओर काका के परिवार के बच्चे भी भेला हो गए, यानी ज्योति बाबू का कुनबा भी कूद पड़ा। एक पत्तल में दो लोग नहीं खा सकते, इस चक्कर में पत्तलें बांधकर रख दीं। दूसरी ओर अब कुछ ऐसा गणित जमाया जा रहा है कि काम का काम हो जाए और अंगड़ाई की अंगड़ाई हो जाए, यानी संगठन में नियुक्तियां भी हो जाए और कई लोगों को आगे के ख्वाब दिखाकर सुला दिया जाए, यानी पार्षद के चुनाव में उन्हें दावेदार बताकर नगर कार्यकारिणी से मुक्त कर दिया जाए। ऐसे में अब अटाले में पड़े पुराने नेताओं को झाड़-पोंछकर वापस संगठन में तैनात कर दिया जाएगा। कुछ यह भी समझ रहे हैं कि अंगूर खट्टे हैं और जो मिल रहे हैं, वह आम नहीं हो सकते, इसलिए जो दे उसका भी भला और जो न दे, उसका भी भला।
-9826667063

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