गुस्ताखी माफ

शेर की दहाड़ और सियारों का कोरस...नेता पुत्रों में ही प्रतिभा बाकी है...वाह... खीर कौन खा रहा है...

शेर की दहाड़ और सियारों का कोरस…

शताब्दियों पूर्व जब जंगल राज था तो शेरों के साम्राज्य ने दहाड़ से बचने के लिए समझदार सियार क्षेत्र में घुसने से पहले ही कोरस गाना शुरू कर देते थे। इसके बाद मुगल सल्तनतें आईं और साम्राज्य में प्रवेश से पहले ही सल्तनतों के दरवाजे से ही आवाजें लगना शुरू हो जाती थीं, जिसमें कहा जाता था शहंशाहों के शहंशाह मुगल सल्तनत के सम्राट जिल्ले-इलाही के दरवाजे पर पहुंच रहे हैं। साम्राज्य चले गए, सत्ता चली गई, परंतु अभी भी कभी-कभी डीएनए में अंश दिखने लगते हैं। ऐसा ही कुछ जिला प्रशासन कार्यालय में मुखिया के द्वार पर पहुंचने के बाद एक वरिष्ठ अधिकारी बकायदा द्वार पर पहुंचकर मुगल सल्तनत की पूरी याद दिला देते हैं और उसी अदा से बोलते हुए प्रवेश करते हैं कि वे जलालुद्दीन अकबर की खिदमत में तोहफा पेश कर रहे हैं। दरवाजे पर पदस्थ चपरासी भी उनका आनंद लेते रहते हैं।

नेता पुत्रों में ही प्रतिभा बाकी है…

प्रदेश युवा मोर्चा के गठन को लेकर अब तैयारियां शुरू हो गई हैं। प्रदेश अध्यक्ष पंवार साहब की वी.डी. शर्मा से एक दौर की बातचीत हो चुकी है। ले-देकर एक बार फिर महासचिव पद के लिए दो दूनी चार शुरू होने जा रहा है। महासचिव के लिए क्षेत्र क्रमांक तीन के विधायक आकाश विजयवर्गीय के लिए चौसर जमना शुरू हो गई है तो दूसरी ओर क्षेत्र क्रमांक चार की विधायक मालिनी गौड़ के पुत्र एकलव्य ने भी इस पद को लेकर धनुष निकाल लिया है और वे भी निशाना लगाने में लग गए हैं। समझ यह नहीं आ रहा है कि भाजपा के सभी दिग्गज नेताओं के पुत्र इन दिनों अच्छी राजनीति कर रहे है और वे अपने पिता से बहुत कुछ राजनीति सीख भी गए है। ऐसे में सभी नेता पुत्रों को ही युवा मोर्चा में कमान दे देना चाहिए इससे कम से कम अन्य जगहों पर तो विवाद नहीं होंगे और अच्छे पदों पर कार्यकर्ताओं को मौका मिल सकेगा। अब देखना होगा महारथियों की झगड़े में भागीरथी का क्या होगा।

वाह… खीर कौन खा रहा है…
बंगाली चौराहे पर पुल पर विवाद हुआ। इधर आगे के पुलों को लेकर विकास प्राधिकरण में पेलवान और वहां के पूर्व मुखिया रहे शंकर लालवानी महाराज भाजपा नेताओं के साथ बजट को लेकर चिंतन करने पहुंच गए। यह भी शहर का दुर्भाग्य है कि जो आदमी चार साल प्राधिकरण की छाती पर अपने घर से मूंग लाकर दलता रहा, कोई विकास कार्य नहीं कर पाया वह शिखर कुर्सी पर था और जिसने प्राधिकरण को शहरभर में पहचान दिलाई, साथ ही कई पुल का निर्माण कर वाकई विकास पुरुष कहलाया वह व्यक्ति यानि मधु वर्मा दर्शकों की हैसियत से कौने में कुर्सी पर बैठे रहे। सांसद कुछ सीख बैठक में उनसे ले लेते तो शायद ज्यादा बेहतर होता। यानि पद का गुरुर कैसा होता है यह आप देख सकते है। मधु वर्मा ने प्राधिकरण में कुछ समय विकास की परिभाषा लिखी थी जब प्राधिकरण के पास बजट का भी अभाव रहता था। टीम वर्क भी उन्हीं के समय चलन में आया। जब सांसद महोदय ने यहां कब्जा किया तो पूरी ताकत इस पर लगाई कि बोर्ड में और किसी की नियुक्ति न हो। उनके कार्यकाल में जो कार्य आज भी प्राधिकरण में जाने जाते है उसमें उनके परिवार का एक नक्शा ऐसा पास करवाया है जो प्राधिकरण की योजना में शामिल भू

मि पर था। अब क्या कह सकते है… कोई हो मेहरबान तो कोई होता है पे
लवान।

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